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लगभग चार साल पहले तक जब मैं भारत में रहता था तो मैं बहुत बड़ा कामचोर था….फिर 2019 में मैं अमेरिका रहने आ गया!!

Sanjay Khare
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लगभग चार साल पहले तक जब मैं भारत में रहता था तो मैं बहुत बड़ा कामचोर था. मेरा खाना कोई और पकाता था. कपड़े कोई और धोता, सुखाता और तह करता था. बरतन कोई और धोता था. राशन-सब्ज़ी कोई और ख़रीदता था. झाड़ू-पोछा, गाड़ी की सफ़ाई, बाथरूम-टॉयलेट की सफ़ाई, घर से जाले हटाने, कचरा फेंकने, पौधों की देखभाल करने जैसे सभी कामों के लिए नौकर होता था.

फिर 2019 में मैं अमेरिका रहने आ गया.
अमेरिका में अधिकतर लोग अपने घर के सारे काम ख़ुद करते हैं. तो हम भी करते हैं. सब्ज़ी-राशन ख़ुद ख़रीद के लाते हैं. सुबह-दोपहर-शाम अपना खाना बनाते हैं. चौका-बरतन साफ़ करते हैं. डस्टिंग करते हैं. झाड़ू-पोछा लगाते हैं. बाथरूम-टॉयलेट साफ़ करते हैं. छोटे-मोटे बिजली, कारपेंट्री, और प्लंबर के काम भी ख़ुद कर लेते हैं. गंदे कपड़ों को मशीन में धोते हैं, सुखाते हैं, इस्तरी करते हैं और तह करके रखते हैं. सुबह उठ कर बिस्तर ख़ुद ठीक करते हैं. फ्रिज साफ़ करते हैं. बग़ीचे में पानी डालते हैं. लॉन में घास की कटाई ख़ुद करते हैं. कार धोते-पोंछते हैं. पेट्रोल पंप पर गाड़ी में पेट्रोल भी ख़ुद भरते हैं, कोई अटेंडेंट नहीं होता वहाँ. पूरी ज़िंदगी इंडिया में कभी अपनी गाड़ी में ख़ुद से पेट्रोल नहीं भरा. और इतने सालों में अमेरिका में आज तक अटेंडेंट से नहीं भरवाया. अपने घर का कचरा जमा करके, उसे गाड़ी में डाल कर, ख़ुद ही recycling के लिए डाल के आते हैं. जब बर्फ़ गिरती है तो ख़ुद ही फावड़ा लेकर घर के छज्जे, बाहर driveway, और गाड़ी से भी बर्फ़ ख़ुद हटाते हैं.

मेरे अड़ोस-पड़ोस में ये आम नज़ारा है. गोरा या काला, हर कोई ऐसा ही है. किसी को भी अपने काम करने में कोई शर्म नहीं है. लिबरल विचारधारा वाले हों या कंज़र्वेटिव वाले, जवान या बुड्ढे, आदमी या औरत, लगभग सभी अपने घर के सारे काम करते हैं. रोज़ ही देखते हैं कि जो लोग पालतू कुत्ते को बाहर पाख़ाना कराने ले जाते है वो प्लास्टिक की थैली साथ रखते हैं और जैसे ही कुत्ता पाख़ाना कर लेता है तो फ़ौरन सफ़ाई से उस पाख़ाने को प्लास्टिक में उठा कर कचरे में फेंक देते हैं. मैं तो ऐसे लोगों को भी जानता हूँ जिन्होंने अपने घर की remodeling ख़ुद की है. घर की दीवारों की पुताई ख़ुद कर लेना तो यहाँ आम है.

अमेरिका में होटल जाओ तो अपने कमरे तक अपना सामान ख़ुद ले जाना होता है क्योंकि वहाँ नौकर नहीं होता है. कार किराये पर लो तो कोई ड्राइवर नहीं मिलता है, ख़ुद ही चलाना होता है और किलोमीटर के हिसाब से पैसे देने होते हैं. अमेरिका में सरकारी अधिकारियों के घर कोई नौकर-चपरासी नहीं होता है. उनको कोई सरकारी घर भी नहीं मिलता है. ज़्यादातर अमेरिकी सांसद भी अपने घर के काम ख़ुद करते हैं क्योंकि उनकी सैलरी उतनी नहीं होती है कि दो-चार नौकर रख लें. क्योंकि घूस खाने वाला चाहे जो हो जेल भेज दिया जाता है इसलिए ऊपर की कमाई करना जोखिम का काम है और आम नहीं है.
जितने मिडिल क्लास अमेरिकी लोगों को मैं जानता हूँ वो अधिकतर बहुत मेहनती और कर्मठ हैं. कई लोग एक नौकरी में गुज़ारा नहीं कर पाते हैं तो दो-तीन एक्सट्रा काम उठाते रहते हैं. न मेहनत से कतराते हैं और न ही किसी काम को छोटा मानते हैं. पिछले दिनों मैं लायंस क्लब की एक पार्टी में गया था जहाँ कोई स्कूल टीचर था, कोई बिज़नेसमैन था और एक स्कूल बस का ड्राइवर था. सब मिलजुल कर ठहाका लगा रहे थे. मेरा एक पड़ोसी मेरी उम्र का है और पुलिस में काम करता है. वो भी घर के अंदर के और बाहर के सारे काम ख़ुद करता है. अमेरिका में ज़्यादातर मिडिल क्लास लोग ही ऊबर ड्राइवर बनते हैं क्योंकि एक नौकरी से कमाई पूरी नहीं होती है. मैं आँख टेस्ट करने की दुकान पर गया तो वहाँ सत्तर साल की एक महिला असिस्टेंट की नौकरी पर थी.
मुझे ये बात बहुत अच्छी लगती है कि यहाँ अमेरिका में रहते हुए घर और बाहर के सारे काम करने की पूरी ट्रेनिंग हो गई है. अब इंडिया लौटूँगा तो मज़ा आएगा क्योंकि अब दोबारा अपनी ज़िंदगी में दूसरों को नौकर बनाने का सवाल ही नहीं उठता है.
Ajit Sahi

डिस्क्लेमर : लेखका के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है