साहित्य

“लो खाओ और मरो, कोई अच्छी चीज़ तो तुम लोग खाओगे नहीं बस यही है गू गोबर खाओ और पचर-पचर थूको…”चित्र गुप्त

चित्र गुप्त
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दो रुपए
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ठिठुरन भरी सुबह में ट्यूशन पढ़कर लौट रहे बच्चे एक हाथ अपनी जेब में डाले और दूसरे हाथ से साइकिल का हैंडल सम्हाले झुंड में जोर जोर से बातें करते और ठठ्ठा लगाते जा रहे थे। सड़क किनारे थोड़ी थोड़ी दूर पर घर बने हुए थे। कुछ भैंसें और गायें सड़क के दोनो ओर बंधी हुई थीं। अलसाए लोग मवेशियों को चारा पानी देते गोबर उठाते इधर से उधर आते जाते दिख रहे थे। औरतें सड़क किनारे बर्तन मांज रही थीं। कुछ छोटे बच्चे साइकिल का टायर छोटे डंडे से मारकर चला रहे थे। शकुन भी उनमें से एक था।

राम सरन पत्नी और मां की हजारों गालियां खाकर अब बिस्तर से उठा था। मुंह फैलाते हुए तीन चार अंगड़ाइयां लेने के बाद उसने अलगनी पर टंगी अपनी पैंट की जेब को खंगाला और खाली हाथ बाहर निकल कर पत्नी से पूछा –
“मेरी पैंट की जेब में दो रुपए रक्खे थे तुमने निकाला क्या?”

“मैं तुम्हारे पैसे निकालकर क्या करूंगी? तुम हो ही बड़े कुबेर के नाती जो तुम्हारी जेबों में पैसे भरे रहते हैं और मैं उसमे से निकालती रहती हूं।”
“मैने ये कब बोला यार? मसाला खाना था वही ढूढ़ रहा था।”

“खाओ मसाला खूब खाओ अभी देखा है कि पड़ोस का ही संतोष कुमार कैंसर से मरा है लेकिन आंख नहीं खुली इनकी? मसाला खाने से बढ़िया है जहर ला दो मैं ही खा लेती हूं।”

पत्नी को गुस्से में देखकर वह कुछ नहीं बोला सीधे बाहर आया और वहां खेल रहे बेटे से पूछने लगा –

“शकुन भैया पैंट की जेब में दो रुपए रक्खे थे उसे निकाला है क्या? थोड़ा मसाला खाना था वही ढूढ़ रहा था। निकाला है तो बता दो कुछ ले लिया हो तो भी कोई बात नहीं लेकिन ऐसे चोरी करना बुरी बात हैं न?”

“नहीं पापा मैंने नहीं निकाला… मैं कोई मसाला तो खाता नहीं हूं जो आपके दो रुपए निकालूंगा।” शकुन ने जवाब दिया और फिर खेलने लगा।
राम सरन थोड़ी देर घर के बाहर खड़ा कुछ सोचता रहा फिर ढाबली की ओर चल पड़ा। ढाबली थोड़ी ही दूर थी। जहां सबेरा होते ही पान मसाला गुटखा बीडी सिगरेट लेने वालों की भीड़ शुरू हो जाती थी। दुकान एक बूढ़ी अम्मा चलाती थीं। उनकी रोजी रोटी का जरिया वही दुकान ही थी, लेकिन जब भी कोई पान मसाला या गुटखा लेने आता तो वो एक बात जरूर कहती थीं ‘लो खाओ और मरो’। कई लोगों को उन बूढ़ी अम्मा का ये तकिया कलाम ऐसा रट गया था कि वो उनके बोलने से पहले ही कह दिया करते थे लो खाओ और मरो। बूढ़ी अम्मा सामने वाले की बात सुनकर हंसती और फिर वही वाली दोहरा देती लो खाओ और मरो। लो खाओ और मरो में ऐसी प्यार भरी उलाहना छुपी हुई रहती थी कि कोई उनकी बात का बुरा नहीं मानता था बल्कि हंसते हुए निकल जाता था।
रामसरन उनके पास पहुंचा और कुछ दूर खड़ा होकर किसी और के आने का इंतजार करने लगा। क्योंकि बोहनी नहीं हुआ कहकर उसे वापस कर दिए जाने का डर भी लग रहा था। जब उसके सामने एक ग्राहक आकर चला गया तो वह ढाबली पर पहुंचा और बूढ़ी अम्मा से इधर उधर की बातें करने लगा।
उधार लेने वालों की ये खास बात होती है कि वो बातों में पहले दुनिया भर की सैर कराता है फिर जाकर अंत में मुद्दे की बात पर आता है। अनुभवजन्य दुकानदार उधार वालों की इस आदत से बखूबी परिचित होते हैं इसलिए रामसरन ने जैसे ही बातों को घुमाना शुरू किया बूढ़ी अम्मा बोल पड़ीं, “लेना क्या है वो बताओ उधार लेने आए होंगे इसीलिए बातें बना रहे हो…”

“अरे अम्मा वही मसाला खिला दो सुबह से सर घूम रहा है।”

“लो खाओ और मरो, कोई अच्छी चीज तो तुम लोग खाओगे नहीं बस यही है गू गोबर खाओ और पचर पचर थूको…”

एक बार मैने बूढ़ी अम्मा की बात सुनकर पूछा था। “अम्मा अगर आपको पान मसाले से इतनी ही नफरत है तो फिर आप बेचती ही क्यों हो?”

अम्मा ने अपना पेट दिखा दिया था – “पापी पेट का सवाल है भैया ये न बेचूं तो क्या करूं? अब इस उम्र में कहां जाऊं मजदूरी करने कौन रखेगा मुझे काम पर? और दूसरी बात ये कि मेरे नहीं बेचने से ये कोई बिकना बंद तो हो नहीं जाएगा। खाने वाले तो खाएंगे ही, मैं बेचूं या कोई और बेचे क्या फर्क पड़ता है।
बाप ने उम्र भर की बढ़ईगीरी से सड़क के किनारे जमीन लेकर नींव भरवा दिया था। बेटे ने उसमे मिट्टी भरवाकर एक तरफ दीवार खड़ी कर दी थी और उसी पर छप्पर डालकर रहने भी लगा था। राम सरन भी बढ़ईगीरी के काम में माहिर था लेकिन गांव में हर रोज काम तो मिलता नहीं था। महीने में दस पांच दिन का कहीं मिल जाता था वो भी बड़ी मशक्कत के बाद। वह परदेस जाकर कमाई करता था तब ठीक ठाक कमाई हो जाती थी लेकिन बीवी और बच्चों को छोड़कर जाने की उसकी हिम्मत न होती थी। वह एकाध बार गया भी था लेकिन महीने दो महीने में ही भाग आया था।

रामसरन पढ़ा लिखा नहीं था। उसकी घरवाली ने भी कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था, फिर भी उन्होंने हम दो हमारे दो वाले नुस्खे का शब्दशः अनुपालन किया था। उनके दो ही बच्चे थे। बड़ा बेटा था उसका नाम शकुन था और दूसरी बेटी थी जो शकुन से छोटी थी उसका नाम गुड्डी था।

शकुन सड़क पर टायर चलाते हुए भागा तो सामने से आ रही मोटर साइकिल ने उसे ऐसी टक्कर मारी कि वह फुटबॉल की तरह उछलकर जमीन पर गिर गया। मोटरसाइकिल वाला टक्कर मारकर फरार हो गया था। गुड्डी ने देखा तो उसने हल्ला मचाया। रामसरन भी मसाला खाकर घर आ गया था और छप्पर के नीचे लेटा था। वह भागकर आया उसके साथ ही उसकी बीवी भी भागकर आ गई थी। शकुन सड़क पर बेहोश पड़ा था।

तुरंत ही रोना चिल्लाना शुरू हो गया। आसपास वाले भी दौड़कर आ गए। जा रहे राहगीर भी तमाशा देखने के लिए जुटने लगे। लोगों की भीड़ देखकर हर आने जाने वाला अपनी मोटर साइकिलें और साइकिलें वहीं खड़ी करके रुक जाता था।

छोटे घरों में कोई आपदा अकेले नहीं आती वह कई आपदाओं को साथ लेकर आती है। बच्चे को हस्पताल लेकर जाना था लेकिन पैसों की समस्या मुंह फैलाकर सुरसा की तरह सामने खड़ी हो गई। बेटा बेहोश सामने पड़ा था और रामसरन अपनी जेबें टटोल रहा था। रकम कितनी मिल सकती थी ये बात उसे भी पता थी फिर भी वह अपनी सभी जेबें उल्टी करके उसमे ढूढ़े जा रहा था।

उसकी बीवी ने भी अपनी कान की बाली और नाक की नथनी निकालकर एक कागज मे पुड़िया बनाकर रामसरन की जेब में डाल दिया था। उसका घर गांव से बाहर होने के कारण ज्यादा लोग आसपास रहने वाले भी नहीं थे। बगल का इकलौता घर था जिसके मालिक काम पर जा रखे थे। उसकी मालकिन कह रही थीं वह होते तो और कुछ इंतजाम हो जाता मगर अभी यह पांच सौ ही हैं इसे रखो बाद में वह आयेंगे तो तो उन्हे और लेकर भेज दूंगी।

घर के पीछे खेत में काम कर रही बच्चे की दादी भी भागकर आ गई थीं। उन्होंने भी अपने हाथों में पहनी चांदी की चूड़ियां उतार कर रामसरन के हवाले कर दिया था। बच्चे की मम्मी अपनी संदूक खोलकर उसमे से भी कुछ ढूंढ रही थीं। शायद कुछ रखे हुए गहने थे जिसे निकालकर वह रामसरन को देना चाहती थीं।

औरतें गहने नहीं खरीदती दरअसल वो संपत्तियां जोड़ती हैं, जो उनके गाढ़े वक्त में काम आ सके। आज उनके घर में पुरानी टंगी किसी पैंट की जेब से कोई कील निकल रही थी तो किसी तकिए के अंदर से पुरानी पायल। जब बेटे की जिंदगी का सवाल हो तो पूरा परिवार कैसे पाई पाई जोड़ लेता है ये सब आसानी से देखा जा सकता था।

गुड्डी दरवाजा पकड़े एक टांग पर खड़ी थी। उसका दूसरा पैर दरवाजे के ऊपर था। वह अपनी मां और दादी को अपने गहने ढूंढ कर देते हुए देख रही थी। रामसरन बेटे को गोदी में लिए बैठा किसी साधन का इंतजार कर रहा था। जिसपर वह बेटे को लेकर हस्पताल तक जा सके। वह बार बार बेटे का मुंह अपने गालों से लगाकर उसके शरीर की गर्मी को महसूस करने की कोशिश कर रहा था। कुछ उत्साही लड़के आने जाने वालों को रोककर उनसे मदद मांगने की कोशिश कर रहे थे।

किसी राहगीर ने एक एक जानपहचान की जीप वाले को फोन कर दिया था वह फौरन आ गया। रामसरन बेटे को लेकर उसमे बैठ गया। जीप चलने ही वाली थी कि गुड्डी ने आवाज दी पापा रुक जाओ एक मिनट…।

लोग असमंजस में उसे देख रहे थे। गुड्डी दौड़कर आई। उसने अपने हाथों में छुपाए एक एक रुपए के दो सिक्के उनके हाथों में रख दिए।
#चित्रगुप्त