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शिव कुमार यादव से जानिये सूचना के अधिकार कानून की हक़ीक़त : शिवकुमार के ख़िलाफ़ मामले : रिपोर्ट

दिल्ली में वकालत करने वाले शिव कुमार यादव 5 साल बाद यूपी के गाजीपुर में अपने गांव आए. वहां विकास कार्यक्रमों के अमल में गड़बड़ी दिखी तो सूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी.

भ्रष्टाचार को उजागर करने का मकसद लेकर आए वकील शिवकुमार अब खुद न्याय की आस में भटक रहे हैं. गाजीपुर जिले में सरवनपुर गांव के शिवकुमार यादव बनारस से पढ़ाई करने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट में वकालत करने लगे. कोविड संकट के दौरान कोर्ट बंद होने के कारण करीब पांच साल बाद अप्रैल 2021 में वो अपने गांव आए तो उन्हें गांव में चल रही विकास योजनाओं पर अमल में कई तरह की गड़बड़ियां दिखीं. वकालत पढ़े शिवकुमार यादव को सूचना का अधिकार कानून यानी आरटीआई के बारे में जानकारी थी तो उन्होंने उसके जरिए सूचना मांगने की कोशिश की.

शिवकुमार यादव बताते हैं, “30 जुलाई 2021 को हमने आरटीआई के जरिए जिला पंचायत राज अधिकारी के दफ्तर से यह सूचना मांगी कि सरवनपुर गांव में साल 2015 से लेकर 2020 तक क्या काम हुए और कितने रुपये खर्च हुए. इसके अलावा शौचालय और आवास योजना के तहत आवास किन्हें मिले हैं, इसकी जानकारी मांगी थी. हमें पूरी जानकारी नहीं दी गई तो हमने इस साल 12 मार्च को पत्र लिखकर गांव में हुए विकास कार्यों में भ्रष्टाचार की जांच की मांग की.”

शिकायत की तो काम शुरू हो गया
शिव कुमार बताते हैं कि डीपीआरओ ने पत्र जिलाधिकारी के पास भेज दिया और जिलाधिकारी ने उद्योग विभाग के उपायुक्त अजय कुमार गुप्त को जांच अधिकारी बनाकर पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए. जिलाधिकारी ने मामले की जांच करके एक महीने में रिपोर्ट पेश करने को कहा. साथ ही यह भी कहा कि 23 मई और 28 मई को जांच अधिकारी गांव का मुआयना भी करें.

शिव कुमार बताते हैं, “डीएम ने भ्रष्‍टाचार की जांच के आदेश दिए तो उसके बाद ही गांव में अचानक काम-धाम भी शुरू हो गए. स्‍ट्रीट लाइट लगने लगी, शौचालय बनने लगे, आवास योजना के तहत आवास बनने लगे. ये अलग बात है कि कई आवास और शौचालय अभी भी आधे-अधूरे ही बने हैं और लोग कच्चे घरों में ही रह रहे हैं. दूसरी ओर, मुझे धमकी भी दी जाने लगी कि यदि शिकायत करोगे तो उसका खामियाजा भुगतोगे.”

सरवनपुर ग्राम पंचायत सैदपुर तहसील के अंतर्गत आता है और यहां की ग्राम प्रधान उर्मिला देवी हैं लेकिन उनका सारा काम उनके बेटे और प्रतिनिधि आशुतोष यादव ही देखते हैं. इस मामले में डीडब्ल्यू ने आशुतोष यादव से बात की तो उनका कहना था कि गांव में किसी तरह के काम में कोई अनियमितता नहीं बरती गई है, जांच भी हुई है, रिपोर्ट आएगी तो सब पता चल जाएगा.

शिवकुमार के खिलाफ शिकायत
आशुतोष यादव कहते हैं, “गांव के योगेंद्र यादव खलिहान की जमीन पर रास्ता बनवाए थे. पंचायत ने उन्हें दस फुट का रास्ता बनाने को कहा था. शिवकुमार वकील का कहना था कि रास्ता हटा लो. हमने कहा कि हम क्यों हटा लें, पंचायत ने उन्हें दिया है. इनके चाचा के लड़के ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर भी शिकायत की थी. ये हमसे कहने लगे कि हमारी बाउंड्री बनवाओ नहीं तो हम जांच कराएंगे. हमने मना किया तो धमकी देने लगे. हमने कहा कि आप जांच करा लीजिए. दरअसल, ये अपने वकील होना का फायदा उठाते हैं और धमकाते हैं.”

बहरहाल, जांच अधिकारी कई दिन की हीला-हवाली के बाद वहां पहुंचे और उन्होंने जांच की. शिवकुमार कहते हैं, “जांच अधिकारी हमसे बोले के जो लोग अनियमितता का आरोप लगा रहे हैं उनका वीडियो और एफिडेविट चाहिए. मैंने उन्हें दे दिया. लेकिन वो बोले कि अब तो जांच पूरी हो गई है.”

जांच अधिकारी अजय कुमार गुप्त कहते हैं कि उन्होंने जांच करके रिपोर्ट सौंप दी है. इससे ज्यादा वो कुछ भी बताने में दिलचस्पी नहीं दिखाते. हां, जांच में देरी की वजह के बारे में कहते हैं कि उन्हें जांच देर से सौंपी गई और साक्ष्य मिलने में समय लगा.

शिवकुमार के खिलाफ मामले
इस पूरी कहानी का दूसरा पक्ष यह है कि इधर शिव कुमार आरटीआई से जानकारी मांग रहे थे, दूसरी ओर गांव में लंबित काम होने लगे और साथ ही शिव कुमार और उनके परिजनों के खिलाफ केस दर्ज होने लगे. हालांकि ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि आशुतोष यादव कहते हैं कि उनकी कोई भूमिका नहीं है लेकिन शिव कुमार का आरोप है कि यह सब उन्हीं के इशारे पर हो रहा है.

अगस्त 2021 में एक अन्य गांव की महिला ने शिव कुमार यादव और उनके चचेरे भाई राकेश यादव पर छेड़छाड़, गाली-गलौच और जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए जिला न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिया. महिला ने आरोप लगाया कि वो पुलिस के पास गई थी लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हुई. हालांकि पुलिस अधिकारियों ने इस मामले में कोई प्रार्थना पत्र मिलने से अदालत के सामने इनकार कर दिया था.


बहरहाल, अदालत के हस्तक्षेप से 11 नवंबर 2021 को गाजीपुर के खानपुर थाने में शिव कुमार यादव, उनके भाई कृपा शंकर यादव, चचेरे भाई राकेश यादव और दो अन्य लोगों पर यौन उत्पीड़न और दलित उत्पीड़न की धाराओं के तहत केस दर्ज कर लिया गया. शिव कुमार और उनके चचेरे भाई कृपाशंकर यादव पर उसी महिला ने लगभग वैसी ही शिकायतों के आधार पर एक और मुकदमा दर्ज कराया है.

शिव कुमार यादव कहते हैं कि उन लोगों का कभी किसी तरह का आपराधिक रिकॉर्ड नहीं रहा लेकिन अब इतनी गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ है. शिवकुमार का आरोप है कि यह सब प्रधान के प्रतिनिधि आशुतोष के इशारे पर हुआ है क्योंकि आरोप लगाने वाली महिला उनकी परिचित है. लेकिन आशुतोष यादव इस बात से साफ इनकार करते हैं.

इस बीच, 2 जून 2022 को खानपुर थानाध्‍यक्ष की रिपोर्ट को आधार मानकर एडीएम ने कृपाशंकर यादव को बड़ा अपराधी मानते हुए उन्हें एक लाख रुपये का मुचलका भरने का आदेश दिया. इस मामले में एडीएम से बात करने की कोशिश की गई लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मामले को टाल दिया कि उन्हें जानकारी नहीं है.

मुकदमों की झड़ी
यही नहीं, कुछ दिनों के बाद स्थानीय लेखपाल की ओर से खानपुर थाने में एक और एफआईआर दर्ज कराई गई जिसमें शिवकुमार यादव के पिता रामजी यादव पर आरोप लगाया कि उन्होंने जो मकान बनाया है वो ग्राम सभा की खलिहान के लिए आवंटित जमीन पर बनाया है. ऐसे ही कुछ मामले शिवकुमार यादव के चाचा और कुछ अन्य परिजनों के खिलाफ भी दर्ज कराए गए हैं कि उन्होंने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है.

रिपोर्ट दर्ज कराने वाले लेखपाल अनुराग भारद्वाज का कहना है कि उन्होंने उस रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज कराई है जो उनके पूर्ववर्ती लेखपाल ने दी थी. आरटीआई के आवेदन और उस पर हुई कार्रवाई पर गाजीपुर के जिलाधिकारी से भी बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे बातचीत नहीं हो पाई.

बहरहाल, दिल्ली हाईकोर्ट में वकालत करने वाले शिवकुमार अब खुद अपने ही मुकदमों में इस कदर उलझे हैं कि और कोई केस नहीं देख पा रहे हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, “मुझे लगा कि आरटीआई से मैं जानकारी मांगूंगा तो मुझे पता लग जाएगा कि सरकारी पैसे का किस तरह दुरुपयोग हो रहा है. वह तो पता नहीं चल सका लेकिन अब मुझे खुद इतने मुकदमों में उलझा दिया गया है कि अब शायद ही कभी आरटीआई का इस्तेमाल करूं.”

सूचना का अधिकार कानून साल 2005 में लागू किया गया था जिसके तहत देश का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी विभाग से कोई भी जानकारी ले सकता है. तब से लेकर अब तक कई बार इस कानून के दुरुपयोग की भी खबरें आती रहती हैं और कई बार सूचनाएं देने में सूचना अधिकारियों की हीला-हवाली की भी खबरें आती हैं.