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श्रीलंका में भारत अपनी भूमिका को लेकर बार-बार सफ़ाई क्यों दे रहा है?

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे बुधवार को देश छोड़कर मालदीव भाग गए. इनके भाई और श्रीलंका के पूर्व वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे भी श्रीलंका से भाग गए हैं.

इससे पहले इनके भाई महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी और वह तब से कहाँ ग़ायब हैं, कोई आधिकारिक सूचना नहीं है. राष्ट्रपति भवन पर पिछले हफ़्ते शनिवार को श्रीलंका के आम लोगों ने धावा बोल दिया था और अपने नियंत्रण में ले लिया था.

गोटाबाया ने 13 जुलाई को राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा देने की घोषणा की है. प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे भी श्रीलंका में काफ़ी अलोकप्रिय हो गए हैं और उनके निजी आवास में भी आक्रोशित भीड़ ने आग लगा दी थी.

रनिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि वह भी प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे देंगे लेकिन इसके पहले सभी पार्टियों की एक सरकार बनाना चाहते हैं. श्रीलंका की संसद के अध्यक्ष महिंदा यापा अबेयवर्देना ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी और उन्होंने राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री से भी इस्तीफ़े की मांग की थी.


भारत की सफ़ाई

श्रीलंका जिस मोड़ पर खड़ा है, उसे लेकर भारत काफी सतर्क है. भारत श्रीलंका में हर घटनाक्रम पर फूंक-फूंक कर क़दम रख रहा है और किसी भी अफ़वाह या अटकलों पर तत्काल स्पष्टीकरण जारी कर रहा है.

राष्ट्रपति राजपक्षे के मालदीव भागने के कुछ देर बाद ही कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग ने स्पष्टीकरण जारी किया और कहा कि भारत उन मीडिया रिपोर्ट्स को ख़ारिज करता है, जिसमें बताया जा रहा है कि हमने गोटाबाया को श्रीलंका से बाहर भेजने में मदद की है.

India in Sri Lanka
@IndiainSL
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High Commission categorically denies baseless and speculative media reports that India facilitated the recent reported travel of @gotabayar @Realbrajapaksa out of Sri Lanka. It is reiterated that India will continue to support the people of Sri Lanka

भारतीय उच्चायोग के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कहा गया है, ”उच्चायोग स्पष्ट रूप से बेबुनियाद और अटकलों से भरी मीडिया रिपोर्ट्स को ख़ारिज करता है कि गोटाबाया राजपक्षे और बासिल राजपक्षे को श्रीलंका से बाहर भेजने में भारत ने मदद की है. हम इस बात को फिर से दोहराते हैं कि भारत श्रीलंका के लोगों को मदद करता रहेगा.”

India in Sri Lanka
@IndiainSL

The High Commission would like to categorically deny speculative reports in sections of media and social media about India sending her troops to Sri Lanka. These reports and such views are also not in keeping with the position of
the Government of India.

यह कोई पहली बार नहीं है, जब भारत ने श्रीलंका की अस्थिरता और वहाँ की हलचल को लेकर सफ़ाई दी हो. इससे पहले भारतीय उच्चायोग ने 10 जुलाई को एक और स्पष्टीकरण जारी किया था. भारतीय उच्चायोग ने लिखा था, ”मीडिया के एक धड़े और सोशल मीडिया में चल रहीं अटकलें कि भारत श्रीलंका में सेना भेज रहा है, को उच्चायोग स्पष्ट रूप से ख़ारिज करता है. ऐसी रिपोर्ट और विचार भारत सरकार की सोच में नहीं है.”

भारतीय उच्चायोग ने अपने ट्वीट में लिखा है, ”भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत श्रीलंका के लोगों के साथ खड़ा है. श्रीलंका के लोग लोकतांत्रिक सेटअप में अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करना चाहते हैं.”

India in Sri Lanka
@IndiainSL

High Commission categorically denies that it or the Indian Consulates General or the Assistant High Commission of #India in #SriLanka have stopped issuing visas.

In the past few days, there were operational difficulties due to the inability of our Visa Wing staff,(

13 मई को भी भारतीय उच्चायोग ने एक स्पष्टीकरण जारी किया था. इसमें भारतीय उच्चायोग ने कहा था, ”उच्चायोग इस बात को नकारता है कि श्रीलंकाई नागरिकों को भारत वीज़ा नहीं दे रहा है. पिछले कुछ दिनों से वीज़ा विंग के स्टाफ़ की कमी के कारण दिक़्क़त हो रही थी. अब पूरी तरह का काम शुरू हो गया है और वीज़ा भी जारी किया जा रहा है. श्रीलंका के लोगों का भारत में स्वागत है.”

India in Sri Lanka
@IndiainSL
The High Commission would like to categorically deny speculative reports in sections of media and social media about #India sending her troops to Sri Lanka. These reports and such views are also not in keeping with the position of
the Government of #India. (1/2)

11 मई को एक बार फिर से श्रीलंका स्थित भारतीय उच्चायोग ने सोशल मीडिया और मुख्यधारा के मीडिया के एक धड़े में सेना भेजने की रिपोर्ट को ख़ारिज किया था.

India in Sri Lanka
@IndiainSL
High Commission has recently noticed rumours circulating in sections of media & social media that certain political persons and their families have fled to India.
These are fake and blatantly false reports,devoid of any truth or substance.High Commission strongly denies them.

10 मई को भी भारतीय उच्चायोग ने एक स्पष्टीकरण जारी किया और कहा, ”हमने देखा है कि मीडिया के एक धड़े और सोशल मीडिया में अफ़वाह फैलाई जा रही है कि श्रीलंका के ख़ास नेता और उनके परिवार के लोग भारत भागकर गए हैं. ये फ़र्ज़ी रिपोर्ट हैं. भारतीय उच्चायोग इसे मज़बूती से नकारता है.” 10 मई को ही महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका के प्रधानमंत्री से इस्तीफ़ा दिया था और अफ़वाह थी कि वह भारत में शरण ले सकते हैं.

श्रीलंका में भारत अपनी भूमिका को लेकर बार-बार सफ़ाई क्यों दे रहा है? भारत को लेकर ऐसी बातें क्यों कही जाती हैं कि उच्चायोग को सफ़ाई देनी पड़ती है?

सुब्रमण्यम स्वामी बीजेपी के नेता हैं. कहा जाता है कि राजपक्षे परिवार से उनके संबंध अच्छे हैं. श्रीलंका में आर्थिक संकट को लेकर जब वहाँ के आम लोगों ने विरोध-प्रदर्शन करना शुरू किया और यह प्रदर्शन राजपक्षे परिवार को बेदखल करने की हद तक पहुँच गया तो स्वामी ने मोदी सरकार से भारत की सेना भेजने की मांग की.

स्वामी ने 10 जुलाई को ट्वीट कर कहा था, ”गोटाबाया और महिंदा राजपक्षे को स्वतंत्र चुनाव में मज़बूत बहुमत के साथ चुना गया था. श्रीलंका में चुनी हुई सरकार को एक भीड़ बेदखल कर दे, इसे भारत कैसे देख सकता है. ऐसे में तो कोई भी लोकतांत्रिक देश हमारे पड़ोस में सुरक्षित नहीं है. अगर राजपक्षे भारत से सैन्य मदद चाहते हैं, तो हमें ज़रूर देनी चाहिए.”

स्वामी भारत की सत्ताधारी पार्टी के नेता हैं और उनकी ऐसी सनसनीखेज टिप्पणियों को श्रीलंका के मीडिया में हाथोहाथ लिया जाता है. भारतीय उच्चायोग की ओर से बार-बार स्पष्टीकरण की पृष्ठभूमि में स्वामी की टिप्पणी भी रहती होगी. लेकिन भारत और श्रीलंका के रिश्ते की जटिलता के साथ संवेदनशीलता को महज़ स्वामी की टिप्पणियों के आईने में नहीं देखा जा सकता है.

भारत का डर?
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जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया अध्ययन केंद्र में प्रोफ़ेसर रहे एसडी मुनी ने 13 जुलाई को अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि श्रीलंका संकट को लेकर भारत को सतर्क रहने की ज़रूरत है.

एसडी मुनी ने लिखा है, ”भारत के हित राजनीतिक रूप से स्थिर श्रीलंका में है. भूरणनीतिक और सभ्यता की कसौटी पर भारत श्रीलंका के जितना क़रीब है, उतना एशिया का कोई देश नहीं है. हाल के वर्षों में श्रीलंका में चीन की बढ़ती आर्थिक सामरिक मौजूदगी भारत के लिए चिंता का विषय है. भारत को श्रीलंका के लोगों को राहत दिलाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. भारत वहाँ के लोगों को खाने-पीने के सामान, ईंधन और दवाइयाँ मुहैया कराए. भारत को वहाँ के भ्रष्ट शासन से ख़ुद को दूर रखना चाहिए.”

एसडी मुनी ने लिखा है, ”श्रीलंका में ऐसा धड़ा भी है जो भारत की मौजूदगी के साथ सहज नहीं है. हाल में रिपोर्ट आई थी कि प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंका के पावर प्रोजेक्ट में अडानी के लिए कथित लॉबीइंग की थी. इस रिपोर्ट का भारत विरोधी धड़े ने दुरुपयोग करने की कोशिश की थी. ऐसी रिपोर्ट भी चलाई गई कि भारत राजपक्षे सरकार को बचाने के लिए श्रीलंका में सेना भेज सकता है.”

श्रीलंका के शीर्ष अधिकारी ने संसदीय समिति के सामने ये कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका सरकार पर दबाव बनाया था कि वो अडानी समूह को उत्तरी श्रीलंका की बड़ी बिजली परियोजना सौंपे. हालाँकि, विवाद के बाद अधिकारी ने अपना बयान वापस ले लिया था.

इस विवाद पर विक्रमसिंघे ने कहा था, “अगर भारत सरकार वास्तव में दिलचस्पी लेती, तो मुझे इस बारे में प्रधानमंत्री मोदी या उनके कार्यालय की ओर से बताया जाता. मुझसे इस परियोजना को जल्द से जल्द सौंपने के लिए कोई अनुरोध नहीं किया गया है.”

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने श्रीलंका की स्थिति को काफ़ी गंभीर बताया है. उन्होंने कहा है कि भारत अपने और सहयोगियों के साथ श्रीलंका में मदद पहुँचाने की कोशिश कर रहा है.

‘राजपक्षे राज में भारत हुआ बेदख़ल’
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कई विशेषज्ञों का मानना है कि राजपक्षे परिवार के शासन में श्रीलंका पूरी तरह से बदल गया. यह ऐसा बदलाव था, जिसमें न केवल आंतरिक स्तर पर बदला बल्कि उसकी विदेश नीति, फौज और संस्थान भी बदल गए. जेएनयू में दक्षिण एशिया अध्ययन केंद्र में प्रोफ़ेसर महेंद्र लामा कहते हैं, ”पिछले 15 सालों में श्रीलंका जिस तरह से बदला है, उसमें भारत बिल्कुल बाहर हो गया. राजपक्षे परिवार के पहले श्रीलंका में भारत की जैसी मौजूदगी थी, वो लगभग ख़त्म हो गई.”

लामा कहते हैं, ”याद कीजिए कि जब श्रीलंका तमिल अलगाववादियों के विद्रोह के कारण दशकों तक गृह युद्ध में रहा तब भी वहाँ की अर्थव्यवस्था स्थिर थी. फॉरेक्स का संकट नहीं था. ज़रूरी सामानों की किल्लत नहीं थी. तब श्रीलंका के साथ भारत खड़ा रहता था. हर मुश्किल से निकालने के लिए भारत खड़ा रहता था. लेकिन राजपक्षे के शासन में श्रीलंका 360 डिग्री बदला. चीन का प्रभाव बढ़ा और श्रीलंका ने ऐसे समझौते किए, जो उसके क़र्ज़ में फँसाता चला गया. हम्बनटोटा इसका उदाहरण है. ”

लामा कहते हैं, ”अभी श्रीलंका में जो स्थिति है, वह भारत के लिए डराने वाली है. श्रीलंका को पटरी पर लाना बहुत मुश्किल काम है. भारत अगर मदद भी करना चाहे तो किसे करे. वहाँ ऐसा कोई नेता नहीं है, जिस पर लोगों का भरोसा हो. सेना भी पूरी तरह बिखर चुकी है. मदद करने के लिए एक नेतृत्व होना चाहिए जो कि श्रीलंका में नहीं है. ऐसा लग रहा है कि आने वाले वक़्त में भारत श्रीलंका से बिल्कुल ग़ायब न हो जाए. भारत श्रीलंका में खाने-पीने के सामान की कमी नहीं होने दे सकता है लेकिन इसे भी नहीं कर पा रहा है. भारत के गोदाम में अनाज भरे हुए हैं लेकिन श्रीलंका में पर्याप्त मात्रा में नहीं भेजा रहा है.”

लामा कहते हैं, ”मुझे तो जापान, भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन की इंडो-पैसिफिक नीति समझ में नहीं आ रही है. क्या इन्हें पता नहीं है कि इंडो-पैसिफिक में स्थिर श्रीलंका का होना कितना अहम है. श्रीलंका की अस्थिरता भारत और अमेरिका की इंडो-पैसिफिक नीति के लिए ख़तरनाक है. मालदीव में भारत के ख़िलाफ़ इंडिया आउट कैंपेन चल ही रहा है और अब श्रीलंका से भी आउट होने का ख़तरा मुहाने पर है.”

दक्षिण एशिया के कई देश आर्थिक संकट में समाते दिख रहे हैं और इसे भारत के लिए भी काफ़ी मुश्किल माना जा रहा है. नेपाल और पाकिस्तान में भी श्रीलंका जैसे संकट की बात की जा रही है. लामा कहते हैं कि भारत सार्क के तहत श्रीलंका की मदद नहीं कर पा रहा है तो कम से कम अपना ही गोदाम खोल दे ताकि वहाँ के लोगों के मन में भारत की छवि अच्छी रहे.

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रजनीश कुमार
बीबीसी संवाददाता

 

Sri Lankans wait for Rajapaksa’s resignation after president flees
– Rajapaksa was expected to step down as president on July 13 after thousands of protesters stormed his and the prime minister’s official residences on Saturday

– President Gotabaya Rajapaksa fled Sri Lanka for the Maldives allegedly en route to Singapore early Wednesday following widespread protests against the country’s months-long economic crisis, according to Reuters and AP

– A severe economic crisis has sparked shortages of food and fuel in Sri Lanka, deemed as the worst-ever economic crisis to hit the South Asian island nation