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संघियों, ग़द्दारो ज़रा याद करो ”गाँधी” की क़ुर्बानी : अंग्रेज़ों ने भारत की 45 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति लूटी थी, कितने भारतीयों की हत्या की यह जानकर होश उड़ जाएंगे!रिपोर्ट!

ब्रिटेन ने भारत पर लगभग 200 साल तक राज किया। कहा जाता है कि उस दौरान अंग्रेज़ों ने भारत का लगभग 45 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति लूटी थी। अब ऑस्ट्रेलिया के दो विशेषज्ञों ने खुलासा किया है कि ब्रिटिश सरकार ने उपनिवेश के 40 साल के दौरान क़रीब 10 करोड़ भारतीयों को मौत के घाट उतार दिया था।

दुनिया में सबसे ज़्यादा ख़ून-ख़राबा करने वाले अंग्रेज़ आज मानवाधिकार को लेकर बड़ी-बड़ी बातें और दावे करते हैं। ब्रिटेन में आज भी बड़ी संख्या में लोग औपनिवेशिक इतिहास पर गर्व करते हैं। लेकिन ब्रिटेन का इतिहास इतना इतने ज़्यादा लोगों के ख़ून से रंगा हुआ है कि उसको किसी भी चीज़ से साफ़ नहीं किया जा सकता है। नियाल फर्ग्यूसन एम्पायर: हाउ ब्रिटेन मेड द मॉडर्न वर्ल्ड और ब्रूस गिली की द लास्ट इंपीरियलिस्ट जैसी कई विवादित किताबों में दावा किया गया है कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद भारत और अन्य उपनिवेशों में समृद्धि और विकास लाया। दो साल पहले, YouGov के एक पोल में पाया गया कि ब्रिटेन में 32 प्रतिशत लोग देश के औपनिवेशिक इतिहास पर सक्रिय रूप से गर्व करते हैं। आर्थिक इतिहासकार रॉबर्ट सी एलन के शोध के अनुसार, ब्रिटिश शासन के तहत भारत में अत्यधिक ग़रीबी 1810 में 23 प्रतिशत से बढ़कर 20वीं शताब्दी के मध्य में 50 प्रतिशत से अधिक हो गई थी। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान मज़दूरी में भारी गिरावट आई थी। अकाल और भुखमरी के बावजूद 19वीं शताब्दी में यह इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई थी। उपनिवेशवाद से भारतीय लोगों को लाभ पहुंचाने की बात तो दूर, बल्कि यह एक मानवीय त्रासदी थी। इसे ब्रिटेन के तत्कालीन राजशाही और उनके ज़रिए नियुक्त अंग्रेज़ अधिकारियों ने निर्मित किया था।


विशेषज्ञों का दावा है कि 1880 से 1920 तक की अवधि के दौरान ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शक्ति अपने उच्चतम स्तर पर थी। यह ब्रिटेन के लिए तो फ़ायदे की बात थी, लेकिन भारत के लिए विनाशकारी साबित हुई। 1880 के दशक में शुरू हुई औपनिवेशिक शासन की जनगणना से पता चलता है कि इस अवधि के दौरान मृत्यु दर में काफ़ी वृद्धि हुई। 1880 के दशक में प्रति 1000 लोगों पर 37 की मौत होती थी, जो 1910 के दशक में बढ़कर 44 तक पहुंच गई। उस समय भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 26.7 वर्ष से घटकर 21.9 वर्ष हो गई थी। इस बीच हाल में ही वर्ल्ड डेवलपमेंट जर्नल में प्रकाशित एक पेपर में 1880 से लेकर 1920 तक के 40 साल दौरान ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीतियों के कारण मारे गए लोगों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए जनगणना के आंकड़ों का उपयोग किया। भारत में मृत्यु दर के मज़बूत आंकड़े केवल 1880 के दशक से ही मौजूद हैं। सामान्य मृत्युदर के आंकड़ों को आधार के रूप में इस्तेमाल करते हुए पेपर में बताया गया है कि 1891 से 1920 की अवधि के दौरान ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कारण लगभग 50 मिलियन अतिरिक्त मौतें हुईं। इस दौरान सामान्य रूप से भी लगभग 50 मिलियन लोगों की मौत हुई थी। ऐसे में यह आंकड़ा 100 मिलियन तक पहुंचता है।