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समलैंगिकता पर आये फैसले को मौलाना महमूद मदनी ने बताया तहज़ीब और धर्म के ख़िलाफ़-जानिए और क्या कहा ?

नई दिल्ली: जमीयत उलेमा ए हिंद ने समलैंगिकता से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भारत के धार्मिक सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ करार दिया है इस संबंध में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने अपने बयान में कहा है कि हमारा समाज पहले ही यौन अपराध और हिंसा की समस्या से दो-चार है अब ऐसे हालात में समलैंगिकता की इजाजत देना ठीक नहीं है।

मौलाना मदनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को 2013 में दिए गए अपने फैसले पर कायम रहना चाहिए था जिसमें समलैंगिकता के कानून को बनाए रखने का फैसला किया गया था, मौलाना मदनी ने बताया कि समलैंगिकता मूल प्रकृति- स्वाभाविकता से बगावत है इससे आवारगी – अश्लीलता और बेचैनी फैलेगी और यौन अपराधों में बढ़ोतरी होगी. मूलभूत अधिकार अपने स्थान पर हैं लेकिन ऐसा कार्य जिससे मानवीय समाज, परिवार और मानव जाति की प्रगति प्रभावित हो उसको आजादी के वर्ग में रखकर सही करार नहीं दिया जा सकता।

मौलाना मदनी ने कहा कि आप कुछ तत्वों के शोर-शराबे को आधार बनाकर पूरे समाज को अविश्वास और व्यवहारिक परेशानी में नहीं डाल सकते. दुनिया में प्राचीन काल से ऐसे व्यक्ति रहे हैं जो समलैंगिकता के रोगी हैं मगर सारी आसमानी – ईश्वरीय किताबों में इसे अल्लाह और उसके मूल प्रकृति की व्यवस्था से बगावत करार दिया गया है ।

मौलाना मदनी ने कहा कि जमीयत उलमा हिंद नौजवानों के सुधार की बात करती है यह सच्चाई भी है कि देश की उन्नति नौजवानों के सुधार के बिना संभव नहीं है मगर इस तरह की कानूनी इजाजत के बाद मां – बाप अभिभावकों को अपने नौजवान बच्चों के चरित्र के सिलसिले में अत्यधिक चिंता हो जाएगी और जगह-जगह उठने बैठने से एक दूसरे पर शक, शंकाएं और अविश्वास पैदा होगा।