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*सम्पादकीय*…..*मुख्तलिफ नही है मुझसे किरदार मेरी जिन्दगी के*….By-Brajesh Badal Orai

Brajesh Badal Orai
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*सम्पादकीय*
*मुख्तलिफ नही है मुझसे किरदार मेरी जिन्दगी के*!
*ये मैं ही हूं!अपने क ई रास्तों से भटका हुआ*!!
जीवन के उपवन में बीरानी जब दस्तक देने लगती है तब उम्र के मौसम का मिज़ाज भी बदलने लगता है।प्रकृति अपनी परम्परा पर हमेशा कायम रहती है। हरियाली के बाद पतझर का आना भी निश्चित है!अवतरण के बाद पल पल निर्वाण के तरफ बढती ज़िन्दगी की राहों में कभी खुशी तो कभी ग़म का सुबह शाम की तरह आना जाना नियति नियन्ता के तरफ से ही निर्धारित होता है।कर्म की खेती में पुण्य पाप की पैदावार ही परागमन की बस्ती में स्थायित्व प्रदान करती है।भाग्य की बहती गंगा में सौभाग्य की सफ़ीना पर कर्म की पैदावार लिए आदमी जब परमधाम के सागर में उतरता है तब उसे पता चलता है जिस मायावी लोक में परलोक को भूलकर यमलोक के तरफ बढ़ते कदम को मुगालते में पलकर आगे बढ़ाते रहे वह केवल दिवास्वप्न था! इस अथाह भवसागर में तो पुण्य से लदी सौभाग्य की नौका को ही मन्जिल मिली!आज का आधुनिक समाज लोक लाज लिहाज से दूर गुरुर में मशहूर होने का ख्वाब लिए जीए जा रहा है।माया का मोहिनी रूप पता भी नहीं चलने देता है कि यह नश्वर शरीर तकदीर के भंवर जाल में उलझ कर मोह के बन्धन से ता उम्र मुक्त नहीं हो पायेगा!कोई जायेगा कोई आयेगा! इस आनी जानी दुनियां की अजब कहानी है गजब की रुहानी ज़िन्दगी है! जिसमें हर कोई मतलब परस्त कोई नहीं बिला स्वार्थ हमनसी है!यही सनातन सत्य है! इससे मुक्ती की राह आसान नहीं है।जीवन में सांसों की संगति तमाम विसंगतियों के शानिध्य में सहचरी बनकर भी निर्वाध गति से चलते हुए परमसत्ता के इशारे पर आखरी सफर पर निकलने के पहले तक परमात्मा के मिलन की मंजिल की याद दिलाती रहती है।मगर मगरुर मानव स्वार्थ के दावानल में झुलसता रहता है! परमधाम के राह पर चलने की कभी सोचता ही नहीं है! मनसा वाचा कर्मणा से कभी सत्य को स्वीकार करता ही नहीं!यही तो माया का खेल है! जिसको समझने में हर कोई फेल है! जिसने समझा सन्यासी हो गया! सब कुछ छोड़कर प्रवासी हो गया!न खाने की चिन्ता रहने का घर! न दुनियां की चाहत न किसी का डर!जिनके लिए हर सांस पराई है! जिह्वा जपती केवल रघु राई- रघुराई है।उनके लिए सारा विश्व कुटुम्ब सभी अपने भाई है! वास्तविकता के धरातल पर मानव का उन्मादी मन मिट्टी के इस तन पर इठलाता मुस्कराता भविष्य को सजाने का सपना देखता रहता