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सरकार के ‘फ़ेक न्यूज़ से निपटने के लिए’ जारी नए प्रस्ताव पर न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग और डिजीटल एसोसिएशन ने आपत्ति जताई, क्या है आपत्ति?

सूचना और प्रसारण मंत्रालय के ‘फ़ेक न्यूज से निपटने के लिए’ जारी नए प्रस्ताव पर न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग और डिजीटल एसोसिएशन (एनबीडीए) ने आपत्ति जताई है. एनबीडीए ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी और आर्टिकल 19(1) के ख़िलाफ़ बताया है.

एनबीडीए की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ में कहा गया है कि नियमों में संशोधन “पीआईबी और केंद्र सरकार को बिना जांच के डिजिटल न्यूज़ कंटेट पर नियंत्रण की ताकत देगा. पीआईबी और ‘केंद्र सरकार द्वारा मान्याता प्राप्त दूसरी एजेंसियां’ को ‘फ़ेक न्यूज़’ को हटाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को निर्देश देने की ताकत देना गंभीर चिंता का विषय है.

“ये देखा गया है कि ऐसे बिना चेक और बैलेंस के सरकार को इतनी ताकत देने से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को दबाया जा सकता है और इसका मीडिया पर बहुत बुरा असर पड़ेगा.”

एनबीडीए ने कहा है कि प्रस्ताव में “केंद्र सरकार और इसके डिपार्टमेंट” को लेकर जो बातें लिखी गई हैं, उससे सरकार और उसकी नीतियो की आलोचना और विश्लेषण को दबाया जा सकेगा.

देश में न्यूज़ मीडिया को रेग्यूलेट करने के लिए पर्याप्त नियम, क़ानून और नियामक संस्थाएं हैं. इसलिए इस संशोधन से केंद्र सरकार को रेग्यूलेशन की बहत ज़्यादा ताकत देगा जिसकी न ज़रूरत है और न ही ये स्वीकार होगा. इस तरह की सेंसरशप संविधान में उल्लेखित नहीं है.

इससे पहले प्रस्ताव का एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया समेत बुद्धिजीवियों ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाम कसने की कोशिश बताकर अपनी आपत्ति दर्ज की है.

प्रस्ताव में क्या-क्या है?

PIB ने किसी ख़बर को फ़ेक कहा तो वो ख़बर हटानी होगी
सरकार से संबंधित संस्था ने किसी को भ्रामक कहा तो वो कंटेंट ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हटेगा
PIB ने फ़ेक न्यूज़ कहा तो इंटरनेट प्रोवाइडर्स को भी हटाना होगा लिंक
ऐसी न्यूज़ फ़ेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर भी नहीं दिखेगी
जानकारों के मुताबिक़, जो ताकत पीआईबी को दी जा रही है, वो अब तक आईटी एक्ट 2000 की धारा 69A के तहत आती है
प्रस्ताव में इसकी स्पष्टता नहीं कि फ़ेक किसे माना जाएगा और किसे नहीं?