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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ओवैसी ने कहा मस्जिद इस्लाम का हिस्सा है या नही क्या ये कोर्ट तय करेगा ?

नई दिल्ली:ऑल इण्डिया मजलिस ऐ इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है कि नहीं’ मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया होता तो बेहतर होता।

ओवैसी ने कहा कि न्यायपालिका इस बात पर निर्णय नहीं ले सकती और न ही उसे यह निर्णय लेना चाहिए कि किसी धर्म का ज़रूरी हिस्सा क्या है, बल्कि उस धर्म के धर्मगुरुओं को इस बारे में फैसला लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रीय महत्व का मामला है।

ओवैसी ने कहा, “तथ्य यह है कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है. एक मुसलमान होने के नाते मैं यह कह रहा हूं कि मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग है. कुरान में इसका उल्लेख है…जो बात मुझे हैरान कर रही है वह यह है कि जब तीन तलाक का मामला आया तो कुरान की आयतों का जिक्र किया गया लेकिन जब मस्जिद का मामला आया तो कुरान की आयतों को बिल्कुल भुला दिया गया.”

उन्होंने यह भी सवाल किया कि यदि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है तो अन्य धर्म स्थलों के बारे में क्या राय है।

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत के 1994 के फैसले ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है’ पर दोबारा विचार के लिए बड़ी बेंच का गठन करने से इनकार कर दिया. इसी के साथ अयोध्या मालिकाना हक मामले की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. पढ़िए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुख्य अंश…

  1. एक मुस्लिम समूह ने इस्माइल फारूकी मामले में 1994 में पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ की टिप्पणी को चुनौती दी।
  • शीर्ष अदालत में 2:1 के बहुमत वाले फैसले में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने कहा कि पहले की टिप्पणी ‘भूमि अधिग्रहण’ के सीमित संदर्भ में की गई थी।
  • टिप्पणियां न तो वादों का निपटारा करने के लिए प्रासंगिक हैं और न ही इन अपीलों पर फैसला करने के लिए।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन संदर्भों को देखना होगा जिनमें पांच न्यायाधीशों वाली पीठ ने 1994 में फैसला दिया था।
  • बेंच के तीसरे न्यायाधीश एस ए नजीर ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई.
  • उन्होंने कहा कि इस सवाल कि मस्जिद धर्म का अनिवार्य हिस्सा थी, का निर्णय ‘विश्वासों, सिद्धांतों और विश्वास के अभ्यास की विस्तृत परीक्षा’ के बिना नहीं किया जा सकता है और इस मुद्दे को पुनर्विचार के लिए बड़ी खंडपीठ को भेजे जाने का समर्थन किया।
  • न्यायमूर्ति नजीर ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के भूमि विवाद मामले में भी 1994 के फैसले की झलक मिली थी