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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में मोदी सरकार के #नोटबंदी के फ़ैसले को सही ठहराया : रिपोर्ट

देश की सर्वोच्च अदालत ने साल 2016 में हुई नोटबंदी के ख़िलाफ़ दायर 58 याचिकाओं पर अपना फ़ैसला सुना दिया है.

अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक और याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद बीते सात दिसंबर को अपना फ़ैसला सुरक्षित कर लिया था.

याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार के इस फ़ैसले से जुड़े अलग-अलग पहलुओं को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने अपने फ़ैसले में नोटबंदी के फ़ैसले को सही ठहराया है. हालांकि, जस्टिस नागरत्ना ने अपने फ़ैसले में इसे ग़ैर-क़ानूनी बताया है.

जस्टिस एस नज़ीर की पीठ ने किन वजहों से याचिकाकर्ताओं की दलीलों को ख़ारिज किया और किस आधार पर नोटबंदी के फ़ैसले को सही ठहराया है, ये जानना अहम है.

लाइव लॉ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, जस्टिस गवई ने कहा है कि भारतीय रिज़र्व बैंक क़ानून की धारा 26(2) में दी गयी शक्तियों के आधार पर किसी बैंक नोट की सभी सिरीज़ को प्रतिबंधित किया जा सकता है. और इस धारा में इस्तेमाल किए गए शब्द ‘किसी’ को संकीर्णता के साथ नहीं देखा जा सकता.

उन्होंने कहा कि इस धारा में जिस ‘किसी’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है, उसकी प्रतिबंधित व्याख्या नहीं की जा सकती. आधुनिक चलन व्यावहारिक व्याख्या करना है. ऐसी व्याख्या से बचना चाहिए जिससे अस्पष्टता पैदा हो. और व्याख्या के दौरान क़ानून के उदेश्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को सेंट्रल बोर्ड के साथ सलाह-मशविरा करने की ज़रूरत होती है और ऐसे में ये इनबिल्ट सेफ़गार्ड है; आर्थिक नीति के मुद्दे पर बेहद संयम बरतने की ज़रूरत.

हालांकि, जस्टिस नागरत्ना ने कहा है कि ‘सभी नोटों को प्रतिबंधित किया जाना, बैंक की ओर से किसी बैंक नोट की किसी सिरीज़ को चलन से बाहर निकाले जाने से कहीं ज़्यादा गंभीर है. ऐसे में इस मामले में सरकार को क़ानून पास कराना चाहिए था.

जस्टिस नागरत्ना ने कहा, जब नोटबंदी का प्रस्ताव केंद्र सरकार की ओर से आता है तो ये आरबीआई क़ानून की धारा 26(2) के तहत नहीं आता है. इस मामले में क़ानून पास किया जाना चाहिए था. और अगर गोपनीयता की ज़रूरत होती तो इसमें ऑर्डिनेंस लाने का रास्ता अपनाया जा सकता था.

वहीं, जस्टिस गवई ने कहा है कि इस क़दम के लिए जिन उद्देश्यों को ज़िम्मेदार बताया गया था, वो सही उद्देश्य थे.


कितनी याचिकाएं और कैसी दलीलें?
केंद्र सरकार ने साल 2016 में 8 नवंबर की शाम एकाएक 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था.

पीएम मोदी ने स्वयं देश के नाम जारी अपने संदेश में इस फ़ैसले का एलान किया था.

इसके बाद कई हफ़्तों तक देश भर में बैंकों और एटीएम के सामने पुराने नोट बदलकर नए नोट हासिल करने वालों की लंबी क़तारें देखी गयी थीं.

इसके बाद कई पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में इसके ख़िलाफ़ याचिकाएं दायर की थीं. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी 58 याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सोमवार का फ़ैसला सुनाया है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई शुरू करने से पहले कहा था कि अगर ‘ये मुद्दा अकादमिक है तो अदालत का समय बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है. क्या हमें समय बीतने के बाद इसे इस स्तर पर उठाना चाहिए?’

इसके बाद याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया था कि सवाल इस बात का है कि क्या भविष्य में इस क़ानून का इस तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.

क्या बोले थे याचिकाकर्ताओं के वकील

आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) के तहत, ‘केंद्र सरकार आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की अनुशंसा पर भारतीय राजपत्र में एक अधिसूचना जारी करके बैंक नोटों की किसी भी सिरीज़ को आम लेन-देने के लिए अमान्य ठहरा सकती है. हालांकि, अधिसूचना में बताई गई संस्था में ऐसे नोट अधिसूचित अवधि तक मान्य रहेंगे.’

याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा था कि आरबीआई एक्ट की इस धारा के तहत नोटबंदी की अनुशंसा आरबीआई से आनी चाहिए थी, लेकिन इस मामले में केंद्र सरकार ने आरबीआई को सुझाव दिया था जिसके बाद उसने इस फ़ैसले की अनुशंसा की.

उन्होंने कहा था कि इससे 1946 और 1978 में नोटबंदी करने के लिए सरकारों को संसद में क़ानून पारित करवाना पड़ा था.

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, चिदंबरम ने इस मामले में केंद्र सरकार पर नोटबंदी के फ़ैसले से जुड़े दस्तावेज़ों को कोर्ट के सामने नहीं रखने का आरोप भी लगाया है.

उन्होंने ये भी सवाल उठाया था कि क्या सेंट्रल बोर्ड की मीटिंग में नियमों के तहत न्यूनतम सदस्यों की संख्या वाली शर्त पूरी की गयी थी.

क्या बोले थे आरबीआई के वकील
आरबीआई की ओर से कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता ने कहा था कि ‘ये धारा प्रक्रिया शुरू होने पर बात नहीं करती है. ये बस इतना कहती है कि प्रक्रिया इस धारा में रेखांकित किए गए अंतिम चरणों के बिना पूरी नहीं होगी.’

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ‘हमने इसकी अनुशंसा की थी.’

इससे पहले लिए गए नोटबंदी के फ़ैसलों पर आरबीआई के वकील जयदीप गुप्ता ने कहा कि इन मामलों में सरकार ने क़ानून बनाया था क्योंकि आरबीआई ने संबंधित प्रस्तावों पर हामी नहीं भरी थी.

उन्होंने आरबीआई की ओर से अदालत में दस्तावेज़ पेश न किए जाने से जुड़े आरोपों का भी खंडन किया.

आरबीआई ने ये भी बताया कि सेंट्रल बोर्ड मीटिंग के दौरान आरबीआई जनरल रेगुलेशंस, 1949 की कोरम (बैठक में एक निश्चित सदस्यों की संख्या) से जुड़ी शर्तों का पालन किया गया.

रिज़र्व बैंक ने बताया है कि इस बैठक में आरबीआई गवर्नर के साथ-साथ दो डिप्टी गवर्नर और आरबीआई एक्ट के तहत नामित पांच निदेशक शामिल थे. ऐसे में क़ानून की उस शर्त का पालन किया गया था जिसके तहत तीन सदस्य नामित होने चाहिए.

चिदंबरम की ओर से तर्क दिया गया था कि सरकार आरबीआई क़ानून की धारा 26(2) के तहत एक विशेष मूल्य के सभी नोटों को बंद नहीं कर सकती. उन्होंने कोर्ट से कहा कि आरबीआई क़ानून की धारा 26(2) की दोबारा व्याख्या करने का आग्रह किया जाएगा ताकि इस धारा में दर्ज शब्द ‘किसी भी’ को ‘कुछ’ के रूप में पढ़ा जाए.

इसका विरोध करते हुए जयदीप गुप्ता ने कहा कि इस तरह की व्याख्या सिर्फ़ भ्रम पैदा करेगी.

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता इस अदालत से मांग कर रहे हैं कि यह केंद्र सरकार की उस शक्ति को छीन ले, जिसके ज़रिए वह आरबीआई के सुझाव पर अति मुद्रास्फीति जैसे मौकों पर चलन में मौजूद समूची मुद्रा को वापस ले सकती है.