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हज़रत अली कहते हैं कि क्रोध पागल पन की एक क़िस्म है

क्रोध , खतरे के आभास के समय एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है जिस से आक्रामकता पैदा होती है जो किसी भी ख़तरे का मुक़ाबला करने के लिए मनुष्य के भीतर उत्पन्न होने वाली आवश्यक भावना है।

इस लिए एक विशेष सीमा तक क्रोध, मनुष्य के अस्तित्व के लिए ज़रूरी है लेकिन क्रोध की विभिन्न मात्रा, क्रोधित होने वाले की विभिन्न मनोदशा का वर्णन करती है, कभी यह क्रोध, खतरे की वजह से होता है , कभी अपमान की वजह से तो कभी दुख की वजह से। क्रोध भी पीड़ा की ही भांति होता है जो स्वंय कुछ होने से अधिक शरीर में किसी अन्य प्रक्रिया का चिन्ह होती है। पीड़ा हमें यह बताती है कि हमारे शरीर में सब कुछ ठीक नहीं है, हमें डॅाक्टर के पास जाना चाहिए। क्रोध भी ऐसा ही है।

विभिन्न लोग क्रोध के समय अलग अलग तरह की प्रतिक्रिया दिखाते हैं। क्रोध प्रकट करने का हर व्यक्ति का तरीका, उसके अनुभव और उसके मूल्यों और आस्थाओं पर निर्भर करता है। कुछ लोगों का यह मानना है कि आक्रामकता से उनके शरीर में पैदा होने वाला तनाव खत्म हो जाता है। वह लोग चीख चिल्ला कर, गाली गलौज करके, मार पीट करके या चीज़ें तोड़ फोड़ कर अपने भीतर शक्ति का आभास करते हैं और उन्हें लगता है कि इस प्रकार से उनकी दशा ठीक हो जाएगी और शारीरिक व मानसिक तनाव खत्म हो जाएगा लेकिन सच यह है कि क्रोध में यह सब कुछ करने से वह स्वंय को बेहद नुक़सान पहुंचा रहे हैं जिसका अनुमान उन्हें आगे चल कर होगा।

हज़रत अली कहते हैं कि क्रोध पागल पन की एक क़िस्म है अगर गुस्सा उतर जाए तो समझो पागलपन खत्म वर्ना जारी रहता है। यदि हम देखें तो यह बिल्कुल वास्तविकता है। क्रोध में मनुष्य की फैसले की ताक़त बेहद कमज़ोर हो जाती है, उसमें दूरदर्शिता बिल्कुल ही बाकी नहीं रहती और सोचने समझने के बजाए वह तत्काल रूप से फैसला करने की कोशिश करता है। वास्तव में क्रोध मनुष्य में ईश्वर की ओर से इसी लिए रखा गया है ताकि वह तत्काल रूप से अपनी रक्षा कर सके लेकिन मनुष्य इसे गलत जगह पर इस्तेमाल करता है। इसी लिए कहा जाता है कि जब मनुष्य गुस्से में रहे तो उसे किसी तरह का फैसला करने के बजाए पहले गुस्से पर क़ाबू करने की कोशिश की जाए उसके बाद जब गुस्सा खत्म हो जाए तभी कोई फैसला करे।

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जब गुस्सा आने पर उसे प्रकट नहीं करते बल्कि वह अपना क्रोध दबा लेते हैं और किसी भी प्रकार से उसे प्रकट नहीं होने देते। यह लोग अपना क्रोध खत्म नहीं करते बल्कि उसे दबा कर और छुपा कर रखते हैं। धीरे धीरे उसका ढेर लग जाता है और फिर वह ढेर कभी हो सकता है किसी साधारण सी बात पर ढह जाए और क्रोध की छुपी ज्वाला धधक जाए। इस तरह से क्रोध हो सकता है गलत रूप में प्रकट कर दिया जाए। इस तरह से हम देखते हैं कि जो लोग अपना गुस्सा प्रकट नहीं करते, बल्कि पी जाते हैं उनमें मानसिक रोग पैदा हो सकते हैं। इसके अलावा ऐसे लोग दिल की बीमारियों , कैंसर , उक्त रक्त चाप और अवसाद जैसी बीमारयों में ग्रस्त हो सकते हैं।

क्रोध को प्रकट करने का सब से अच्छा तरीक़ा सामने वालों के खिलाफ आक्रामकता के बजाए अपनी चिंता से उन्हें अवगत कराना और अपनी भावनाओं को प्रकट करना है। इस शैली में अपने मन की बात की जाती है, अपनी चिंता से सामने वाले को अवगत किया जाता है लेकिन उसका अपमान नहीं किया जाता। यह सब कुछ इस प्रकार से बयान किया जाता है कि सामने वाला रक्षात्मक दशा अपनाने पर विवश नहीं होता। इस शैली में सामने वाले का अपमान नहीं किया जाता और न ही उनके भीतर आत्मग्लानि पैदा करने की कोशिश की जाती है। इन अवसरों पर प्रायः अच्छे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है और ” मैं ” को ” तुम” पर वरीयता दी जाती है अर्थात सामने वाले को कटघरे में खड़े करने के बजाए अपनी भावनाओं से उसे अवगत कराना बेहतर होता है।

यहां पर यह भी उल्लेख करना ज़रूरी है कि क्रोध के समय शरीर में कुछ प्रकार के परिवर्तन पैदा होते हैं उन पर ध्यान देना ज़रूरी है। पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों ने इस अवसर पर मन को शांत करने के उपाय बताए हैं। उनके कथनों में बताया गया है कि क्रोध के समय मन को शांत करने का एक उपाय यह है कि मनुष्य अपनी दशा बदल ले। अर्थात अगर क्रोध के समय वह खड़ा है तो तत्काल बैठ जाए या बैठा है तो खड़ा हो जाए, या अपनी जगह बदल दे, घर में गुस्सा आए तो बाहर निकल जाए, बाहर गुस्सा आए तो घर चला जाए। यह उपाय, क्रोध को शांत करने में बेहद प्रभावशाली होता है।

शांत होने के उपाय, वास्तव में क्रोध पर नियंत्रण का एक मार्ग है। वास्तव में क्रोध को शांत करने में वह व्यक्ति जिसकी वजह से क्रोध भड़का हो अहम भूमिका रखता है। इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि क्रोध शांत होने के बाद भी उस पर ध्यान दिया जाए। अर्थात यदि किसी व्यक्ति को आप की वजह से गुस्सा आया हो और फिर वह शांत हो गया हो तो इसे ही पर्याप्त न समझा जाए बल्कि बाद में भी क्रोध के कारणों पर उसके साथ चर्चा की जाए। यह सोचना बिल्कुल गलत है कि चलो क्रोध शांत हो गया है अब उसके बारे में बात करने से क्या फायदा। क्योंकि वास्तव में जिसका क्रोध शांत होता है वह पूरी तरह से खत्म नहीं होता बल्कि उनकी चिंगारी बाकी रहती है इस लिए बाद में भी उस पर पानी डाले जाने की ज़रूरत होती है।

क्रोध वास्तव में एक चिन्ह है जिससे पता चलता है कि क्रोधित व्यक्ति को किसी व्यक्ति या किसी घटना से समस्या है और कहीं न कहीं कोई गड़बड़ है इस लिए यदि समस्या का निवारण न किया जाएगा तो उसके परिणाम में आने वाले क्रोध का भी स्थायी निवारण नहीं होगा लेकिन इसके साथ यह भी सोचना चाहिए अपनी भावनाएं प्रकट करना हर व्यक्ति का अधिकार होता है और हर व्यक्ति को अपनी घृणा , क्रोध, खुशी सब कुछ प्रकट करने का अधिकार है लेकिन यह काम सार्थक रूप से होना चाहिए और सीमा के भीतर रहते हुए ताकि एेसा न हो कि आप अपना एक अधिकार कुछ इस प्रकार इस्तेमाल करें कि दूसरों के अधिकारों का हनन हो जाए।