धर्म

हज़रत मुहम्मद स.अ.व. फ़रमाते हैं, “लाज़मी तौर पर जमआत में रहो”…By-Razi Chishti

Razi Chishti
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अल्लाह सुबहानहूतआला ने फ़रमाया कि दीन में फूट मत डालो(3:103), दीन के टुकड़े टुकड़े न करना(6:159), अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़े रहना(3:103), और हज़रत मुहम्मद स.अ.व. फ़रमाते हैं कि “लाज़मी तौर पर जमआत में रहो”, फ़िर भी हमने ठीक इसका उल्टा किया और फ़िरकों में बंटते चले गए और कमाल की बात यह है कि जब कोई हमारी इन ख़राबियों की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित कराता है तो उसी को काफ़िर और गुमराह कहना शुरू कर देते हैं. हम इन तमाम नाफ़रमानियों के बाद भी ईमान पर होने का दावा करते हैं. इबलीस सिर्फ़ एक नाफ़रमानी करके ईमान से खारिज होगया फ़िर हम भला इतनी नाफ़रमानियों के बाद भी ईमान पर कैसे हो सक्ते हैं? फ़िरक़े में क़ैद मुसलमानों के साथ अगर शैतान न होता तो वो क्यों एक दूसरे से नफ़रत करते हैं और गाली गलौच करने पर आमदह रहते है? हम सब नाफ़रमानी करने पर आमादा हैं. हज़रत मुहम्मद स.अ.व. ने फ़रमाया है कि;
“मेरी सारी उम्मत जन्नत में दाख़िल होगी सिवाए उसके जिसने इंकार किया; सहाबा कराम ने अर्ज़ किया: या रसूलल्लाह किसने इंकार किया? आप स.अ.व. ने फ़रमाया “जिसने मेरा हुक्ममाना वो जन्नत मे दाख़िल होगा और जिसने मेरी नाफ़रमानी की उसने इंकार किया” (सही बुख़ारी 2655:6 न॰ 6801; मुसनद अहमद 361:2 न॰ 8713)
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