धर्म

हिजरत से तमिर मस्जिद कुबा तक

Shams Bond
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#ختم_رسل (٣٢)
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⭐ हिजरत से तमिर मस्जिद कुबा तक ⭐

ठहरने से मा क़ब्ल झाड़ा गया था
जो मिट्टी और झाड़ियों से भरा था
शुगाफ और दर्र: जहां जा ब जा था
जिन्हे चाक ए तहबंद से बंद किया था
मगर उसमें रख़ने जो दो रह गए थे
तो पांव से #सिद्दीक़ ने भर दिए थे
#हुज़ूर उनके ज़ानो पे सर को रखे थे
थकावट से अब चूर वो सो गए थे
हिफ़ाज़त में #सिद्दीक़ जागे हुए थे
ख्यालात पैहम से घबरा रहे थे
कोई मौज़ी पांव को डसने लगा था
तो ज़हर आब ऐनी बरसने लगा था
था ये फ़ैसला ज़िन्दगी रूठ जाए
ये नमनाक दीद: बहे , फूट जाए
था डर दामन ए ज़ब्त कब छूट जाए
कहीं ख़्वाब ए #आक़ा नहीं टूट जाए
हिले तक नहीं #यार_ए_ग़ार ऐसा होगा
जो #बू_बक्र_सिद्दीक़ के जैसा होगा
मगर अश्क ए बेताब के चंद क़तरे
नबी के जो रुख़सार ए अनवर पे टपके
तो बोझल तबीयत हुई, जाग उटठे
जो देखे अबू बक्र के ज़ख़्म गहरे
नबी ने लुआब ए दुहन उसपे रखा
जो पांव था ज़ख़्मी,हुआ पल में अच्छा
उधर अहले मक्का में थी अज़तरारी
इरादों की शब पर हुई सुबह भारी
#अली पर बहुत उनको गुस्सा था तारी
तो #उस्मा से पूछा उन्हें थाप मारी
मगर दोनों से हुआ जब कुछ ना हासिल
तो तय पाए अब दूसरे कुछ मराहिल
वो सब रास्तों पर थे पहरा बिठाए
नक़ीबों से ऐलान तक ये कराए
#अबु_बक्र व #अहमद को जो शख्स पाए
वो ज़िंद: या मुर्द: उन्हें लेे के आए
हर इक दो का सरे आम ये था
कि सौ ऊंट लेे जाए ईनाम ये था
गरां माय: ईनाम था लोग दौड़े
निशानात ए अक़दाम के खोजी निकले
प्यादों के और शहसवारों के दस्ते
पहाड़ों में और वादियों में थे बिखरे
ये गर्दुन ए हिर्स व हवस के सितारे
तआकब में सब रास्ते छान मारे
#बदीउज़्ज़मां_सहर