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हिमालय क्षेत्र में विनाशकारी भूकंप आने का ख़तरा मंडरा रहा है : 38 हज़ार साल पहले 9.5 की तीव्रता का विनाशकारी भूकंप ”कहाँ” आया : रिपोर्ट

हिमालय क्षेत्र में अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा है कि भारतीय प्लेट के ऊपर स्थित यूरेशियन प्लेट के नीचे लगातार बड़े पैमाने पर ऊर्जा जमा होना चिंता का विषय है. आने वाले समय में भूकंप की और घटनाओं की प्रबल आशंका है.

इस सप्ताह भारत और नेपाल के कुछ हिस्सों में लगे भूकंप के झटकों के कारण नेपाल में कम से कम छह लोगों की मौत हो गई. बुधवार रात को अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए. इस बीच, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हिमालय क्षेत्र में एक भूकंप आने का खतरा मंडरा रहा है बड़े इलाके पर असर डाल सकता है. वैसी स्थिति में जान-माल का नुकसान न्यूनतम करने के लिए पहले से बेहतर तैयारी जरूरी है.

आईआईटी कानपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसरों ने भी भविष्य में एक बड़े भूकंप के आने की आशंका जताई है. उनका कहना है कि धरती के नीचे भारतीय प्लेट व यूरेशियन प्लेट के बीच टकराव बढ़ रहा है.

भूकंप पर शोध करने वाले वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून के वैज्ञानिकों के मुताबिक, हिंदुकुश पर्वत से पूर्वोत्तर भारत तक का हिमालयी क्षेत्र भूकंप के प्रति बेहद संवेदनशील है. उसके खतरों से निपटने के लिए संबंधित राज्यों में कारगर नीतियां नहीं हैं जो बेहद चिंताजनक है.

वैज्ञानिकों ने चेतावनी है कि भूकंप के प्रति संवेदनशील इलाकों में वृद्धि के कारण हिमालय क्षेत्र की जनसांख्यिकी में भी बदलाव आ सकता है. विशेषज्ञों ने हिमालय क्षेत्र में एकत्र हो रही भूगर्भीय ऊर्जा और नए भूस्खलन जोन के मद्देनजर सुरक्षित स्थानों को चिन्हित करने की सलाह दी है.

भूकंप की आशंका
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के जियोलॉजिस्ट अजय पॉल ने डीडब्ल्यू को बताया, “भारतीय प्लेट पर यूरेशियन प्लेट के लगातार दबाव के कारण इसके नीचे जमा होने वाली ऊर्जा समय-समय पर भूकंप के रूप में बाहर निकलती रहती है. हिमालय के नीचे ऊर्जा के संचय के कारण भूकंप आना एक सामान्य और निरंतर प्रक्रिया है. लेकिन कभी भी एक बड़े भूकंप की प्रबल आशंका हमेशा बनी हुई है.” उनके मुताबिक, भविष्य में आने वाले भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर सात या उससे अधिक हो सकती है. लेकिन फिलहाल यह बताना संभव नहीं है कि वैसा भूकंप कब आएगा.

बीते डेढ़ सौ वर्षों के दौरान हिमालयी क्षेत्र में चार बड़े भूकंप दर्ज किए गए हैं. इनमें वर्ष 1897 में शिलांग, 1905 में कांगड़ा, 1934 में बिहार-नेपाल और 1950 में असम में आए भूकंप शामिल हैं. उसके बाद वर्ष 1991 में उत्तरकाशी, 1999 में चमोली और 2015 में नेपाल में भी भयावह भूकंप आया था. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर भूकंप से बचाव की ठोस रणनीति बनाने की स्थिति में जानमाल के नुकसान काफी हद तक कम किया जा सकता है. विशेषज्ञ इस मामले में जापान की मिसाल देते हैं. डा. पॉल का कहना है कि बेहतर तैयारियों के कारण लगातार मध्यम तीव्रता के भूकंप की चपेट में आने के बावजूद वहां जान-माल का ज्यादा नुकसान नहीं होता है.

वाडिया इंस्टीट्यूट के एक और वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट नरेश कुमार ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि उत्तराखंड को भूकंप के प्रति संवेदनशीलता के लिहाज से जोन चार और पांच में रखा गया है. संस्थान ने भूकंप और उसके कारण होने वाले भूस्खलन पर केंद्र सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी है. उसके पहले जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) ने भी वर्ष 2013 की आपदा के बाद पैदा हुई स्थिति पर एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी. वाडिया संस्थान की रिपोर्ट में भूस्खलन और बादल फटने के कारण आने वाली आपदा से बचने के लिए आबादी को वहां से हटाने की सिफारिश की गई है.


आईआईटी कानपुर की टीम ने भी दी चेतावनी
आईआईटी, कानपुर के वैज्ञानिकों की एक टीम ने भी अपनी शोध रिपोर्ट में कहा है कि हिमालयन रेंज यानी उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कभी भी रिक्टर स्केल पर 7.8 से 8.5 की तीव्रता वाला भूकंप आ सकता है. उनका कहना है कि धरती के नीचे भारतीय प्लेट व यूरेशियन प्लेट के बीच टकराव बढ़ रहा है. विभाग के प्रो. जावेद एन मलिक ने डीडब्ल्यू को बताया कि उत्तराखंड के रामनगर इलाके में तीव्र भूकंप का खतरा मंडरा रहा है. आने वाले समय में रामनगर इलाके में 7.5 से लेकर 8 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाला भूकंप आने की आशंका है.

प्रो. जावेद और उनकी टीम पूरे देश में भूकंप के कारण और उसके बाद पैदा होने वाली परिस्थिति का अध्ययन कर रही है. वह बताते हैं, “उत्तराखंड के रामनगर इलाके में वर्ष 1803 में भूकंप आया था. उस दौरान भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.5 रहने का अनुमान है. उसके बाद धरती के नीचे ऊर्जा लगातार एकत्रित हो रही है. इसलिए बड़े पैमाने पर भूकंप आना तय है.”

आखिर ऐसा भूकंप कब तक आने का अंदेशा है? प्रोफेसर जावेद कहते हैं, “यह कभी भी आ सकता है. लेकिन पहले से उसकी निश्चित भविष्यवाणी संभव नहीं है. हिमालय अभी पूरी तरह से शांत है. यह तूफान के आने से पहले वाली शांति भी हो सकती है.”

तमाम वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि भूकंप को रोकना या उसकी पहले से सटीक भविष्यवाणी करना संभव नहीं है. लेकिन संवेदनशील इलाकों में भूकंपरोधी निर्माण को बढ़ावा देकर और स्थानीय लोगों में जागरुकता अभियान चला कर भूकंप की स्थिति में जानमाल के नुकसान को काफी हद तक कम जरूर किया जा सकता है.

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प्रभाकर मणि तिवारी

 

38 हजार साल पहले आए भूकंप के विनाश का पता चला

07.04.2022७ अप्रैल २०२२

वैज्ञानिकों ने चिली में 38,000 साल पहले आए एक विनाशकारी भूकंप के बारे में पता लगाया है जिसने देश के भूगोल को बदलकर रख दिया था. चिली में कई भयानक भूकंप आ चुके हैं.

38 हजार साल पहले 9.5 की तीव्रता का एक विनाशकारी भूकंप आया, जो अपने साथ सूनामी भी लाया. नतीजतन 66 फुट तक ऊंची लहरों ने चिली के आटाकामा मरूस्थल के तट पर आक्रमण किया. ताजा अध्ययन में पृथ्वी के इतिहास की यह रोमांचक जानकारी मिली है.

चिली यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में पता चला है कि विश्व के सबसे सूखे रेगिस्तान में 38 हजार साल पहले क्या हुआ था. बुधवार 6 अप्रैल को यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है. इसके मुताबिक नजाका और दक्षिण अमेरिकी टेक्टॉनिक प्लेटों के बीच घर्षण से एक विनाशकारी भूकंप आया था. रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 9.5 रही होगी. भूकंप के कारण सूनामी आई जिससे 15-20 मीटर ऊंची लहरें पैदा हुईं.

सात साल चला अध्ययन
शोधकर्ताओं में से एक गेब्रिएल ईस्टन ने बताया, “उत्तरी चिली और आंतोफगास्ता इलाकों के बीच ऐसे प्राचीन समुद्र तट हैं जिनकी ऊंचाई समुद्र तल से चार से सात मीटर तक है. समुद्र के जलस्तर में हुए बदलाव से इन तटों के बने होने की बात समझ नहीं आती. ये टेक्टॉनिक प्लेटों में घर्षण के कारण आए भूकंप से ही बने हैं.”

एक अन्य पुरातत्वविद डिएगो सालजार कहते हैं, “हमारा मानना है कि इस घटना ने बहुत बड़ी संख्या में जानें ली होंगी. या फिर, इसके कारण बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए होंगे और अन्य जगहों पर जाकर बस गए होंगे.”

साइंस पत्रिका में छपा यह अध्ययन सात वर्ष में पूरा हुआ है. इसका मकसद यह समझना था कि प्राचीन काल में इस तरह की भयानक प्राकृतिक आपदाएं कितनी बार आती होंगी.

चिली के भूकंप
चिली को तथाकथि ‘पैसिफिक रिंग ऑफ फायर’ पर बसा माना जाता है. ‘पैसिफिक रिंग ऑफ फायर’ के रूप में जाना जाने वालायह इलाका भूकंप के मद्देनजर बहुत सक्रिय माना जाता है. प्रशांत महासागर के किनारे पर फैले इस क्षेत्र में अलग-अलग प्लेटें पृथ्वी की सतह के नीचे मिलती हैं और आपस में टकराती रहती हैं. इस कारण इलस इलाके में भयानक भूकंप आते रहे हैं.

2010 में चिली के दक्षिणी तटीय इलाके में 8.8 की तीव्रता का भूकंप आया था जिसने सैकड़ों जानें ले ली थीं. ईस्टन इस बात पर जोर देते हैं कि उत्तरी चिली में जब खतरों का आकलन किया जाता है तो इस क्षमता के भूकंप और सूनामी के बारे में सोचा जाना चाहिए. 6 अप्रैल, बुधवार को भी चिली और अर्जेंटीना के पास वाले समुद्री क्षेत्र में 6.4 की तीव्रता वाला भूंकप आया था जिसका केंद्र अर्जेंटीना के सान अंटोनियो डे लोस कोबरेस से 73 किलोमीटर दूर था.

22 मई 1960 को चिली में 9.4 की तीव्रता वाला भूकंप आया था जिसमें हजारों लोग मारे गए थे. इस भूकंप ने 25 मीटर तक ऊंची लहरों वाली सूनामी भी पैदा की थी. ‘ग्रेट चिलीयन अर्थक्वेक’ के नाम से जाना जाने वाला यह भूकंप 10 मिनट तक जारी रहा था और इसने दक्षिणी चिली के वालदीविया शहर को तबाह कर दिया था.

वीके/एए (रॉयटर्स)