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फ़ोन से यात्रा के टिकट बुक कराना अच्छी आदत नहीं, ये महंगा पड़ता है : रिपोर्ट

अब ज्यादा संख्या में लोग यात्रा टिकट बुक कराने के लिए फोन का ही इस्तेमाल करते हैं. लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि यह कोई अच्छी आदत नहीं है और लोग इस चक्कर में ज्यादा खर्च रहे हैं.

उस बात को 15 साल हो चुके हैं जब पहला आईफोन बाजार में आया था. तब से लोगों की खरीददारी की आदतें लगातार बदलते हुए अब क्रांतिकारी रूप से दो दशक पहले के मुकाबले अलग हो चुकी हैं. अमेरिका में 3,250 लोगों के बीच हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक फरवरी 2022 में 51.2 लोगों ने यात्राओं के लिए मोबाइल से भुगतान किया.

युवाओं के बीच मोबाइल से भुगतान का चलन सबसे ज्यादा है. 2021 में एक ऑनलाइन पेमेंट कंपनी क्लार्ना ने 13,000 लोगों के बीच एक सर्वे किया तो पता चला कि ऑनलाइन पेमेंट की आदत युवाओं में सबसे ज्यादा है. 25-40 साल के बीच के 48 फीसदी लोग ऑनलाइन शॉपिंग फोन से ही करते हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 34 प्रतिशत था.

लोगों के व्यवहार से दिख रहा है कि अब यात्राओं संबंधी खरीददारी जैसे कि टिकट खरीदना या होटल बुक कराना आदि फोन से करने का चलन बढ़ रहा है और संभव है कि आने वाले दिनों में कंप्यूटर पर यात्रा बुकिंग बंद ही हो जाए. कई ट्रैवल ऐप तो इस रास्ते पर आ भी चुकी हैं. मसलन, ट्रैवल सर्च इंजन हॉपर में कुछ विशेष बुकिंग ऐप से ही संभव हैं.

लेकिन एक बात की ओर ग्राहकों का ध्यान अब भी कम जाता है कि फोन से बुकिंग महंगी पड़ सकती है. इसके कई कारण हैं.

ड्रिप प्राइसिंग
पिछले एक दशक में मोबाइल से शॉपिंग का चलन बढ़ने के साथ-साथ इस बात में भी बदलाव आए हैं कि कंपनियां कमाई कैसे करती हैं. बैगेज के लिए अलग धन से लेकर सीट का चुनाव करने के लिए ज्यादा पैसे देने तक कई तरह के ऐसे चार्ज लगना शुरू हो गया है, जो पहले नहीं होता था. मसलन, कुछ एयरलाइंस विमान की सफाई के लिए टिकट में अलग से पैसा ले रही हैं, तो कुछ होटलों में लॉजिंग चार्ज अतिरिक्त लिया जाने लगा है

अमेरिकी ब्यूरो ऑफ ट्रांसपोर्टेशन स्टैटिस्टिक्स के आंकड़े बताते हैं कि वहां की एयरलाइन कंपनियों ने 2021 में 3.5 अरब डॉलर सिर्फ बैगेज फीस से जुटाया है. मार्किटिंग साइंस नामक पत्रिका में 2021 में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ था, जिसमें बताया गया कि अतिरिक्त खर्चों के लिए, जिन्हें ‘ड्रिप प्राइसिंग’ कहा जाता है, ग्राहकों के फैसले पूरी तरह समझदारी से नहीं लिए जाते. यानी उनके फैसलों में इन कीमतों की गणना शामिल नहीं होती. अक्सर वे जब ऑनलाइन कीमतों की तुलना करते हैं तो शुरुआती कीमतों पर अपने फैसले लेते हैं और हो सकता है कि ड्रिप प्राइसिंग के बाद यह कीमत दूसरों से ज्यादा साबित हो.

शुरुआती कीमत ज्यादा होगी
बेंटली यूनिवर्सिटी में मार्किटिंग पढ़ाने वालीं असिस्टेंट प्रोफेसर शेली सैंटाना कहती हैं, “जब कंपनियां ड्रिप प्राइसिंग की रणनीति अपनाती हैं तो उनकी शुरुआती कीमत दूसरी कंपनियों से हमेशा कम होती है. लेकिन एक बार बुकिंग शुरू हो जाने पर वे अतिरिक्त खर्चे जोड़ना शुरू करती हैं जैसे कि सीट का विकल्प चुनने के लिए या बैगेज के लिए.”

सस्ती एयरलाइंस में यात्रा के लिए बुकिंग करवा चुके लोग इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि कैसे सस्ती दिखने वाली टिकट ज्यादा महंगी पड़ती है, जब उन्हें सीट से लेकर बैग तक और खाने से लेकर पानी तक के अलग पैसे देने पड़ते हैं. लेकिन सैंटाना और उनके साथी अपने अध्ययन में यह जानकार हैरान रह गए कि जब आखिर में टिकट की कीमत दूसरों से कहीं ज्यादा होने का पता चल गया, तब भी ग्राहक विकल्पों से तुलना करने को लेकर कितने अनिच्छुक थे.

सैंटाना कहती हैं, “ग्राहक सोचते हैं कि अगर वह खोजने प्रक्रिया फिर से शुरू करेंगे तो वे उतना पैसा नहीं बचा पाएंगे जितनी उन्हें उम्मीद है.” यानी दोबारा कंपेयर और सर्च करने के झंझट से बचने के लिए लोग ज्यादा पैसे देकर टिकट बुक करवा लेते हैं.

विशेषज्ञ खरीददारी के लिए मोबाइल को सही जरिया नहीं मानते. जाहिर है कि इस पर ऑर्डर करना आसान और जल्दी होता है लेकिन यात्रा जैसे बड़े खर्चों के लिए बात सिर्फ जल्दी और आसानी पर निर्भर नहीं करती. इसके लिए कई टैब बदलने पड़ते हैं, कई पॉपअप आते हैं और कई जगह सूचनाएं भरनी पड़ती हैं, तब जाकर सबसे अच्छी डील मिलती है.

लिहाजा, विशेषज्ञ कहते हैं कि यात्रा जैसे खर्चों के लिए फोन की जगह कंप्यूटर एक ज्यादा अच्छा जरिया है. सैंटाना कहती हैं, “मैं लगभग हमेशा यात्रा के लिए खरीददारी कंप्यूटर पर करती हूं. मुझे कई टैब खोलकर, कई वेबसाइटों के बीच में तुलना करना और फिर यह सुनिश्चित करना अच्छा लगता है कि मैं अलग-अलग कंपनियों के बीच की कीमतों को समझ रही हूं.”

वीके/एए (एपी)