इतिहास

1857 की अनसुनी कहानियां….बहादुर शाह जफ़र के तमाम बेटों के साथ क्या क्या हुआ ??

Dushyant Singh Nagar
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1857 की अनसुनी कहानियां!
बहादुर शाह जफर के तमाम बेटों के साथ क्या क्या हुआ ??
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….तत्कालीन अंग्रेजी ऑफिसर्स की डायरियों और रिपोर्टों से ये तमाम जानकारी मिलती है कि जब बहादुर शाह ज़फर ने आत्मसमर्पण कर दिया, और ज़फर के बाद उनके तीन बेटों को भी अंग्रेजों ने आत्मसमर्पण पर राज़ी कर लिया, व उन्हें कैद कर दिल्ली की ओर ले जाने लगे, तब जब वो दिल्ली से पाँच मील दूर थे अंग्रेज हॉडसन ने सहयोगी मेक्डॉवेल से पूछा, इन शहज़ादों का क्या किया जाए? मेक्डॉवेल ने जवाब दिया ‘मैं समझता हूँ, हमें उन्हें यहीं मार देना चाहिए.’ हॉडसन ने उन रथों को वहीं रोकने का आदेश दिया. हॉडसन ने उन तीनों शहज़ादों को रथ से उतरने और अपने बाहरी कपड़े उतारने के लिए कहा. कपड़े उतारने के बाद उन्हें फिर से रथ पर चढ़ा दिया गया. उनसे उनके ज़ेवर, अंगूठियाँ, बाज़ूबंद और रत्नों से जड़ी तलवारें भी ले ली गईं. हॉडसन ने रथ के दोनों तरफ़ पाँच पाँच सैनिक तैनात कर दिए. तभी हॉडसन अपने घोड़े से उतरे और अपनी कोल्ट रिवॉल्वर से हर शहज़ादे को दो दो गोलियाँ मारीं. उन सब की वहीं मौत हो गई.’

बाद में मेक्डॉवेल ने लिखा, ‘तब तक 4 बज चुके थे. हॉडसन इन शहज़ादों के शवों को रथ में रखे हुए शहर में घुसे. उन्हें एक सार्वजनिक जगह पर ले जा कर एक चबूतरे पर लिटा दिया गया ताकि आम लोग उनका हश्र देख सकें. उनके शरीर पर कोई कपड़े नहीं थे. सिर्फ़ कुछ चीथड़ों से उनके गुप्ताँगों को छिपा दिया गया था. उनके शव वहाँ पर 24 सितंबर तक पड़े रहे.

बाद में हॉडसन ने अपने भाई को पत्र लिख कर बताया, ‘मैंने भीड़ से कहा कि ये वही लोग हैं जिन्होंने हमारी मजबूर महिलाओं और बच्चों की हत्या की थी. सरकार ने उन्हें उनके काम की सज़ा दी है.

मैंने खुद एक के बाद एक उनको गोली मारी और आदेश दिया कि उनके शवों को चाँदनी चौक में कोतवाली के सामने के चबूतरे पर फेंक दिया जाए. मैं निर्दयी नहीं हूँ लेकिन मैं मानता हूँ कि मुझे इन लोगों को जान से मारने में बहुत आनंद आया.’
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…. बाद में रेवेरेंड जॉन रॉटेन ने अपनी किताब ‘द चैपलेन्स नेरेटिव ऑफ़ द सीज ऑफ़ डेल्ही’ में लिखा, ‘सबसे बड़े शहज़ादे की कदकाठी काफ़ी मज़बूत थी. दूसरा उससे उम्र में कुछ ही छोटा था. तीसरे शहज़ादे की उम्र बीस साल से अधिक नहीं रही होगी.
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कोक राइफ़ल के एक गार्ड को उनके शवों की निगरानी के लिए लगाया गया था. उनके शव कोतवाली के बाहर तीन दिनों तक पड़े रहे. फिर उन्हें बहुत असम्मानजनक तरीके से कब्रिस्तान में दफ़ना दिया गया….
… 27 सितंबर को ब्रिगेडियर शॉवर्स को दलबल के साथ बाकी ज़िंदा बचे शहज़ादों को पकड़ने के लिए भेजा गया.
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उस दिन शॉवर्स ने तीन और शहज़ादों मिर्ज़ा बख़्तावर शाह, मिर्ज़ा मेंडू और मिर्ज़ा जवान बख़्त को हिरासत में लिया.
अक्तूबर के शुरू में बादशाह के दो और बेटों को पकड़ कर गोली से उड़ा दिया गया.
जब इन शहज़ादों को फ़ायरिंग स्कवाड द्वारा गोली मारी जा रही थी तो 60 राइफ़ल के जवानों और कुछ गोरखा सैनिकों की चलाई गई गोलियाँ इन शहज़ादों को या तो लगीं नहीं या सिर्फ़ उन्हें घायल भर कर पाईं.
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लेकिन इसके बाद एक प्रोवोस्ट सार्जेंट ने इन शहज़ादों के सिर में गोली मार कर उनकी प्राणलीला समाप्त कर दी.
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लेकिन कर्नल ई एल ओमनी ने अपनी डायरी में लिखा कि ‘गोरखा सैनिकों ने जानबूझ कर शहज़ादों के शरीर के निचले हिस्से में गोली चलाई ताकि उन्हें और तकलीफ़ हो और वो दर्दनाक मौत मरें.’
उस समय उन्हें गंदे कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया गया था लेकिन उन्होंने अपनी मौत का सामना बहादुरी से किया.
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अंग्रेज बहादुर शाह जफर के किसी भी बेटे को बख्शना नही चाहते थे, पर एक सिख रिसालदार को चुन चुन कर मारे जाते इन शहज़ादों पर दया आ गई उसने शहज़ादे मिर्ज़ा काविश और शहज़ादे मिर्ज़ा अब्दुल्लाह को क़ैद से भागने में मदद कर दी, ये दो शहज़ादे अंग्रेजों से बच गए थे जबकि बहादुर शाह के बाकी बेटों को या तो फाँसी दे दी गई या काला पानी में लंबी सज़ा काटने के लिए भेज दिया गया.
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कुछ शहज़ादों को आगरा. कानपुर और इलाहाबाद की जेलों में बहुत कठिन परिस्थितियों में रखा गया जहाँ दो वर्ष के भीतर ही इनमें से अधिक्तर की मौत हो गई…..!!
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….. अंग्रेजी स्रोतों में ये मिलता है कि बहादुर शाह जफर के तमाम शहज़ादों को या तो तत्काल मार डाला गया या उन्हें मृत्युपर्यन्त कारावास में डाल दिया गया जहां अल्पायु में उनकी मृत्यु हो गई…. अंग्रेजी स्रोतों में आपको शहज़ादों का सर काटकर जफर के आगे प्रस्तुत करने की बात कहीं नही मिलेगी, पर प्रत्यक्षदर्शियों ने मौखिक परम्परा में ये बात कई स्रोतों से पहुँचाई है, हां अंग्रेजी कैद में किन शहज़ादों के सर काटे गए उनके नामों के अनुमान ही लगाए जा सकते हैं, कि सम्भवतः मिर्ज़ा जवां बख़्त का सर काटा गया हो, क्योंकि जवां बख़्त की गिरफ्तारी से पहले मारे गए शहज़ादों की लाशों के सार्वजनिक रूप से कुछ दिन पड़े रहने और फिर दफनाए जाने का स्पष्ट वर्णन है उनके सर काटे जाने की बात भारतीय स्रोत नही कहते जबकि जवां बख़्त को गिरफ्तार करके भारतीयों से दूर ले जाया गया था और जवां बख़्त की मौत के तरीक़े से भारतीय अनभिज्ञ रहे, कहीं से ये बात तो निकल कर आई कि जफर के आगे उसके शहज़ादों के सर काटकर लाये गए थे, पर इससे अधिक बात स्पष्टता से पता नही चली

… ये बात भ्रामक है कि शराब की लत के कारण जवां बख़्त की मौत हुई, क्योंकि कैद में कैदी को शराब देना तो दूर, खाना भी बहुत थोड़ा और घटिया दर्जे का दिया जाता था… ऐसे में शराब की “लत” से शहज़ादे का मरना, सच्चाई पर पर्दा डालने की कोशिश लगती है… .. सच्चाई ये है कि बहादुर शाह जफर का कोई युवा बेटा अंग्रेजों ने 1857 को क्रांति को दबाने के बाद जीवित नही छोड़ा था, सिवाय फरार हो जाने वाले दो शहज़ादों के …. हां जफर के परिवार की महिलाओं और अबोध बच्चों को अंग्रेजों ने ज़रूर ज़िंदा छोड़ दिया था, पर उनका जीवन भी दयनीय परिस्थितियों में ही गुज़रा था !!