विशेष

1857 की क्रांति के हीरो बाके हरिजन हिन्दुस्तानी!

Hemant Malviya
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एक लाचार बूढ़े के पास एक तोता था ,औऱ बूढ़े के घर पड़ोस में एक चोर..जब भी चोर चोरी करने बूढ़े के घर के सामने से निकलता…तोता जोर से “चोर चोर चोर चोर चिल्लाने लगता .. रोज की पनौती, चोर परेशान हो गया वह गुस्से में बूढ़े के पास गया औऱ बोला ..देख रे बुढ़ऊ तू इसे चुप करा लें वरना मैं इस हरामखोर की गर्दन दबा दूंगा ….बूढ़े ने तोते को डरा धमका मान मनोवल कर के जैसे तैसे चुप करा लिया ….मगर रोजाना की तरह चोर भी अपनी आदत से मजबूर औऱ तोता भी …. अगले दिन चोर फिर दबे पांव चोरी को निकला …चोर की नजर तोते के पिंजरे पे पड़ी ,उसे ही घूर रहा तोता छूटते ही बोला ….आज भी समझ तो तू गया ही होगा ….😃


यूपी वाला
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18 57 की क्रांति के हीरो बांके हिन्दुस्तानी जी
बांके जौनपुर जिले के मछली तहसील के गांव के कुवरपुर के निवासी थे।
अदम्य साहसी और अपने अंदर आजादी का जुनून लेकर घूमते थे
वह अकेले ही अंग्रेजों से लोहा लेने निकल पड़े
कई अंग्रेजों को एक बार इन्होंने जंगल में पकड़ कर एक एक कर नदी में प्रवाहित कर दिए थे ,
बाद में उनसे प्रभावित होकर और लोगों ने भी उनके साथ अंग्रेजों से जंग का ऐलान कर दिया। लगातार अंग्रेजों के खिलाफ गतिविधियों के कारण उन पर 50 हजार रुपये सबसे बड़ा इनाम रखा, जब 2 गायें 6 पैसे थीं। अंग्रेजों और बांके हरिजनऔर उनके साथियों के बीच कई संघर्ष हुए।
लेकिन कुछ मुखबिर दोगले अपने बीच के ही एक व्यक्ति ने अंग्रेजों को उनके ठिकाने की सूचना दे दी, तब अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए कई सैनिकों की टुकड़ी ले कर अंग्रेजी ने, बांके हिन्दुस्तानी जी और उनके साथियों के बीच संघर्ष हुआ, उन्होंने कई ब्रिटिश सैनिकों को मार डाला, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया। और जेल में बंद करके बहुत प्रताड़ना दिया गया और लोहे के गर्म क्षणों को लाल करके इन लोगों को भीषण यातना दिया गया तब भी किसी भी प्रकार की सूचना ना मिली अंग्रेजों को क्रांतिकारियों के बारे में
फिर इन महान स्वतंत्रता सेनानियों और उनके 18 साथियों को फांसी पर लटका दिया
आज के इतिहास में समाज इन लोगों के बारे में ज्यादा जानकारी
नहीं है हमारे इतिहास में गुमनाम है
ऐसे महापुरुषों को सादर नमन
बाके हरिजन

Jat Maharaja
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—जाट राजा यशो धर्मन मंदसौर में राज्य करते थे। वहां पर इनका स्तूप है। इनके पिता का नाम विष्णुवर्धन था। इनका राज्य मंदसौर से लगाकर बयाना तक था। बयाना में भी एक लाट है वह महाराजा विष्णुवर्धन की स्थापना की हुई है। यह मालव वंशी जाट थे। मालव जाटों की औलिकर शाखा के वरिक(विर्क) गोत्र के जाट थे।

महाराजा यशोधर्मन ने प्रबल आक्रांता हूणों को कई बार खदेड़ा था और अपनी जिंदगी में उन्हें कश्मीर से नीचे नहीं उतरने दिया। याधोधार्मन ने मंदसौर में अपने एक शिलालेख में अपने राज्य की सीमा का परिचय देते हुए लिखा है की “ उत्तर में हिमालय ,पूर्व में ब्रह्मपुत्र ,दक्षिण में महेंद्र पर्वत, और पश्चिम में समुन्द्र है| इस आधार पर इनका राज्य बड़े क्षेत्र में फैला हुआ था।

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य से पराजय के बाद अर्जुनायन,नाग ,यौधेय ,मालव जाट गणतंत्रो (खापो ) ने एक नवीन संगठन बनाया जिसमे सभी गणराज्यो की भागीदारी थी प्रारंभ में इसका प्रधान पद मालव जाटों के पास था बाद में प्रधान नागवंशी बैंस जाटों को बनाया गया अश्व सेना का प्रधान अर्जुनायन (कुंतल ) जाटों को ,महा सेनापति यौधेयो को बनाया गया ।

इस संगठन के बल पर यशोवर्धन ने हूणों के राजा मिहिरकुल को 530 ईस्वी में हराकर कैद कर लिया था इसके बाद ही हूणों का आतंक से भारत भूमि को मुक्ति मिली इस लड़ाई में सभी जाट गणों ने यशोवर्धन का साथ दिया था यशोवर्धन उस समय मालवा के राजा थे जो मल्ल जाटों के गणराज से संबंधित थे मंदसौर अभिलेख से मिहिरकुल के हारने की पुष्टि होती है |

दशपुर मंदसौर लेख में यशोधर्मन ने हूणों पर विजय प्राप्ति के बारे में लिखा है|

ये भुक्ता गुंप्तनाथैर्न्न सकलवसुधाक्क्रान्तिदृ­ष्टप्रतापैर्न्नाज्ञा­ हूणाधिपानां क्षितिपतिमुकुटाध्यास­िनी यान्प्रविष्टा।।

अर्ली हिस्ट्री आफ इण्डिया’ के पृष्ठ 318-319 में मि. विनसेण्ट स्मिथ ने भी इस बात का समर्थन किया है कि महाराज यशोधर्मा ने मिहिरकुल को गिरफ्तार कर लिया था| हूणों पर विजय के उपलक्ष में एक विजय स्तम्भ का भी निर्माण करवाया गया था |(इस प्रकार के शिलालेखों के आधार पर यशोधर्मा ने विक्रमादित्य की उपाधि भी धारण की थी। (भारत के प्राचीन राज्यवंश, भाग 2)

यशोधर्मा के समय के तीन शिलालेख मालव संवत् 589 (सन् 532 ई०) के लिखे हुए मन्दसौर से प्राप्त हुए हैं। इनके लेख निम्न प्रकार से हैं –
“प्रबल पराक्रमी गुप्त राजाओं ने भी जिन प्रदेशों को नहीं भोगा था और न ही अतिबली हूण राजाओं की आज्ञाओं का जहां तक प्रवेश हुआ था, ऐसे प्रदेशों पर भी वरिकवंशी महाराज यशोधर्मा का राज्य था।”

“पूर्व में ब्रह्मपुत्र से लेकर पश्चिम में समुद्र तक और उत्तर में हिमालय से दक्षिण में महेन्द्र पर्वत तक के सामन्त मुकुटमणियों से सुशोभित अपने सिर को सम्राट् यशोधर्मा के चरणों में नवाते हैं।”

लेख का आधार—
काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भाग 12, अंक 3, पृ० 342
भारत के प्राचीन राज्यवंश, भाग 2