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2018 से 2022 तक सीवर और सेप्टिक टैंक में 308 लोगों की हुई मौत

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया कि 2018 से 2022 के बीच सीवर और सेप्टिक टैंक में 308 लोगों की मौत हुई है।

तमिलनाडु में सबसे अधिक 52, इसके बाद उत्तर प्रदेश में 46 और हरियाणा में 40 लोगों की मौत के मामले सामने आए हैं। सरकार के अनुसार, इसके अलावा महाराष्ट्र में 38, दिल्ली में 33, गुजरात में 23 और कर्नाटक में 23 लोगों की मौत सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हुई है।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने एक लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया कि मैन्युअल सफ़ाई के स्थान पर मशीनीकृत सफ़ाई के तरीकों को अपनाने के लिए किए जा रहे उपायों के तहत राष्ट्रीय यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी कार्य योजना तैयार की गई है।

ज्ञात रहे कि पिछली पहली फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा की गई बजट घोषणाओं में मशीन से सीवर सफाई करने की बात कही गई थी। उन्होंने कहा था कि सफाई को ‘मैनहोल टू मशीनहोल’ मोड में लाया जाएगा और सीवर में गैस से होने वाली मौतों को रोकने के लिए शहरी स्वच्छता में मशीनों के उपयोग पर ध्यान दिया जाएगा।

भारत में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था इसके बाद 2013 में क़ानून बनाकर इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था, हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है।

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है, अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है।