Ashutosh Kumar
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अदालते आलिया ने हुक्म जारी किया है कि कश्मीर में सामान्य स्थिति की बहाली “राष्ट्रीय हित” को ध्यान में रख कर की जाए.
यह “एक ऐतिहासिक क्षण” है.
लोकतंत्र में स्वतंत्र न्यापालिका की कल्पना इसलिए की गयी है कि वह विधायिका और कार्यपालिका द्वारा सम्विधान के उल्लंघन और नागरिक के मौलिक अधिकारों के हनन की किसी भी कोशिश को निरस्त कर सकें.
अदालत इसलिए है कि नागरिक सरकार और सत्ता-प्रतिष्ठान की ताकत से घबराए बगैर इन्साफ की गुहार लगा सके और पा सके.
न्यायालय नागरिक के हित के लिए है, “राष्ट्रीय हित” के लिए नहीं. राष्ट्रीय हित क्या है, यह सरकारें निर्धारित करती हैं. न्यायालय सरकार की योजनाओं को लागू कराने का जरिया नहीं है.
वह तो नागरिक के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की गारंटी करने के लिए है.
अगर राष्ट्रीय हित अदालते आलिया के फैसलों का आधार बन सकता है, तो केंद्र कश्मीर समेत किसी भी राज्य के संघीय अधिकारों को मटियामेट कर सकता है . वह किसी भी नागरिक को उसकी नागरिकता से वंचित कर सकता है .
फिर तो मस्जिद-विध्वंस और मन्दिर मामले का फैसला भी कायदे कानून के चक्कर में पड़े बिना ‘राष्ट्रीय हित’ के आधार पर लिया जा सकता है. राष्ट्रीय हित में काशी और मथुरा को भी मस्जिद-मुक्त कराया जा सकता है .
राष्ट्रीय हित में यूनीफॉर्म सिविल कोड लागू किया जा सकता है .
राष्ट्रीय हित में हिन्दी को राष्ट्र-भाषा घोषित का सभी राज्यों पर थोपा जा सकता है .
राष्ट्रीय हित में साड़ी और धोती को राष्ट्रीय पोशाक घोषित कर सभी औपचारिक अवसरों पर धारण करने का हुक्म जारी किया जा सकता है .
राष्ट्रीय हित में अनिवार्य सैन्य सेवा का नियम लागू किया जा सकता है
राष्ट्रीय हित में संस्कृत, वेद-पाठ और दिशा-मुहूर्त गणना को अनिवार्य किया जा सकता है
राष्ट्रीय हित में सम्पत्ति रखने और रोजगार करने के अधिकार को भी निरस्त किया जा सकता है
राष्ट्रीय हित में शादी के पहले प्रेम और सहवास पर पाबंदी लगाई जा सकती है. राष्ट्रीय हित में मोमो, पास्ता और रोगनजोश खाने पर पाबंदी लगाई जा सकती है. राष्ट्रीय हित में सुबह सुबह मुर्गासन करना अनिवार्य किया जा सकता है. राष्ट्रीय हित में किसी व्यक्ति को आजीवन प्रधान मंत्री भी बनाया जा सकता है
राष्ट्रीय हित में न्यायालय को भी नियंत्रित किया जा सकता है
आखिर यह फैसला न्यायालय का ही है कि सरकार को राष्ट्रीय हित में काम करना है .
हम सभी न्यायालय का सम्मान करते हैं. उसका हर फैसला सही है और सही के सिवा कुछ नहीं है .
जय न्यायालय. जय आर्यावर्त
फ़ारुख़ अब्दुल्ला खुल के भारत माता की जय के नारे लगाते थे। वे संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में जाकर भारत का पक्ष रखते थे, बताते थे कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। फ़ारूक़ अब्दुल्ला भाजपा के सहयोगी थे; अटल बिहारी बाजपेयी के मित्र थे; उनकी कैबिनेट में वरिष्ठ मंत्री थे। फ़ारूक़ अब्दुल्ला अभी राष्ट्र को ख़तरा बन पब्लिक सेफ़्टी एक्ट के तहत गिरफ़्तार कर लिए गए हैं। कोई भी अलगाववादी नेता जैसे एस ए आर गीलानी, इस ऐक्ट जिसमें 2 साल बिना ज़मानत बिना मुकदमा जेल में रखा जा सकता है, के तहत गिरफ़्तार नहीं है।
नये भारत में स्वागत है। कश्मीर बेशक हमारा अभिन्न अंग बन रहा है; कश्मीरी भी।
Samar Anarya