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Gafur Khan Gafur
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होटल में ठहरा हुआ मुसाफिर होटल के सुधार की चिंता में नही खो जाता।उसे होटल से मोह नही होता क्योंकि वह जानता है कि उसे शीघ्र ही होटल छोड़ जाना है.
इसी प्रकार नदी पर बना पुल,नदी पार करने के लिये होता है,इसलिए कोई भी पुल पर अपना घर नही बनाता.
क्या ये आशचर्यजनक बात नहीं कि यह जानते हुए भी कि दुनिया चला-चली का मेला है,हम यहां इस तरह रहते हैं,जैसे हमें कभी यहां से जाना ही ना हो!
संत कहते हैं कि हमें रचना से इतना प्यार है कि हम #रचनाकार को भी भूल गये, अपने असल को, अपने घर को भी भूल गये हैं।
समय (काल) ने हमें ऐसे भ्रम-जाल डाला हुआ है कि जो कुछ दुनिया में नजर आता है, हम उसे सत्य समझने लगे हैं।
#संत-महात्मा ही नहीं, #वैज्ञानिक भी यही कहते हैं कि यह संसार एक भ्रम है।वैज्ञानिक बताते हैं कि उप-अणुओं के स्तर पर भौतिक दुनिया का कुछ भी शेष नही बचता।उस स्तर पर कुछ भी ठोस रुप में नही होता, केवल उर्जा ही रह जाती है जिसे इंद्रियों द्वारा छुआ या देखा नही जा सकता।हमारी जड़ और अचेत इंद्रियां इन उर्जा क्षेत्रों(energy fields) का अनुभव कर सकने में बिल्कुल असमर्थ हैं क्योंकि ये उर्जा क्षेत्र वास्तव में शून्य (Void) में उड़ रही तरंगें मात्र हैं।
ब्रह्मांड के सब सूर्य, तारे, आकाश-गंगाएं आदि पल-पल लाखों बार जल-बुझ रही सूक्ष्म तरंगें हैं और सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक निरंतर जल-बुझ रही रोशनी के समान है।
जिस भ्रम में हम रह रहे है, वह केवल दृष्टिगोचर भौतिक संसार तक ही सीमित नहीं है।हमारे संकल्प-विकल्प, भावनाएं और मोह आदि भी इस मन-माया के जाल का ही भाग है।।
Nazia Khan
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जिन्हें दुआ ए क़ुनूत नही आती है वो याद करे जिन्हें आती है Done लिखें।