औरंगजेब (Aurangzeb), जिसका पूरा नाम अबुल मुजफ्फर मुहिनुदीन मुहम्मद औरंगजेब आलमगीर था , मुगल साम्राज्य का छठा और अंतिम प्रभावी शासक था उसने 1658 से लेकर अपनी 1707 में अपनी मौत तक हिंदुस्तान के बड़े हिस्से पर 49 वर्ष तक शासन किया था | औरंगजेब (Aurangzeb) ने अपने शासनकाल में मुगल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार किया था |
उसने अपने जीवन में 3.2 मिलियन वर्ग किमी के हिस्से के 100-150 मिलियन लोगो पर शासन किया था | औरंगजेब को अपनी धार्मिक असहिष्णुता वाली नीतियों के कारण विद्रोहों का सामना करना पड़ा , जो उसकी मौत के बाद इतना बढ़ गया कि धीरे धीरे मुगल साम्राज्य का पतन हो गया | आइये आपको आज औरंगजेब (Aurangzeb) की सम्पूर्ण जीवनी से रुबुरु करवाते है |
बचपन में ही किया अपनी बहादुरी का प्रदर्शन
औरंगजेब (Aurangzeb) का जन्म 4 नवम्बर 1618 में गुजरात के दाहोद जिले में हुआ | वो शाहजहा की छठी सन्तान और तीसरा पुत्र था | उनके पिता उस समय गुजरात के शाषक थे | 1626 में उनके पिता शाहजहा के असफल विद्रोह के कारण ,औरंगजेब और उनके भाई दारा शिकोह को उनके दादाजी जहांगीर ने लाहोर दरबार में बंधक बना लिया था | 26 फरवरी 1628 में शाहजहाँ को अधिकारिक तौर पर मुगल बादशाह घोषित किया गया और औरंगजेब फिर से अपने माता पिता के पास आगरा किले में लौट गया |
औरंगजेब (Aurangzeb) ने आगरा में ही अरबी और पारसी भाषा में औपचारिक शिक्षा ली | उसे धर्मिक शिक्षा और इतिहास के अध्ययन के लिए प्रतिदिन 500 रूपये का भत्ता दिया जाता था | 28 मई 1633 को औरंगजेब मौत के मुह से निकलकर आया जब एक शक्तिशाली युद्ध हाथी मुगल शाही पडाव से भगदड़ मचाते हुए उनके पास आ गया | उसने हाथी की तरफ एक भाला फेंका और खुद को कुचलने से बचाया | औरंगजेब की इस बहादुरी पर उसके पिता ने उसको बहादुर का ख़िताब दिया और उसे सोने में तोला | इसके साथ ही उसको 2 लाख रूपये तक की उपहार दिए गये |
औरंगजेब के विजयी अभियान
15 दिसम्बर 1634 में औरंगजेब (Aurangzeb) को पहली बार कमान दी गयी जिसमे उसे 10,000 घोड़े and 4000 सिपाही दिए गये | उसे पहली बार शाही विशेषाधिकार देते हुए लाल तम्बू का उपयोग करने की अनुमति दी गयी | तत्पश्चात् औरंगजेब को सेना के नाममात्र प्रभारी के रूप में ओरछा के विद्रोही शाषक झुझार सिंह के खिलाफ बुंदेलखंड भेजा गया | झुझार सिंह ने शाहजहाँ के नियमो के विरुद्ध दुसरे राज्यों पर आक्रमण की चुनौती दी थी | व्यवस्था के अनुसार औरंगजेब को युद्ध से दूर पीछे रखा गया और मुगल सेना के एकत्रित होने पर उसके सेनापतियो की सलाह ली और ओरछा की घेराबंदी की | यह सैन्य अभियान सफल रहा और झुझार सिंह को सत्ता से हटा दिया गया |
औरंगजेब (Aurangzeb) को 1636 में दक्कन का वायसराय नियुक्त किया गया | शाहजहाँ के जागीरदारों को निज़ाम शाही राजकुमार मुर्तजा शाह III ने तबाह कर दिया था और अब वो अहमदनगर के खतरनाक विस्तार में लगा हुआ था | शाहजहा ने औरंगजेब को इस सैन्य अभियान के लिए भेजा और उसने 1636 ने निजाम शाही वंश को समाप्त कर दिया | 1637 में औरंगजेब ने दिलरस बानू बेगम से निकाह किया जो उसके पहली और प्रमुख बीबी थी | वो एक दासी हिराबाई के प्रति भी आसक्त था लेकिन जवानी में उसकी मौत ने उसे दुखी कर दिया | उसी साल औरंगजेब ने आसानी से एक छोटे राजपूत साम्राज्य बागलना भी हडप लिया था |
1644 में औरंगजेब (Aurangzeb) की बहन जहानारा एक हादसे में बुरी तरह जल गयी | इस घटना ने परिवार को सदमे में ला दिया |औरंगजेब ने इस कठिन घड़ी में आगरा ना लौटने के कारण अपने पिता को नाराज कर दिया | औरंगजेब इस घटना के तीन सप्ताह बाद आगरा आया | शाहजहा ने अपनी बेटी के स्वास्थ्य ठीक होने तक सेवा की और हजारो जागीरदार उनको ढाढस बंधाने आये | शाहजहा ने जब औरंगजेब को आंतरिक महल परिसर में सैन्य पोशाक में आते देखा तो क्रोधित होकर उसे तुरंत दक्कन के वायसराय के पद से बर्खास्त कर दिया| औरंगजेब को मुगल बादशाह के सारे अधिकार छीन लिए गये |
1645 में उसका सात महीनों तक दरबार में प्रवेश वर्जित कर दिया और उसने मुगल सेनापतियो को अपना दुखड़ा सुनाया | उसके बाद सेनापतियो की सिफारिश पर औरंगजेब को गुजरात का शाषक नियुक्त किया गया जहा उसने सुव्यवस्थित शाषन किया और स्थिरता लाया | 1647 में शाहजहा ने उसे गुजरात से बल्ख का शाषक नियुक्त किया जहा पर उसका छोटा बेटा मुराद बक्श अप्रभावी साबित हुआ था | वो इलाका उज्बेक और तुर्कमों जनजातियो के हमले में था | सर्दियों की शुरुवात में औरंगजेब और उसके पिता को उज्बेको के साथ एक अंसतोषजनक संधि करनी पड़ी |अब आगे औरंगजेब को मुल्तान और सिंध का शासक नियुक्त कर दिया | उसके प्रयासों से 1649 और 1652 में कंधार में सफाविद को हटा दिया |
औरंगजेब (Aurangzeb) का सत्ता के लिए संघर्ष
1657 के अंत में शाहजहा बीमार पड़ गया | उसकी प्यारी पत्नी मुमताज महल भी 1631 में मर चुकी थी और शाहजहा उसके गम को कभी भुला नही पाया था | उसकी हालत अब धीर धीरे ज्यादा बिगड़ रही थी जिसके कारण उसके चारो बेटे मयूर सिंहासन की जंग के लिए लड़ने को तैयार हो गये | शाहजहा को अपने बड़े बेटे दारा शिकोह से बेहद लगाव था लेकिन ज्यादातर मुस्लिम उसे सांसारिक और अधार्मिक मानते थे |
शाहजहा का दूसरा बेटा शुजा आरामपसंद था और उसने बंगाल का शासक का पद लेकर खुबसुरत औरतो और शराब का मुख्य केंद्र बना दिया था | औरंगजेब अपने दुसरे भाइयो के विपरीत मुस्लिमो के प्रति ज्यादा समर्पित था इसलिए वो ध्रार्मिक विश्वसनीयता के आधार पर अपना सिक्का चलाना चाहता था | औरंगजेब ने चालाकी से अपने छोटे भाई मुराद को अपनी तरफ यह कहकर मिला लिया था कि दारा और शुजा को अपने रास्ते से हटाने के बाद वो मुगल सल्तनत की गडी मुराद को सौंप देगा |
औरंगजेब (Aurangzeb) ने मुराद को ओर ज्यादा विश्वास ड़ालते हुए खुद के शासन के लिए इनकार करते हुए हज के लिए मक्का जाने की बात कही | मुराद को औरंगजेब पर पूरा भरोसा हो गया था इसलिए 1658 में मुराद और औरंगजेब की सयुंक्त सेना ने राजधानी की ओर उत्तर में कुच किया | शाहजहा की तबियत में अब सुधार हो रहा था | दारा को सिंहासन का दावेदार था पीछे हट गया | तीनो भाइयो ने यह मानने से इंकार कर दिया कि शाहजहा की तबियत ठीक है इसलिए वो आगरा में अपने पिता से मिलने आये , जहा उन्होंने दारा की सेना को पराजित कर दिया |
दारा उत्तर की ओर भागा लेकिन एक बलूच सरदार ने पहले उसे शरण देने का वादा कर उसके साथ विश्वासघात करते हुए औरंगजेब की सेना को सौंप दिया | दारा को 1659 में बंदी बनाकर अपमान करते हुए आगरा लाया गया | आगरा में औरंगजेब ने दारा पर इस्लाम धर्म का विरोध करने के विरोध में अपने मंत्रियों को भी अपने साथ मिलाकर मृत्युदंड की सजा दी | औरंगजेब ने अपने ही भाई दारा का सर कलंक कर अपने पिता को उसका सर भेजा |