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माओ त्से-तुंग की एक कविता
Kavita Krishnapallavi ================ जन्मदिन ( 26 दिसंबर ) के अवसर पर माओ त्से-तुंग की एक कविता चिङकाङशान पर फिर से चढ़ते हुए (मई 1965) बहुत दिनों से आकांक्षा रही है बादलों को छूने की और आज फिर से चढ़ रहा हूं चिङकाङशान पर। फिर से अपने उसी पुराने ठिकाने को देखने की गरज से आता […]
अतीत की भांति भविष्य का भी यही हाल तय है और तब यह भी तय है कि तब हम इसी तरह रोते-पीटते कलपते रह जाने वाले हैं
via Shikha Singh ============= · राजीव थेपडा जी की वाॅल से *अगर आपका इस पोस्ट को सच्चे मन से पढ़ने का दिल चाहे !!* —————————————————- *समाज का एक तबका उद्विग्न है,स्त्री के प्रति जघन्य अपराध बढ़ते ही जा रहें हैं,लोग सरकारों को कोस रहे हैं,धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं और हर अगले दिन कई स्थानों पर […]
तुम इक बार हमसे मरासिम तो जोड़ो…शकील सिकंद्राबादी की दो ग़ज़लें एक साथ पढ़िये!
Shakeel Sikandrabadi =========== ग़ज़ल असर मुझ पे होता नहीं है बला का करिश्मा है ये मेरी माँ की दुआ का किया अज़्म का जब दिया मैंने रौशन इधर से उधर फिर गया रुख़ हवा का मेरे मौला उनको हिदायत अता कर चलन छोड़ बैठीं जो शरमो हया का तू गाता है जिस शौक़ से फिल्मी […]