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50 सालों में पहली बार थिंक-टैंक सेंटर फ़ॉर पालिसी रिसर्च का इनक़म टैक्स से छूट का दर्जा वापस लिया गया, लोकतंत्र पर हमला?

50 सालों में पहली बार थिंक-टैंक सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च का इनकम टैक्स से छूट का दर्जा वापस ले लिया गया है. केंद्र सरकार पर एनजीओ और शोध संस्थानों का दम घोंटने के आरोप लग रहे हैं.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च को दिसंबर 2022 में आयकर विभाग ने एक नोटिस भेजा था. उसके बाद फरवरी 2023 में विदेश से चंदा लेने के संस्थान के लाइसेंस को रद्द कर दिया गया. और अब संस्थान की कमाई पर इनकम टैक्स से छूट को रद्द कर दिया गया है.

संस्थान की मुखिया यामिनी अय्यर ने एक बयान में इसे एक “हानिकारक धक्का” बताया है और कहा है कि इससे संस्थान के काम करने की क्षमता पर आघात हुआ है. आयकर नोटिस में इस बात पर आपत्ति व्यक्त की गई थी कि संस्थान ऐसी गतिविधियां कर रहा है जो “उन शर्तों के अनुकूल नहीं हैं” जिनके तहत उसका पंजीकरण हुआ था.

लोकतंत्र पर हमला?
विभाग का आरोप है कि इन गतिविधियों में छत्तीसगढ़ के जंगलों में कोयला खनन के खिलाफ आयोजित किये गए हस्देव आंदोलन में भाग लेना भी शामिल है. सीपीआर ने इन आरोपों का खंडन किया है. संस्थान इस फैसले के खिलाफ आयकर अपीलेट ट्रिब्यूनल में अपील कर सकता है.

कई लोगों ने सरकार के इस कदम की आलोचना की है. वरिष्ठ पत्रकार सुहासिनी हैदर ने एक ट्वीट में लिखा कि भारत के सबसे पुराने और सबसे जाने माने शोध थिंक-टैंक को निशाना बनाना सरकार की अपनी साख के लिए कोई अच्छी खबर नहीं है.

Suhasini Haidar
@suhasinih
Govt takes another step against think tank – Centre for Policy Research loses tax exemption status.

Targeting one of India’s oldest and most reputed think tanks for research it carried out is hardly good for the govts own reputation.

कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि पहले “सोच” को मारा जाता है और उसके बाद लोकतंत्र का नंबर आता है.

Randeep Singh Surjewala
@rssurjewala
The “thought” is killed first,
The “democracy” is next in line…

Centre for Policy Reserch (CPR) is treated as a “deemed political threat” by Modi Govt, while it is a bubbling set of ideas & reserch on policy of various hues.

TIME TO SPEAK UP!

भारत में आयकर कानून के तहत नॉट फॉर प्रॉफिट संगठनों को आयकर से छूट मिलती है, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें हैं. इनमें से मुख्य शर्तें हैं – संस्था केवल धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए बनी होनी चाहिए और संस्था की कुल आय का 85 प्रतिशत उसके उद्देश्यों पर खर्च होना चाहिए.

कई संगठन हुए शिकार
सारा पैसा आयकर कानून के प्रावधानों के हिसाब से जमा होना चाहिए. इसके अलावा संगठन की आय या संपत्ति का कोई भी हिस्सा संगठन के संस्थापक, ट्रस्टी, उनके कोई रिश्तेदार या एक साल में 50,000 से ज्यादा चंदा देने वाले किसी भी व्यक्ति या उसके रिश्तेदार के हित में नहीं लगा होना चाहिए.

अगर संगठन द्वारा किसी भी कानून का उल्लंघन पाया गया तो प्रिंसिपल कमिश्नर या आयकर कमिश्नर संगठन को मिली आयकर से छूट को रद्द कर सकते हैं.

सीपीआर की छूट का रद्द होना इस तरह का पहला मामला नहीं है. पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने सिविल सोसाइटी के कई एनजीओ और शोध संस्थानों का विदेश से चंदा लेना का लाइसेंस रद्द किया है.

कइयों के खिलाफ आयकर विभाग ने भी कार्रवाई की है. पिछले साल सरकार ने संसद में कहा था कि 2017 से 2021 के बीच 6,677 गैर सरकारी संगठनों का विदेशी चंदा लेने का लाइसेंस रद्द कर दिया गया.

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चारु कार्तिकेय