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‘अजन्मे बच्चे कोण गोद लेने का समझौता पैसे के लिए गोद लेने जैसा’-कर्नाटक हाइकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने 2 साल, 9 महीने की एक बच्ची के माता-पिता की ओर से संयुक्त रूप से दायर याचिका की सुनवाई करते हुए कहा है कि एक अजन्मे बच्चे के गोद लेने के लिए समझौता कानून के लिए अज्ञात है. इसे पैसे के लिए ‘गोद लेने’ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. दरअसल, एक हिंदू जैविक माता-पिता और मुस्लिम दत्तक माता-पिता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जब उडुपी जिला अदालत द्वारा बाल देखभाल इकाई से बच्चे की कस्टडी की मांग को खारिज कर दी गई थी. दत्तक माता-पिता के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने के कदम को सही ठहराया गया.

न्यायमूर्ति बी. वीरप्पा और न्यायमूर्ति के.एस. हेमलेखा की खंडपीठ ने कहा कि एक अजन्मे के जीवन के अधिकार को भी संविधान के अनुच्छेद 21 के दायरे में आने वाला माना जाएगा और उडुपी जिला बाल संरक्षण इकाई (डीसीपीयू) द्वारा दत्तक माता-पिता के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने के कदम को सही ठहराया। साथ ही, डीसीपीयू ने दलील दी कि पैसे के बदले अवैध रूप से बच्चे की अदला-बदली की गई थी। अदालत ने मुस्लिम कानून के तहत भी समझौते को अमान्य करार दिया, क्योंकि समझौता मुस्लिम और गैर-मुस्लिम माता-पिता के बीच दर्ज किया गया था।

यह देखते हुए कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 एक ऐसे बच्चे के कल्याण की रक्षा कर सकता है, जिसके माता-पिता आर्थिक तंगी के कारण अपने बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ हैं। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे में समझौता कायम नहीं रखा जा सकता। बच्चे का जन्म 26 मार्च, 2020 को हुआ था। दोनों दंपतियों ने 21 मार्च, 2020 को गोद लेने के लिए अपंजीकृत समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने समझौता इसलिए किया, क्योंकि जैविक माता-पिता के पास अपने अजन्मे बच्चे की देखभाल करने के लिए पैसे नहीं थे।