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Aviation Safety : क्यों लड़खड़ाने लगे हवाई जहाज?

एविएशन एक्सपर्ट हर्षवर्धन बोले, देश में सभी कंपनियों के हवाई जहाज मिलाकर लगभग 800 की संख्या है। 12 से 15 साल वाले जहाज को रिटायर करने का नियम है। इसका पालन होता भी है और नहीं भी होता। हवाई जहाजों की मरम्मत के लिए कार्यकुशल स्टाफ की कमी है…

देश के उड्डयन उद्योग के साथ अब हवाई जहाज भी लड़खड़ाने लगे हैं। तकनीकी खराबी के चलते कभी प्लेन को बीच रास्ते से ही वापस लौटना पड़ता है, तो कभी किसी दूसरे हवाई अड्डे पर इमरजेंसी लैंडिंग होती है। हवा में इंजन बंद होने की खबर मिलती है तो दूसरी ओर स्पाइसजेट का विमान जो दिल्ली से दुबई जा रहा था, उसे खराबी के कारण पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर उतरना पड़ा। आखिर हवाई जहाज क्यों लड़खड़ाने लगे हैं, इस सवाल का जवाब देते हुए एविएशन एक्सपर्ट हर्षवर्धन कहते हैं, इस साल के अंत तक ऐसे कई झटके महसूस किए जा सकते हैं। इसकी वजह भी तो कई हैं। कोरोनाकाल के बाद जोखिम के दौर से गुजर रही ‘एयर इंडस्ट्री’ को अब ईंधन और हवाई जहाजों की बढ़ती उम्र के साथ नए ‘स्पेस’ के संकट से भी जूझना है।
मुश्किल से 25-30 फीसदी स्टाफ ही वापस आ सका

दो साल तक कोरोनाकाल के लॉकडाउन का दंश झेल चुकी एयर इंडस्ट्री को उठने में अभी वक्त लगेगा। बतौर एविएशन एक्सपर्ट हर्षवर्धन, अधमरी स्थिति से बाहर आने के बाद हवाई जहाजों के लिए एक दूसरी दिक्कत सामने आ गई। जब उड़ानों से बैन हटा तो एकाएक डिमांड इतनी ज्यादा हो गई कि हवाई जहाज की सर्विस के लिए भी ठीक से समय नहीं निकल पा रहा। सीट एक है तो चाहने वाले बीस हैं। लॉकडाउन में एयर कंपनियों को पायलट तक निकालने पड़े थे। कई जगह पर तो आधा स्टाफ कम कर दिया गया। उसके बाद जब दोबारा से उड़ानें शुरू हुईं तो बहुत से पायलट वापस नहीं आए। मुश्किल से 25-30 फीसदी स्टाफ ही वापस आ सका। नतीजा, एक्सपर्ट पायलट और कार्य कुशल तकनीकी स्टाफ, दोनों की कमी खलने लगी। इन सबके अलावा, नए ‘स्पेस’ का संकट भी खड़ा हो गया। नए रास्ते नहीं मिल पा रहे। नई कंपनियों के चलते पुरानी एयरलाइंस को नुकसान होने लगा। नई एयरलाइंस आने से प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। पुरानी एयरलाइंस को रिकवरी का समय भी नहीं मिला। चूंकि ‘टाटा’ पर लोग भरोसा करते हैं, इसलिए एक्सपर्ट स्टाफ, जिसमें पायलट भी शामिल हैं, वे एयर इंडिया ज्वाइन कर रहे हैं।
अभी तय नहीं है कि कौन बचेगा, कौन जाएगा

इस साल के अंत तक एयर इंडस्ट्री की दशा और दिशा मालूम होगी। कौन बचेगा, कौन जाएगा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। एविएशन एक्सपर्ट हर्षवर्धन बोले, देश में सभी कंपनियों के हवाई जहाज मिलाकर लगभग 800 की संख्या है। आमतौर पर 15 साल से ज्यादा आयु के जहाजों को सरकार भी आयात नहीं करने देती। 12 से 15 साल वाले जहाज को रिटायर करने का नियम है। इसका पालन होता भी है और नहीं भी होता। आज इंडस्ट्री के सामने ‘रिपेयर’ का संकट है। हवाई जहाजों की मरम्मत के लिए कार्यकुशल स्टाफ की कमी है। पुर्जे और उन्हें लगाने वाले, दोनों ही मामलों में बाहरी देशों पर निर्भरता है।

पहले एक साल में 2400 घंटे की उड़ान, बड़ी बात समझी जाती थी। आज उड़ान की वही सीमा 3200 घंटे तक जा पहुंची है। यह केवल फलाइंग टाइम होता है। सुबह चार बजे हवाई जहाज ‘बे’ से बाहर निकलता है और रात को 12 बजे ही ‘बे’ में घुसता है। ऐसे में उसकी जांच या मरम्मत का समय ही नहीं मिल रहा। ईंधन का रेट 80 हजार रुपये प्रति किलोलीटर हो चला है। कभी तेल के दाम बढ़ रहे हैं तो कभी मुद्रा में गिरावट आ रही है। इन सबसे हवाई जहाज की उड़ान और सुरक्षा, दोनों प्रभावित होते हैं।
पैसे का संकट भी हवाई जहाजों को दे रहा ‘झटका’

एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि यहां सारी बात ‘अर्थ’ से जुड़ी है। इंडस्ट्री के पास पैसे का संकट होता है। जब संकट होता है तो इन्हें अकेले छोड़ देते हैं। जब यात्रियों की भरमार होती है तो ये कंपनियां भी नियमों को पीछे छोड़ कमाने में लग जाती हैं। ऐसे में अनट्रेंड लोग और एक्सपर्ट का भेद खत्म होने लगता है। हवाई जहाजों के महंगे पुर्जे और ज्यादा महंगे लगने लगते हैं। विदेश से तकनीकी उपकरण आते हैं तो जेब भी ढीली होती है। कई बार तो कुछ जांच भी विदेशों के एक्सपर्ट से कराई जाती हैं। भारत में अभी इस क्षेत्र में निर्भरता के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। एक इंजन पर ही 20 करोड़ से ज्यादा खर्च हो जाते हैं। हवाई जहाजों को लीज पर लिया जाता है, ताकि जिम्मेदारी कंपनी की बनी रहे। पहले कुछ एयरक्रॉफ्ट का सौदा करते हैं। उन्हें अपने तरीके से मॉडिफाई कर देते हैं। सेटिंग यह रहती है कि पहले आप खरीद लो, उसके बाद हम लीज पर ले लेंगे। स्पाइस जेट के साथ भी कुछ ऐसा ही बताया जा रहा है।
कोरोनाकाल में एयर इंडस्ट्री को पहुंचा था भारी नुकसान

अमेरिका स्थित विमान निर्माता कंपनी बोइंग ने कोरोनाकाल में कहा था कि एविएशन इंडस्ट्री को 2019 के स्तर तक पहुंचने के लिए कम से कम तीन साल लग सकते हैं। बोइंग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डेव कैलहोन ने तब ‘फंडामेंटल ग्रोथ ड्राइवर’ बरकरार रहने की बात कही थी। दीर्घकालिक विकास के रुझान तक लौटने में कुछ साल लगने तय हैं। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कोरोनाकाल में विमानन उद्योग के 24,000-25,000 करोड़ रुपये के राजस्व घाटे की ओर जाने की संभावना जताई थी। देश में बहुत से हवाई जहाज लीज पर हैं। कोरोनाकाल में इनकी कॉस्ट और स्टाफ की सैलरी का संकट आ गया। हवाई जहाज उड़े या न उड़े, उसकी मेंटेनेंस का खर्च तो उठाना ही है। अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देशों ने एविएशन इंडस्ट्री के कर्मियों की सेलरी के लिए आर्थिक पैकेज और सब्सिडी दी थी। भारत में स्पाइस जेट के हवाई जहाज, तकनीक गड़बड़ियों से जूझ रहे हैं। स्पाइस जेट के विमान की विंडशील्ट तक चटखने का मामला सामने आ चुका है।