कहा जा रहा है कि आरसीपी सिंह बिहार में वही भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे थे, जो महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे ने निभाई थी। अटकलों के बीच यह जानना जरूरी है कि क्या आरसीपी सिंह की यह कोशिशें सफल हो सकती हैं? क्या वे बिहार के एकनाथ शिंदे बन सकते हैं? आइये जानते हैं…
बिहार में सियासी उथल-पुथल शुरू हो चुकी है। रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि राज्य में 11 अगस्त तक सरकार बदल सकती है। इस उथलपुथल के की शुरुआत दो दिन पहले हुई। जब जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने अपने पूर्व अध्यक्ष राम चंद्र प्रताप सिंह (आरसीपी सिंह) को भ्रष्टाचार के आरोपों पर नोटिस जारी किया।
इसके बाद कभी नीतीश के बेहद खास रहे आरसीपी सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। कहा गया कि आरसीपी सिंह बिहार में वही भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे थे, जो महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे ने निभाई थी। अटकलों के बीच यह जानना जरूरी है कि क्या आरसीपी सिंह की यह कोशिशें सफल हो सकती हैं? क्या वे बिहार के एकनाथ शिंदे बन सकते हैं? आइये जानते हैं…
नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह – फोटो : तीसरी जंग
बिहार की राजनीति में आरसीपी का कितना जोर?
आरसीपी सिंह ने अपने एक दशक से भी लंबे करियर में जदयू में काफी जोर बनाया है। उनका प्रभाव इतना रहा कि नीतीश कुमार ने 2017 में राजद के साथ बने महागठबंधन से दूरी बना ली। इतना ही नहीं नीतीश और प्रशांत किशोर के अलगाव के पीछे भी आरसीपी सिंह के बढ़ते राजनीतिक कद को वजह माना जाता है।
जब तक आरसीपी सिंह बिहार में रहे, जदयू में उनके समर्थकों का एक जत्था भी तैयार हो गया। इसके उदाहरण मिलते हैं बिहार में हुई कुछ हालिया घटनाओं से। इसी साल जून में जदयू ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए आरसीपी सिंह के चार करीबी नेताओं को प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया था। इनमें जदयू के महासचिव अनिल कुमार और विपिन कुमार यादव जैसे बड़े नाम शामिल थे। इसके अलावा जदयू प्रवक्ता अजय आलोक और पार्टी की समाज सुधार इकाई के अध्यक्ष जितेंद्र नीरज को भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।
पिछले महीने भी जदयू की बैठक में आरसीपी सिंह को सीएम बनाने से जुड़े नारे लगे थे। इन घटनाओं के बाद जदयू नेतृत्व को सफाई देनी पड़ी थी कि नीतीश कुमार पार्टी के अविवादित नेता हैं। आरसीपी सिंह को कड़ी चेतावनी देते हुए पार्टी ने कहा था कि नारेबाजी कर रहे लोगों को पार्टी का सदस्य नहीं माना जाएगा। इसके बाद से ही जदयू के किसी भी नेता ने आरसीपी के समर्थन से जुड़ा बयान नहीं दिया।
आरसीपी सिंह – फोटो : तीसरी जंग
क्या बिहार के एकनाथ शिंदे बन सकते हैं आरसीपी सिंह?
हालांकि, आरसीपी सिंह की ओर से जदयू से इस्तीफा दिए जाने के बाद अब उनके गुट ने चौंकाने वाला दावा किया है। जदयू के पूर्व प्रदेश महासचिव कन्हैया सिंह ने कहा है कि पार्टी के 24 से ज्यादा विधायक उनके संपर्क में हैं। इसके साथ ही कन्हैया सिंह ने दावा किया है कि आरसीपी सिंह जदयू-आर के नाम से नई पार्टी बनाने की तैयारी कर रहे हैं। आरसीपी गुट की तरफ से यह एलान बिल्कुल उसी तरह है, जिस तरह की घोषणा महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे गुट की ओर से की गई थी।
पीएम नरेंद्र मोदी-तेजस्वी यादव-नीतीश कुमार (फाइल फोटो) – फोटो : PTI
आरसीपी गुट ने की बगावत तो क्या हो सकता है राजनीतिक गणित?
- बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए किसी भी गुट को 122 सीटों की जरूरत होगी।
- एनडीए के पास कुल 127 सीटें हैं, जिनमें से 77 विधायक भाजपा के हैं, 45 जदयू के और जीतनराम मांझी की पार्टी हम के भी 4 विधायक हैं। इसके अलावा गठबंधन में एक निर्दलीय भी शामिल है।
- विपक्षी महागठबंधन के पास 114 सीटें हैं। इनमें 79 सीटें अकेले राजद की हैं, वहीं कांग्रेस के पास 19 और लेफ्ट के पास 16 सीटें हैं।
- इसके अलावा बिहार में एक सीट ओवैसी की एआईएमआईएम के पास है। वहीं, एक सीट खाली है।
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव(फाइल) – फोटो : PTI
एनडीए और महागठबंधन के लिए क्या मायने?
- आरसीपी गुट के दावे के मुताबिक उनके संपर्क में 24 विधायक हैं। जदयू के कुल 45 विधायक हैं। अगर विधायक नीतीश से बगावत करते भी हैं तो बागियों को दलबदल से बचने के लिए इनकी संख्या कम से कम 30 होनी चाहिए।
- अगर आरसीपी गुट 30 विधायकों का समर्थन जुटा लेता है और भाजपा के साथ जाने का एलान करता है तो इस स्थिति में भाजपा के 77 विधायकों के साथ कुल विधायकों की संख्या 107 हो जाएगी। एक निर्दलीय सुमित कुमार सिंह भी लंबे समय तक भाजपा में रहे हैं। उनका भाजपा से जुड़ाव है। ऐसे में सुमित का भाजपा गठबंधन के साथ रहना तय माना जा रहा है।
- आरसीपी गुट के 30 विधायकों और निर्दलीय विधायक का साथ मिलने के बाद भी भाजपा को सरकार बनाने के लिए 14 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में बिहार में भाजपा को महाराष्ट्र जैसी सफलता के लिए कुछ और दलों का साथ चाहिए होगा।
इस लिहाज से एनडीए को जदयू से टूटने और आरसीपी सिंह के भाजपा में शामिल होने का कोई खास फायदा नहीं होगा। कुल मिलाकर आरसीपी सिंह के एकनाथ शिंदे बनने का रास्ता काफी कठिन है। जदयू ने भी इस बीच महाराष्ट्र जैसी स्थिति से बचने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। वह कथित तौर पर कांग्रेस से संपर्क में बनी है। अगर जदयू टूट के बाद महागठबंधन के साथ जाती है तो यह राजद का ही फायदा है।
नीतीश कुमार – फोटो : self
खुद का शिवसेना जैसा हश्र न हो, इसके लिए जदयू ने क्या कदम उठाए?
बिहार में जदयू का हश्र महाराष्ट्र की शिवसेना जैसा न हो, इसके लिए नीतीश कुमार ने पहले ही तैयारियां कर ली हैं। जहां पार्टी ने लगातार आरसीपी सिंह को कमजोर करते हुए उनसे सभी अहम पद छीन लिए, वहीं पार्टी से निकालने के लिए भी सीधा कोई आदेश नहीं जारी किया। बल्कि उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर नोटिस जारी किया। जदयू का सीधा मकसद आरसीपी की छवि को गिराना और विधायकों से उनके संपर्क को खत्म करना था।
इस बीच खबरें आईं कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी से भी बातचीत की है। इन खबरों की पुष्टि जरूर नहीं हुई, लेकिन इस तरह की अटकलों का बाहर आना ही भाजपा के लिए चेतावनी की तरह रहा। उधर राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी एलान किया है कि अगर नीतीश एनडीए से अलग होते हैं तो वे जदयू को समर्थन देंगे।