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Breaking : अरब संघ का फ़ैसला अमेरिका और इस्राईल की बहुत बड़ी पराजय, 12 साल बाद अरब संघ में सीरिया की सदस्यता बहाल : रिपोर्ट

दोस्तो जैसाकि आपने ख़बरों में अवश्य पढ़ा होगा कि 12 साल के बाद अरब संघ में सीरिया की सदस्यता बहाल कर दी गयी। यानी सीरिया अब फिर से अरब संघ का एक प्रभावी सदस्य देश बन गया है।

रोचक बात यह है कि अरब संघ के समस्त सदस्य देशों ने एकमत होकर किसी प्रकार की शर्त और विरोध के बिना सीरिया के अरब संघ में वापसी पर सहमति जताई।

अरब संघ के सदस्य समस्त देशों को भलीभांति ज्ञात था कि अमेरिका और इस्राईल इस बात को बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं कि अरब संघ में सीरिया की सदस्यता बहाल कर दी जाये और अरब संघ के फैसले से अमेरिका और इस्राईल के दिलों में आग लग गयी है परंतु इस बात की जानकारी के बावजूद अरब संघ का एकजुट होकर सीरिया के पक्ष में फैसला इस बात का संदेश है कि अरब लीग के सदस्य देश अब अमेरिका, इस्राईल और उनकी हां में हां मिलाने वालों की इच्छाओं व दृष्टिकोणों को कोई महत्व नहीं देते हैं और यह फैसला लेकर बता दिया है कि अब पश्चिम एशिया में अमेरिकी वर्चस्व कम नहीं बल्कि खत्म हो रहा है।

मिस्र के विदेशमंत्री ने कहा कि सीरिया संकट का सैन्य समाधान नहीं है और कूटनयिक ढंग से सीरिया संकट का समाधान किया जाना चाहिये। मिस्र के विदेशमंत्री ने इसी प्रकार कहा कि यह बात स्वीकार नहीं है कि अरब जगत की एक संतान शरणार्थी, बेघर रहे और उसे जंग व आतंकवाद से नुकसान पहुंचे। अरब संघ ने वर्ष 2011 में सीरियाई सरकार पर अपने विरोधियों के दमन का आरोप लगाया था और विरोधियों के समर्थन के लक्ष्य से उसने अरब संघ में सीरिया की सदस्यता को विलंबित कर दी थी और इस संघ का इरादा यह था कि सीरिया की जो सीट अरब संघ में है उसे दमिश्क सरकार के विरोधियों को दे दिया जाये।

अरब संघ में सीरिया की सदस्यता रविवार सात मई 2023 को एसी स्थिति में बहाल कर दी गयी जब हालिया महीने में कुछ पश्चिमी संचार माध्यमों ने लिखा था कि क़तर, जार्डन और कुवैत अभी भी अरब संघ में सीरिया की सदस्यता के बहाल किये जाने के विरोधी हैं और इस संबंध में उनकी कुछ शर्तें हैं।

सवाल यह पैदा होता है अरब संघ के सदस्य देश विशेषकर सऊदी अरब इस संघ में सीरिया की वापसी के लिए क्यों प्रयासरत था? जानकार हल्कों का मानना है कि जिस तरह से सऊदी अरब ने ईरान से समझौता कर लिया उसी तरह से ईरान के मित्र देश सीरिया के साथ भी संबंधों को सामान्य बनाना चाहता है। क्योंकि अब उसकी और दूसरे अरब और ग़ैर अरब देशों की समझ में बहुत अच्छी तरह आ गया है कि ईरान जहां क्षेत्र का एक प्रभावी व शक्तिशाली देश है वहीं ईरान ने अपने रचनात्मक प्रयासों से यह संदेश भी दे दिया है कि वह जिसका साथ देता है कभी भी उसके साथ बेवफाई नहीं करता और अंतिम सांस तक उसका साथ देता है।

अभी ईरान के राष्ट्रपति की हालिया सीरिया यात्रा के दौरान जिस तरह से वहां की जनता व लोगों ने राष्ट्रपति का भव्य स्वागत किया उससे बिल्कुल स्पष्ट था कि वे इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि अगर ईरान की मदद न होती तो सीरिया में आतंकवादियों की सरकार होती और अमेरिका सहित बहुत से देशों व शासनों ने आतंकवादियों के समर्थन में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लिया।

आरंभ में आतंकवादियों ने सीरिया में जिस तरह से तांडव मचा रखा था उसे देखते हुए बहुत से लोगों व देशों को लगने लगा था कि बश्शार असद की सरकार कुछ ही दिनों की मेहमान है और कुछ संचार माध्यमों में यह तक अफवाह उड़ा दी गयी थी कि बश्शार असद अब रूस या किसी दूसरे देश में शरण लेने वाले हैं।

बहरहाल सऊदी अरब जो अरब संघ में सीरिया की वापसी का इच्छुक था तो उसकी एक वजह हो सकती है कि चूंकि रियाज़ काफी समय से अमेरिका से दूर हो रहा है और अमेरिका ने कुछ सैन्य संसाधनों को भी सऊदी अरब से हटा लिया जो वाशिंग्टन और रियाज़ के मध्य तनाव और मनमोटाव का सूचक है और अब सऊदी अरब ईरान, रूस और चीन की नीति की दिशा में कदम बढ़ा रहा है क्योंकि इसी दिशा में कदम उठाये जाने को अपने हित में समझ रहा है।

सीरिया ने अरब संघ के फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि इस समय अरब जगत में जो सकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं वह समस्त अरब देशों के हित में हैं। इसी बीच लेबनान ने भी अरब संघ के एलान का स्वागत करते हुए कहा है कि सीरिया की उपस्थिति के बिना अरब संघ अधूरा है।

लेबनान के विदेशमंत्री अब्दुल्लाह बूहबीब ने एलान किया है कि सीरिया को अरब संघ में लौट आना चाहिये और लेबनान हमेशा इस ज़रूरत पर बल देता और उसका समर्थन करता है। उन्होंने कहा कि लेबनान पहला देश है जो इस बात का इच्छुक है कि सीरिया को अरब संघ में लौट आना चाहिये और आरंभ से वह अरब संघ में सीरिया की सदस्यता विलंबित किये जाने का विरोधी था।

लेबनान के विदेशमंत्री ने कहा कि आज इस बात की ज़रूरत नहीं है कि हम यह कहें कि अरब संघ में सीरिया की सदस्यता के बहाल किये जाने के इच्छुक हैं क्योंकि हमारा मानना है कि सीरिया के बिना अरब संघ अधूरा है और यह देश इस संघ का एक महत्वपूर्ण सदस्य है और उसे चाहिये कि वह अपनी पुरानी भूमिका अदा करे।

बहरहाल जानकार हल्कों का मानना है कि अरब संघ के विदेशमंत्रियों ने सीरिया के संबंध में जो फैसला लिया है वह क्षेत्र में होने वाले सकारात्मक परिवर्तनों और क्षेत्रीय विशेषकर अरब देशों के मध्य संबंधों को मधुर व घनिष्ठ बनाने और शांति व सुरक्षा स्थापित करने की दिशा में जहां एक महत्वपूर्ण कदम है वहीं अमेरिका और इस्राईल की बहुत बड़ी पराजय है।


12 वर्षों के बाद अरब संघ में सीरिया की सदस्यता बहाल, अमेरिका और इस्राईल की धड़कनें तेज़

सीरिया की सरकार का तख्ता पलटने की उम्मीद पर पानी फिर जाने के 12 वर्षों के बाद अरब संघ में सीरिया की सदस्यता बहाल हो गयी है।

अरब संघ के विदेशमंत्रियों ने कल मिस्र की राजधानी काहेरा में एक बैठक की जिसमें इस बात का फैसला लिया गया। 12 नवंबर 2011 को सऊदी अरब सहित कुछ अरब देशों ने अरब संघ में सीरिया की सदस्यता को विलंबित करने का फैसला लिया था।

इराकी विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता अहमद अस्सहाफ ने इस बात की जानकारी देते हुए कहा कि अरब संघ के विदेशमंत्रियों ने इस बात पर सहमति जताई है कि इस संघ में सीरिया की सीट उसे दे दी जाये। इराकी विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि सीरिया की अरब संघ में वापस के लिए बगदाद ने इन वर्षों में जो कुछ भी अंजाम दिया उसने आज यानी सात मई को नतीजा दिया और इससे क्षेत्र और सीरिया में शांति व सुरक्षा स्थापित करने में मदद मिलेगी।

अलमयादीन ने भी रिपोर्ट दी है कि अरब संघ के विदेशमंत्रियों ने सर्वसम्मति से और किसी प्रकार की शर्त के बिना इस संघ में सीरिया की वापसी के प्रति सहमति जताई है। क़ाहेरा में अरब संघ के विदेशमंत्रियों की बैठक की समाप्ति के बाद जो संयुक्त विज्ञप्ति जारी की गयी उसमें सीरिया संकट के समाधान के लिए सीधे दमिश्क सरकार से बात करने पर बल दिया गया है।

मिस्र के विदेशमंत्री सामेह शुक्री ने बल देकर कहा है कि हम सबको सीरियाई लोगों के साथ खड़ा होना चाहिये और सीरियाई लोगों की पीड़ा समाप्त करने में अपनी ज़िम्मेदारियों पर अमल करना चाहिये। मिस्री विदेशमंत्री ने इसी प्रकार कहा कि सीरिया संकट का कोई सैन्य समाधान नहीं है और राजनीतिक मार्गों से इस संकट का समाधान किया जाना चाहिये।

ज्ञात रहे कि 22 देश अरब संघ के 22 सदस्य हैं और वर्ष 2011 में सऊदी अरब और कुछ अरब देशों ने दमिश्क सरकार पर अपने विरोधियों के दमन का आरोप लगाकर अरब संघ में सीरिया की सदस्यता विलंबित कर दी थी।

अरब लीग में सीरिया की वापसी के लिए अनुकूल हालात, विदेश मंत्रियों की सहमति

अरब लीग के विदेश मंत्रियों की बैठक में इस संगठन में सीरिया की वापसी के संकेत मिल रहे हैं।

मिस्र की राजधानी क़ाहेरा में अरब लीग के विदेश मंत्रियों की बैठक हो रही है और जानकार सूत्रों के हवाले से मीडियों में ख़बर आई है कि अरब देशों के विदेश मंत्री अरब लीग में सीरिया की वापसी पर सहमत हैं।

आगामी 19 मई को जिद्दा में अरब लीग की शिखर बैठक होने वाली है और इससे लगभग दो हफ़्ते पहले क़ाहेरा में संगठन के विदेश मंत्रियों की बैठक हो रही है जिसके एजेंड में अरब लीग में सीरिया की वापसी का विषय मुख्य रूप से शामिल है।

अलअरबिया टीवी चैनल ने रिपोर्ट दी कि बंद दरवाज़ों के पीछे होने वाली बैठक में विदेश मंत्रियों ने सहमति जताई है कि सीरिया 12 साल बाद अरब लीग में वापस आए। विदेश मंत्रियों के बीच जिस बयान पर सहमति बनी है उसमें लिखा गया है कि आज 7 मई से अरब लीग की बैठकों में सीरिया के प्रतिनिधिमंडलों की शिरकत बहाल हो जाएगी।

इससे पहले अरब लीग के प्रवक्ता जमाल रुश्दी ने कहा था कि सीरिया के विषय पर आज फ़ैसला लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में सऊदी अरब और जार्डन में इससे पहले बातचीत हो चुकी है जबकि सीरियाई शरणार्थियों की पड़ोसी देशों से अपने वतन वापसी, सीरिया के सारे इलाक़ों पर इस देश की सरकार की संप्रभुता की बहाली और मादक पदार्थों की तस्करी की रोकथाम जैसे विषयों पर भी बहस हो रही है।

सीरिया, जार्डन, सऊदी अरब, इराक़ और मिस्र के विदेश मंत्रियों की बैठक में भी इस विषय पर विस्तार से बातचीत हुई।

अरब लीग ने नवम्बर 2011 में सीरिया पर राजनैतिक और आर्थिक प्रतिबंध का एलान करते हुए संगठन में इस देश की सदस्यता स्थगित कर दी थी।