साहित्य

दोस्तो ये कविता नहीं एक सच्चाई है नसीहत है…पूरे समाज के लिए…डॉ.विजया सिंह की रचना पढ़िये!

Dr.vijayasingh
==========
दोस्तो ये कविता नहीं एक सच्चाई है नसीहत है… पूरे समाज के लिए… जब हम किसी के काम नहीं आते हैं …तो हमारे काम कौन आयेगा ….और मैंने अपने जीवन में हमेशा निस्वार्थ दूसरों की मदद की है…हर किसी से सच्चे दिल से मोहब्बत की है …हर रिश्ते का मान रखा है….लोगों को आदर सम्मान दिया है ..और उसका फल ईश्वर मुझे हर जगह देते हैं ..मैं जो कुछ इस दुनिया को देती हूँ वहीं दुगना होकर मेरे पास पलट कर आता है…मेरे ऊपर छोटा सा दुख आते ही हजारों हाथ खड़े हो जाते हैं दुआ के लिए भी और काम के लिए भी..

शायद इसीलिए मेरा जीवन दुखों से घिरा होने के बावजूद भी मुझे लगता है कि मुझसे ज्यादा खुशहाल इस दुनिया में कोई नहीं है………अगर मेरी कविता पढ़कर कुछ लोगों ने ही सही खुद को बदलने का प्रयास किया तो मैं समझूँगी मेरा लेखन साकार हुआ…… निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करे संबन्धों को परिवार को महत्व दे..पूजा करते समय कोई इच्छा ना करें बस आराधना करे ईश्वर की निस्वार्थ बिना कुछ मांगें……..फिर देखे आपका जीवन कैसा दमकता है……

अरे बन्दे आज तू अपने ग़म में रोता है
तू कितनों के गम में रोया था
सच बता मुझे तूने कितनों के आँसू पोछा था
तू चलता रहा मतवाली चाल
तो शय तो तुझको होना था
है बड़ा शतरंज सा जीवन
सम्भलकर चाले चलना था
ग़म को रखकर दिल के अन्दर
अधरों से मुस्काना था
हारे हुए जो मिले राह में सबको गले लगाना था
नेकिया कर-कर तूने अपना बक्सा भरना था
तन की सुंदरता दो दिन की मन का सुंदर बनना था
अरे बन्दे आज तू अपने ग़म में रोता है
तू कितनो के ग़म में रोया था…….
राधे राधे डॉ.विजया सिंह