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HC Verma : ‘ज्यादा नंबर लाने से बच्चे के भविष्य से नाता नहीं’, ऐसा क्यों बोले IIT के पूर्व प्रोफेसर

प्रोफेसर वर्मा ने अपने संबोधन में परीक्षाओं में नंबरों के महत्व और बढ़ते कॉम्पटीन को लेकर बात की। आइये जानतें हैं उन्होंने क्या कहा…

आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर और दुनियाभर में फिजिक्स की अहम किताबें लिखने वाले पद्मश्री एचसी वर्मा ने आज अमर उजाला की ओर से आयोजित किए गए विज्ञान संवाद कार्यशाला में हिस्सा लिया। एबीईएस इंजीनियरिंग कॉलेज के सभागार में प्रोफेसर वर्मा सीबीएसआई, आईसीएसई और राज्य बोर्ड के शिक्षकों से रूबरू हुए और उन्हें पढ़ाने के आसान तरीकों के बारे में बताया। इतना ही नहीं प्रोफेसर वर्मा ने बच्चों के सीखने की असीमित क्षमता और उनके कौशल विकास को बढ़ावा देने पर बात की।

 

गौरतलब है कि आज ही देशभर में सीबीएसई के नतीजे भी घोषित हुए हैं। इस बीच प्रोफेसर वर्मा ने अपने संबोधन में परीक्षाओं में नंबरों के महत्व और बढ़ते कॉम्पटीन को लेकर बात की। आइये जानतें हैं उन्होंने क्या कहा…

‘अच्छे नंबर आने से नहीं तय होता अच्छा भविष्य’
प्रोफेसर वर्मा ने कहा, “हम समाज में एक ऑड बनकर नहीं रहना चाहते। हमें समाज के साथ एकात्म होना है। इसलिए हम बच्चों को स्कूल भेजते हैं। यह संदेश होता है कि पढ़ने-लिखने से सब मिल जाता है। पर क्या पढ़ने-लिखने के बाद हमें नौकरी मिल जाती है? घास खोदने की नौबत खत्म हो जाती है। यह बहुत बड़ा स्लोगन है- अच्छा पढ़ लेगा, अच्छी डिग्री ले लेगा तो अच्छी नौकरी मिल जाएगी, अच्छी शादी हो जाएगी, अच्छा दहेज मिल जाएगा।”

उन्होंने कहा, “आज कल अच्छे भविष्य का मतलब है- अच्छी सुविधाएं मिलेंगी। एसी होना चाहिए, कार होनी चाहिए, गर्मी नहीं लगनी चाहिए। एक बड़ा घर होना चाहिए- एक कमरा बच्चों के लिए, एक हमारे लिए, एक गेस्ट के लिए। तो अच्छे भविष्य की परिभाषा यह गढ़ दी गई है कि अच्छे नंबर लाओगे तो अच्छा भविष्य होगा। लेकिन अगर ऐसा होता तो अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी के लिए क्यों लड़ रहे थे। आखिर मोदीजी ने नौकरियों का एलान किस के लिए कर रहे थे। लोग नौकरियों के लिए भटक रहे थे, इसलिए तो बेरोजगारी का मुद्दा उठा। तो यह तो भ्रम है कि अच्छा भविष्य अच्छे नंबर लाने से ही बनेगा।

उन्होंने शिक्षकों से कहा, “यह हमें भी जानना चाहिए और माता-पिता को भी जानना चाहिए। अच्छे नंबर का मतलब अच्छा भविष्य नहीं होता। मेरे खुद के बड़े खराब नंबर आए थे बचपन में। लेकिन आईआईटी में मैं टॉपर रहा। क्या आपने मुझे इसलिए बुलाया है कि मैंने एमएससी में टॉप किया था। आईआईटी कानपुर में हर साल एक टॉपर होता है। हर आईआईटी, हर यूनिवर्सिटी और हर कॉलेज में एक टॉपर होता है। टॉपर होने की गिनती करेंगे तो एक साल बाद सब इसी कमरे में बैठे मिलेंगे।

‘एमएससी टॉपर होने की वजह से आपने मुझे नहीं बुलाया’
“आपने मुझे इसलिए नहीं बुलाया कि मैंने एमएससी में टॉप नहीं किया। अच्छे भविष्य का अच्छे नंबरों से कोई रिश्ता नहीं है। यह रिश्ता सिर्फ हवा में है। समझ ही नहीं आता कि यह रिश्ता क्या कहता है। हम बच्चों को ढेर सारे नंबर दिलाकर क्या कर लेंगे। जेईई एडवांस का रिजल्ट निकलता है तो परिवार जश्न मनाते हैं। स्कूल-कॉलेज आपको माला-वाला पहनाते हैं, डीएम को भी बुलाएंगे। क्योंकि एक तथाकथित कठिन परीक्षा पास कर के एक तथाकथित अच्छे संस्थान में एडमिशन मिल गया। दो महीने बाद वही बच्चा फोन कर के कहता है कि मम्मी मैं तो फेल हो गया।”

‘आईआईटी में पहले से तय नहीं होते पासिंग मार्क्स’
प्रोफेसर वर्मा ने बोर्ड एग्जाम और आईआईटी के अंदर के माहौल के फर्क पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा, “आईआईटी में जो नंबर है पास करने का, वह पहले से घोषित नहीं होता। जब गेम ओवर होता है, तब गेम के नियम बनाते हैं। जब सारी परीक्षा हो चुकी है, सबके मार्क्स आ जाते हैं, तब हम समझते हैं कि कितने नंबर वालों को पास किया जाए, कितनों को फेल। पूरी टीम बैठती है। करीब घंटे भर तक विचार करती है और फिर डिसाइड होता है। 200 नंबर का एग्जाम होता है और फेल होने वाला मार्क्स 22-23 से लेकर 30-32 तक जाता है। क्योंकि अगर हम 30 फीसदी कर देंगे तो 70 फीसदी बच्चे फेल हो जाएंगे। वह बच्चा जिसे शहर ने दो महीने पहले पूरे शहर ने सिर-आंखों पर बिठाया था। अखबारों ने उसकी फोटो छापी, उस बच्चे के हाथ में ग्रेड कार्ड आता है- फेल। क्या गुजरती होगी उस पर। क्या फायदा हुआ उसे घोटकर न्यूमेरिकल पढ़ाने का। बच्चे साइकोलॉजिकली-मेंटली डिरेल हो जाते हैं।”

‘नंबर लाने से नहीं स्किल पैदा करने से होता है अच्छा भविष्य’
प्रोफेसर वर्मा ने कहा, “नंबरों का जीवनकाल बहुत छोटा होता है। थोड़े समय के लिए वे खुशी देते हैं। लाइफटाइम के लिए नहीं होते। आपको अच्छी नौकरी मिल जाए, वहां जो 10 हजार लोग होंगे, उनमें जब तक आपमें कुछ अलग स्किल्स नहीं होंगे। आपका अपना कॉन्ट्रीब्यूशन बाकियों से अलग नहीं होगा, तब तक मुकेश अंबानी आपसे नहीं मिलेंगे। आपके अंदर कुछ अलग होना चाहिए।”

“हम कहते हैं कि नंबर लाने से कुछ नहीं होता, स्किल से होता है। तो स्किल तब डेवलप होगी कि आप पहले क्लाइंबिंग कराओ, अंडरस्टैंडिंग कराओ और फिर थिंकिंग कराओ। अंडरस्टैंडिंग और थिंकिंग काफी अलग-अलग हैं। हमारे एजुकेशन सिस्टम में थिंकिंग की जगह तो है ही नहीं। क्योंकि टीचर को सिलेबस खत्म करना होता। किताब में सबकुछ है, सवाल भी उसी से आएंगे। तो बच्चों को क्या है कि उन्हें पता है कि क्या पढ़ना है। शिक्षक इसमें कुछ सोचेगा नहीं, बच्चों को हम सोचने देंगे नहीं। शिक्षक सोचते हैं कि तुम मिट्टी के घड़े हो, हम गढ़ेंगे तो तुम सही बनोगे। इसलिए हम शिक्षक उनके भविष्य के निर्माता हैं। लेकिन हम बच्चों को सोचने देते नहीं है।”