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Jammu Kashmir : अनुच्छेद 370 के बाद जम्मू कश्मीर में, जानें किसे होगा फायदा?

अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में इस साल पहली बार विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। चुनाव आयोग इसके लिए तैयारी कर रहा है। कहा जा रहा है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के साथ ही यहां भी विधानसभा चुनाव हो सकते हैं।

इस सुगबुगाहट के बीच केंद्र शासित राज्य जम्मू कश्मीर में दो बड़े बदलाव हो रहे हैं। पहला वोटर बनने की प्रक्रिया में बदलाव हो चुका है, जबकि दूसरा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन बदलना है। इसका प्रस्ताव बनकर तैयार हो चुका है। इस बीच एक विवाद भी शुरू हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती का आरोप है कि हर तरह से भाजपा को फायदा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।

ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि जम्मू कश्मीर में मतदान को लेकर हुए बदलावों से किसे फायदा होगा सकता है? चुनाव आयोग के नियम में क्या बदलाव हुए हैं? परिसीमन में क्या-क्या प्रस्ताव हैं? आइए जानते हैं…

मतदान – फोटो : तीसरी जंग

पहले वोटर लिस्ट के नियम को जान लीजिए?
बुधवार 17 अगस्त को जम्मू कश्मीर चुनाव आयोग मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदेश कुमार का एक बयान सामने आया। इसमें उन्होंने बताया कि अब जम्मू कश्मीर में वोटर रहने वाले बाहरी लोग भी वोट दे सकेंगे। अनुच्छेद 370 हटने की वजह से जम्मू कश्मीर में वोटर बनने के लिए स्थायी निवास प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है। यानी, अन्य राज्यों की तरह ही अब अगर आप जम्मू कश्मीर में रह रहे हैं तो वहां का वोटर बन सकते हैं।

मतलब जम्मू कश्मीर में तैनात सुरक्षाबलों के जवान, उनके परिवार के सदस्य जो साथ रहते हैं, दूसरे राज्यों से आकर केंद्रीय और राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों, सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले लोग और उनके परिजन, दूसरे राज्यों से आकर काम करने वाले मजदूर, प्राइवेट संस्थानों में नौकरी करने वाले लोग, कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने वाले छात्र भी जम्मू कश्मीर के वोटर बन सकते हैं। बस उम्र 18 साल से अधिक हो।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदेश कुमार ने अनुमान लगाया है कि वोटर्स बनने के नए नियम से करीब 25 लाख नए वोटर्स बढ़ सकते हैं। आयोग की तरफ से इसके लिए अध्यादेश भी जारी किया जा चुका है। वोटर बनने के फार्म में भी बदलाव हो चुका है।

मतदान – फोटो : तीसरी जंग

अभी कितने वोटर्स हैं?
जम्मू कश्मीर में अभी 18 साल से अधिक उम्र के करीब 98 लाख लोग रहते हैं। हालांकि, वोटर्स लिस्ट की अंतिम सूची में इनकी संख्या 76 लाख है। ऐसे में अगर 25 लाख नए वोटर्स बनते हैं तो राज्य में वोट देने वालों की संख्या एक करोड़ से ऊपर हो जाएगी।

नए परिसीमन के तहत होंगे चुनाव – फोटो : तीसरी जंग

नए परिसीमन के तहत होगा चुनाव
केंद्र शासित राज्य बनने के बाद जम्मू कश्मीर में नए सिरे से हुए परिसीमन के तहत ही चुनाव होगा। इसमें जम्मू में छह और कश्मीर में एक विधानसभा सीट समेत कुल सात विधानसभा सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव है। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएंगी। नए परिसीमन में जम्मू की विधानसभा सीटें 37 से बढ़कर 43 और कश्मीर की 46 से 47 हो जाएंगी।

2019 में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया गया था। तब जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 87 विधानसभा सीटें थीं, लेकिन अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू कश्मीर से लद्दाख को अलग केंद्र शासित राज्य बना दिया गया। इस बदलाव से जम्मू कश्मीर की चार सीटें लद्दाख में चली गई हैं। यानी अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 83 सीटें रह गईं। जिसे अब बढ़ाकर 90 किया जाना है।

पीओके को भी शामिल किया गया है। – फोटो : तीसरी जंग

पीओके को भी शामिल किया गया
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के अनुसार जम्मू-कश्मीर की विधानसभा सीटों की कुल संख्या 107 से बढ़ाकर 114 किए जाने का प्रस्ताव है। इन 114 में से 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके के लिए आरक्षित हैं, जो खाली रहेंगी। पहली बार अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए नौ सीटें आरक्षित की गई हैं, इनमें से छह सीटें जम्मू और तीन सीटें कश्मीर के लिए निर्धारित हैं। पहली बार कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें रिजर्व करने की सिफारिश की गई है।

जम्मू कश्मीर – फोटो : तीसरी जंग

बदलाव से किसे होगा फायदा?
यही सवाल हमने वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव से पूछा। उन्होंने जम्मू कश्मीर के भौगोलिक और मौजूदा राजनीतिक समीकरण के बारे में बताया। दो बिंदुओं में समझाया कि नए परिसीमन और वोटिंग नियमों में बदलाव से किसे ज्यादा फायदा हो सकता है?

जम्मू कश्मीर – फोटो : तीसरी जंग

1. हिंदू बहुल इलाकों में बढ़ी सीटें : अशोक कहते हैं, ‘पहले जम्मू-कश्मीर में कुल 87 विधानसभा सीटें थीं। इनमें मुस्लिम बहुल वाले कश्मीर में विधानसभा की 46 सीटें हैं। हिंदू बहुल इलाके जम्मू में 37 सीटें हैं। राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को 44 सीटें ही चाहिए। पिछले चुनाव में हिंदू बहुल जम्मू की ज्यादातर सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई थी। वहीं, मुस्लिम बहुल आबादी वाले कश्मीर की सीटें नेंशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के खाते में गई थीं।’

 

अशोक के अनुसार, ‘परिसीमन के बाद इसमें बड़ा बदलाव होगा। नए परिसीमन के अनुसार, जम्मू-कश्मीर की कुल 90 सीटों में से अब 43 जम्मू में और 47 कश्मीर में होंगी। 2011 की जनगणना के अनुसार, कठुआ, सांबा और उधमपुर हिंदू बहुल हैं। कठुआ की हिंदू आबादी 87%, सांबा और उधमपुर की क्रमश: 86% और 88% है। किश्तवाड़, डोडा और राजौरी जिलों में भी हिंदुओं की आबादी 35 से 45% है। इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।’

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जेपी नड्डा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह। (फाइल फोटो) – फोटो : तीसरी जंग

2. 25 लाख वोटर्स बढ़े तो भी भाजपा को मिल सकता है फायदा : अशोक श्रीवास्तव कहते हैं, ‘नए वोटर्स के बढ़ने का फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है।’’

भाजपा का जम्मू और कश्मीर में ऐसा रहा है रिकॉर्ड

  • 2002 में जम्मू कश्मीर की 87 सीटों में से भाजपा के खाते में केवल एक सीट आई थी।
  • 2008 में इसमें बढ़ोतरी हुई। भाजपा ने 87 में से 11 सीटें जीती थीं।
  • 2014 में हुए चुनावों में भाजपा ने 25 सीटों पर जीत हासिल की थी। तब भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। ये सभी 25 सीटें जम्मू क्षेत्र से ही जीती थीं, जबकि कश्मीर में उसका खाता तक नहीं खुला था।