बैंगलुरु: जनतादल सेक्युलर ने चुनाव से पहले असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी Aimimऔर बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया था,ओवैसी ने आधे दर्जन के लगभग कर्नाटक में रैलियाँ करी और जेडीएस को वोट करने की अपील करी थी,कर्नाटक में 15 प्रतिशत के लगभग मुसलमान हैं जो बहुत बड़ी संख्या है और निर्णायक भूमिका में हैं,अगर असदउद्दीन ओवैसी चुनावी मैदान में उतरते तो उनकी पार्टी को जो वोट मिलते वो जेडीएस और कोंग्रेस के खाते से ही मिलते।
काँग्रेस ने कर्नाटक में दुष्प्रचार कर रखा था कि जेडीएस बीजेपी को समर्थन करेगी जिसके अल्पसंख्यक वोट खिसक रहा था,जब ओवैसी ने जनता को भरोसा दिलाया तब जाकर मुसलमानों ने जेडीएस को वोट किया है,अब जब सत्ता की चाबी हाथ मे आगई है तो जेडीएस अपने सहयोगियों को भुला बैठी है।
और बुधवार को कोंग्रेस जेडीएस के शपथग्रहण समारोह में अल्पसंख्यक समाज को बिल्कुल नजरअंदाज किया गया,तथा इसके अलावा क्षेत्रीय स्तर की पार्टी के प्रमुख नेताओ तक को न्यौता भेजकर बुलाया गया था, लेकिन जेडीएस को समर्थन देने वाले एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी नजर नहीं आए. जबकि जेडीएस को चुनाव जिताने के लिए ओवैसी ने समर्थन ही नहीं दिया बल्कि प्रचार भी किया।
इसके अलावा ओवैसी की पार्टी ने चुनाव मैदान में अपने उम्मीदवार भी नहीं उतारे. बावजूद इसके वे शपथ ग्रहण समारोह में नजर नहीं आए. सवाल उठता है कि उन्हें बुलाया नहीं गया या फिर कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने के चलते वो खुद गये ही नहीं?
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कर्नाटक चुनाव में अपनी पार्टी के किसी उम्मीदवार को न लड़ाने का फैसला करके सबको चौंका दिया था, जबकि पहले उन्होंने करीब 35 मुस्लिम बहुल सीटों पर लड़ने का मन बनाया था. इसके लिए उन्होंने बकायदा उम्मीवारों का चयन भी कर लिया था।
ओवैसी पर अक्सर बीजेपी को फायदा पहुंचाने के आरोप लगते रहे हैं. यूपी और बिहार में उनकी पार्टी के चुनाव लड़ने पर ये बातें कहीं गई थी. माना जाता है कि इसी के मद्देनजर उन्होंने कर्नाटक में पार्टी उम्मीदवार को उतारने के बजाए जेडीएस को समर्थन करने का फैसला किया. ओवैसी ने जेडीएस उम्मीदवारों को जिताने के लिए जमकर प्रचार भी किया।
बता दें कि कांग्रेस चुनाव प्रचार के दौरान जेडीएस को बीजेपी की बी टीम बता रही थी. राहुल गांधी ने एक जनसभा में कहा था, ‘जनता दल (एस) में ‘एस’ का मतलब सेक्युलर नहीं बल्कि संघ परिवार है.’ हालांकि राहुल गांधी के बयान को राजनीतिक गलियारों में मुस्लिम वोटों को जेडीएस की तरफ खिसकने से बचाने की एक रणनीति के तैयार पर देखा गया था।
कर्नाटक चुनाव नतीजे आए तो 37 सीटों के साथ जेडीएस किंगमेकर की भूमिका में आ गई. 104 सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी और कांग्रेस को 78 सीटें मिली. येदियुरप्पा ने सीएम की शपथ ली, लेकिन बहुमत साबित करने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद कांग्रेस-जेडीएस ने हाथ मिलाया और सत्ता की कमान कुमारस्वामी को मिली।
I spoke Mr @hd_kumaraswamy & congratulated him for his party’s victory & Alliance I am sure as CM Kumaraswamy will discharge his constitutional responsibility in a better way as compared to other predecessors & inshallah Karnataka will progress under his leadership
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) May 15, 2018
कर्नाटक चुनाव नतीजों के ऐलान के बाद कांग्रेस द्वारा कुमारस्वामी को सीएम बनाने की पेशकश के बाद औवैसी ने ट्वीट करके कुमारस्वामी को बधाई दी थी. ओवैसी ने ट्वीट करके लिखा था, ‘मैंने एचडी कुमारस्वामी से बात की और उनकी पार्टी को जीत के लिए बधाई दी. मुझे पूरा भरोसा है कि बतौर सीएम संवैधानिक जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से निभाएंगे.
I thank the people who voted & also who voted for JDS& BSP I also thank my political opponents who should continue with their tirade against me & my party as that makes us more determined to achieve our political objective,as student of politics my political journey continues
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) May 15, 2018
‘
कुमारस्वामी की ताजपोशी में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक के गैर बीजेपी नेता शामिल हुए. यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, बसपा प्रमुख मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, आरएलडी अध्यक्ष अजीत सिंह, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और सीपीआई के डी. राजा सहित विपक्ष के सभी नेता मौजूद थे, लेकिन जेडीएस को समर्थन करने वाले ओवैसी नजर नहीं आए।
असदउद्दीन ओवैसी ने 2013 में काँग्रेस से अपना गठबंधन तोड़ा था और अंधारप्रदेश में जमकर विरोध किया था जिसके बाद से काँग्रेस और Aimim में काफी दूरियाँ होगई हैं,इस लिये काँग्रेस हर गठबन्धन से ओवैसी को दूर रखने की कोशिश करती और कट्टरता का लेबल लगाकर उन्हें बदनाम करती है।
इसी लिये माना जारहा है कि कर्नाटक में भी जेडीएस और काँग्रेस के हाथ मिलाने के बाद ओवैसी को कॉंग्रेस के इशारे पर कुमारास्वामी ने नज़रअंदाज़ किया है,जो राजनीतिक मर्यादाओं और नैतिकता के बिल्कुल खिलाफ है।