द्रौपदी मुर्मू देश की अगली राष्ट्रपति चुन ली गईं हैं। गुरुवार को आए नतीजों में मुर्मू ने अपने प्रतिद्वंदी यशवंत सिन्हा को भारी अंतर से मात दे दी। यूं तो शुरू से आंकड़े मुर्मू के पक्ष में थे, लेकिन यशवंत सिन्हा इस तरह से हारेंगे यह किसी ने नहीं सोचा था। यहां तक की तीन राज्यों से यशवंत सिन्हा को एक भी वोट नहीं मिले। छह राज्य ऐसे हैं, जहां से सिन्हा को 10 से भी कम वोट मिले। वह भी तब जब इनमें से कई राज्यों में विपक्ष की सरकार है।
ऐसे में हम आपको बताएंगे कि किस राज्य से किस उम्मीदवार को कितने वोट मिले? इसके सियासी मायने क्या हैं? आइए जानते हैं…
मुर्मू की जीत कितने बड़े अंतर से। – फोटो : तीसरी जंग
पहले जानिए चुनाव में क्या-क्या हुआ?
राष्ट्रपति चुनाव में कुल 4,754 सांसदों और विधायकों ने वोट किया। इनके वोट की वैल्यू 10 लाख 72 हजार 377 है। इनमें से 2,824 सदस्यों ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट किया। इस तरह से मुर्मू को कुल छह लाख 76 हजार 803 वैल्यू के वोट मिल गए। जीत के लिए 5.43 लाख वैल्यू के वोट की जरूरत होती है। मतलब मुर्मू ने जीत के लिए जरूरी मतों से करीब 1.34 लाख वैल्यू के अधिक वोट हासिल कर लिए।
वहीं, विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा मतगणना के पहले ही दौर से ही बहुत पिछड़ गए। पहले दौर में मुर्मू को मिले वोट की वैल्यू 3.78 लाख थी। जबकि, सिन्हा 1.45 लाख पर टिके थे। तीसरे दौर में मुर्मू ने निर्णायक बढ़त बना ली। चौथे दौर में सिन्हा ने वापसी जरूरी की, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
द्रौपदी मुर्मू और यशवंत सिन्हा – फोटो : तीसरी जंग
किस राज्य से किसे कितने वोट मिले?
(नोट : मध्य प्रदेश और पंजाब के पांच-पांच वोट निरस्त कर दिए गए। इसके अलावा कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, दिल्ली के चार-चार, उत्तर प्रदेश के तीन, बिहार के दो, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मेघालय,तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तराखंड और पुडुचेरी के एक-एक वोट निरस्त हुआ।)
Presidential Elections 2022: यशवंत सिन्हा और द्रौपदी मुर्मू – फोटो : तीसरी जंग
गृह राज्य से भी ज्यादा वोट नहीं हासिल कर पाए सिन्हा
यशवंत सिन्हा बिहार के रहने वाले हैं। इसके बावजूद उन्हें बिहार से ज्यादा वोट नहीं मिल पाया। सिन्हा को बिहार से केवल 106 वोट मिले, जबकि मुर्मू के पक्ष में 133 वोट पड़े। वहीं, द्रौपदी मुर्मू ओडिशा की रहने वाली हैं। यहां से उन्हें 137 वोट मिले, जबकि सिन्हा को नौ वोट मिले।
द्रोपदी मुर्मू-यशवंत सिन्हा – फोटो : तीसरी जंग
मुर्मू के समर्थन में खूब हुई क्रॉस वोटिंग
मुर्मू की जीत तो तय थी। लेकिन कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों के विधायकों और सांसदों ने क्रॉस वोटिंग करके इस जीत के अंतर को और बढ़ा दिया। सबसे ज्यादा क्रॉस वोटिंग असम में हुई। 126 सदस्यीय इस विधानसभा में एनडीए विधायकों की संख्या 79 है, जबकि मुर्मू के समर्थन में 104 वोट पड़े। इसके अलावा मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में भी जमकर क्रॉस वोटिंग हुई। कुल 10 राज्यों के 110 विधायकों ने क्रॉस वोट डाले, वहीं 17 विपक्षी सांसदों ने भी अपनी पार्टी के आदेश के खिलाफ जाकर मुर्मू के पक्ष में वोट किया।
पीएम मोदी ने दी द्रौपदी मुर्मू को बधाई – फोटो : ANI
किन-किन राज्यों में कितने विपक्षी विधायकों ने की क्रॉस वोटिंग?
द्रौपदी मुर्मू – फोटो : तीसरी जंग
17 सांसदों ने भी क्रॉस वोटिंग
विधायक तो विधायक, सांसदों तक ने मुर्मू के समर्थन में क्रॉस वोटिंग की। विपक्षी दलों के 17 सांसदों ने पार्टी के रुख के इतर यशवंत सिन्हा की जगह राजग उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट किए। बड़ी संख्या में सांसदों की क्रॉस वोटिंग के कारण मुर्मू को मत मूल्य में 12,000 का इजाफा हुआ।
गौरतलब है कि राजग उम्मीदवार को इसके घटक दलों के इतर शिवसेना, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, बसपा, अकाली दल, जदएस, सहित कुछ निर्दलीय सांसदों ने समर्थन की घोषणा की थी। संसद के दोनों सदनों को मिला कर इन सभी दलों और राजग के सांसदों की संख्या 529 होती है। इनमें से भाजपा, शिवसेना और बसपा के दो-दो सांसदों ने वोट नहीं डाले थे। इस हिसाब से राजग उम्मीदवार को 523 सांसदों का समर्थन मिलना था, जबकि इसके उलट उसे 540 सांसदों का समर्थन हासिल हुआ। आगे पढ़िए वो तीन वजह जिसके चलते विपक्ष एकजुट नहीं हो पाया…
द्रौपदी मुर्मू – फोटो : तीसरी जंग
1. सिन्हा के मुकाबले एनडीए की उम्मीदवार ज्यादा प्रभावी: सिन्हा सामान्य वर्ग से आते हैं और एक समय भाजपा के बड़े नेता रहे। वहीं, द्रौपदी मुर्मू आदिवासी महिला हैं। ऐसे में अगर विपक्ष के सांसदों और विधायकों को भी मालूम है कि अगर वह मुर्मू का समर्थन करते हैं तो आगे चुनाव में उन्हें इसका फायदा हो सकता है। वह दलित, पिछड़े और आदिवासी वोटर्स के बीच जाकर ये कह सकेंगे कि उन्होंने मुर्मू का साथ दिया।
2. सिन्हा के नाम पर सबको संतुष्ट नहीं कर पाए विपक्षी दलों के मुखिया: यशवंत सिन्हा के नाम का एलान करते वक्त कांग्रेस, टीएमसी, एनसीपी समेत कई विपक्षी दलों के बड़े नेता मौजूद रहे। हालांकि, ये नेता अपने ही सांसदों और विधायकों को संतुष्ट नहीं कर पाए कि सिन्हा को क्यों वोट किया जाए? यूपी में सिन्हा का एक पुराना बयान भी वायरल हो गया। जिसमें दावा किया गया कि सिन्हा ने कभी सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को आईएसआई का एजेंट बताया था। यही कारण है कि कुछ सपा विधायकों ने भी सिन्हा की जगह मुर्मू को वोट डालने की खबरें आईं।
3. आपस में ही लड़ते रह गए विपक्षी दल : विपक्ष में एकजुटता नहीं है। इसका कारण ये है कि अब कोई भी दल कांग्रेस का नेतृत्व नहीं मानना चाहता है। विपक्ष में ज्यादातर दल क्षेत्रीय हैं और अब सभी खुद ही विपक्ष का नेतृत्व करना चाहते हैं। फिर वह टीएमसी की ममता बनर्जी हों या टीआरएस के के. चंद्रशेखर राव। बिहार में तेजस्वी यादव हों या यूपी में अखिलेश यादव। हर कोई अब राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देना चाहता है।