खाड़ी देश क़तर पिछले कुछ हफ़्तों से दुनियाभर में सुर्ख़ियों में है. अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से लेकर, सबसे बड़े अरब देश सऊदी अरब की ज़ुबान पर क़तर का ही नाम है.
मध्य-पूर्व के कई देशों ने क़तर से ताल्लुक़ ख़त्म कर लिए हैं. क़तर पर तमाम तरह की पाबंदियां लगा दी गई हैं. उसके सामने कई शर्तें रखी गई हैं कि वो उनका पालन करे और क़तर ने किसी भी शर्त को मानने से इनकार कर दिया है.
हाल ये है कि क़तर के लोगों को खाने के लाले पड़ गए हैं. वो ईरान की मदद से अपने देशवासियों को खाना-पानी और दूसरी चीज़ें मुहैया करा रहा है. इस संकट का साया 2022 के फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप पर भी मंडरा रहा है.
आख़िर क्यों है क़तर इस क़दर सुर्ख़ियों में? दुनिया के बड़े-बड़े देश क़तर को इतनी अहमियत क्यों दे रहे हैं? ताज़ा विवाद की वजह क्या है?
बीबीसी रेडियो की द इन्क्वायरी कार्यक्रम में इस बार जेम्स फ़्लेचर ने इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की.
क़तर, फ़ारस की खाड़ी में सऊदी अरब प्रायद्वीप से लगा हुआ एक बेहद छोटा-सा देश है. इसका ज़्यादातर हिस्सा रेगिस्तान है. मगर इसकी राजधानी दोहा आज दुनिया के सबसे चमकदार शहरों में से एक है.
अमरीका की जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर एलन फ्रॉमहर्ज़ ने क़तर पर एक क़िताब लिखी है. इसका नाम है: ‘क़तर-अ मॉडर्न हिस्ट्री.’
प्रोफ़ेसर फ्रॉमहर्ज़ बताते हैं कि दोहा कभी एक छोटा-सा गांव हुआ करता था जहां पर मोतियों का कारोबार होता था. इसका नाम उस वक़्त बिद्दा होता था. उस आज से क़रीब डेढ़-दो सौ साल पहले मोतियों की ठीक उसी तरह अहमियत थी, जैसे आज तेल की है.
आप नक़्शे में देखें, तो क़तर सऊदी अरब से लगा हुआ मोती जैसा ही दिखता है. एक रेतीली पट्टी-सी है जो फ़ारस की खाड़ी में निकली हुई है. बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात के बीच स्थित क़तर पर लंबे वक़्त तक अंग्रेज़ों का क़ब्ज़ा रहा था.
प्रोफ़ेसर फ्रॉमहर्ज़ बताते हैं कि 1868 में अंग्रेज़ एक ऐसे शख़्स की तलाश में थे जिसे वो क़तर की रियासत की देख-रेख की ज़िम्मेदारी दे सकें. इसके लिए उन्होंने जिसे चुना उसका नाम था-मोहम्मद अल-थानी.

अंग्रेज़ों के चुने अल-थानी कुनबे का राज क़तर पर आज भी क़ायम है.
बेहद छोटा-सा देश होने की वजह से क़तर को पड़ोस के बड़े देशों से सुरक्षा चाहिए थी. क़तर को डर था कि कहीं सऊदी अरब जैसा ताक़तवर मुल्क़ उसे अपने में ही न मिला ले. अल-थानी ख़ानदान हर क़ीमत पर ऐसे हालात को टालना चाहता था. इसीलिए क़तर के शेखों ने हमेशा ही सऊदी अरब और दूसरे पड़ोसी देशों से अच्छे ताल्लुक़ बनाए रखे.
आज क़तर और इसकी चमकदार राजधानी दोहा को देखकर भले लगता हो कि यहां की रेत में रईसी है, मगर हमेशा से ऐसा नहीं था.
बीसवीं सदी के पचास के दशक तक क़तर इतना अमीर मुल्क़ नहीं था. प्रोफ़ेसर फ्रॉमहर्ज़ बताते हैं कि 1950 के दशक में तो क़तर को खाने के लाले पड़ गए थे.
लेकिन, क़तर में पिछले पचास सालों में तेल और गैस के बड़े भंडार मिले जिसके बाद इसकी क़िस्मत बदल गई. आज की तारीख़ में क़तर में दुनिया का सबसे बड़ा गैस का भंडार है. यही इसकी अमीरी की चाबी है.