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सऊदी अरब ने कहा-फ़िलिस्तीनी, बमबारी के साए में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं, निर्दोष लोगों पर हमलों का सऊदी अरब खुलकर विरोध करता है!

गुटेरस को अपनी दोहरी नीतियों की क़ीमत चुकानी होगीः बिन फ़रहान

सऊदी अरब के विदेशमंत्री का कहना है कि ग़ज़्ज़ा संकट के समाधान में सुरक्षा परिषद अक्षम रही है।

अलजज़ीरा के अनुसार फैसल बिन फ़रहान ने मंगलवार की रात कहा है कि निर्दोष लोगों पर हमलों का सऊदी अरब खुलकर विरोध करता है। उन्होंने निर्दोष लोगों के रक्तपात को तत्काल रोकने की मांग की है।

सऊदी अरब के विदेशमंत्री कहते हैं कि संकटों पर सुरक्षा परिषद की ख़ामोशी स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि दुनिया में आने वाले लगातार कई संकटों पर सुरक्षा परिषद को इस मौन की क़ीमत चुकानी होगी। बिन फ़रहान के अनुसार संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव की डबल स्टैंडर्ड की नीति के ख़तरनामक परिणाम सामने आएंगे।

सऊदी अरब के विदेशमंत्री कहते हैं कि जहां पर ग़ज़्ज़ा संकट के समाधान में सुरक्षा परिषद अक्षम दिखाई दे रही है वहीं पर फ़िलिस्तीन संकट के समाधान में विलंब की ज़िम्मेदारी भी इसी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन पर आती है। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनी, बमबारी के साए में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं और इसपर राष्ट्रसंघ का मौन उनको अधिक दुखी कर रहा है।

इससे पहले सऊदी अरब के विदेशमंत्री बिन फ़रहान ने अपने मिस्री और जार्डन के समकक्षों के साथ संयुक्त राष्ट्रसंघ के मुख्यालय में एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में भाग लेकर ग़ज़्ज़ा में हमलों के तत्काल रुकवाने और संकट के यथाशीघ्र समाधान की मांग की थी। पिछले 19 दिनों से ग़ज़्ज़ावासी इस्राईली बमबारी में बिना बिजली और पानी के जीवन गुज़ार रहे हैं। वहां पर ईंधन के भण्डार समाप्त हो चुके हैं।


ग़ज़्ज़ा युद्ध और ईरान

ग़ज़्ज़ा युद्ध को लेकर ईरान का दृष्टिकोण आरंभ से ही बहुत स्पष्ट रहा है।

ग़ज़्ज़ा युद्ध को अब 18 दिन पूरे हो चुके हैं। एसे में ग़ज़्ज़ा युद्ध के बारे में ईरान की जो नीति रही है वह इस प्रकार से है।

पिछले 18 दिनों के दौरान अलअक़सा तूफान आपरेशन के बारे में ईरान की ओर से यही कहा जाता रहा है कि यह ज़ायोनियों के अत्याचारों की प्रतिक्रिया है। दूसरे शब्दों में ज़ायोनियों के लगातार अत्चारों के मुक़ाबले में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध कर्ताओं के पास इसके अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग रह ही नहीं गया था।

इस बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कह चुके हैं कि अलअक़सा तूफान आपरेशन, ज़ायोनियों के क्रियाकलापों का ही परिणाम है। जब अत्याचार अपनी सीमा को पार कर जाते हैं तो फिर एसा ही होता है।

दूसरी बात यह है कि ग़ज़्ज़ा में जारी जनसंहार, ज़ायोनी अपारथाइड है। ग़ज़्ज़ा मे अबतक कम से कम पांच हज़ार आठ सौ फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं जिनमें आधे से अधिक बच्चे हैं। इससे पता चलता है कि अवैध ज़ायोनी शासन, फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफाए का इच्छुक है। इसीलिए उसने ग़ज़्जा में बिजली और पानी की आपूर्ति तक को बंद कर दिया है। ग़ज़्ज़ा के लिए मानवताप्रेमी सहायता के नाम पर जो कुछ भेजा जा रहा है उसकी राह मे भी यह शासन बाधाएं डाल रही है। इस बारे में ईरान के संसद सभापति क़ालीबाफ ने इस्लामी देशों के संसद सभापतियों को भेजे पत्र में लिखा है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध, ज़ायोनी अपारथाइड का खुला नमूना है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान जहां पर अलअक़सा आपरेशन को ज़ायोनी अत्याचारों की प्रतिक्रिया के रूप में देखता है वहीं पर वह इस बात पर भी लगातार बल दे रह है कि मानवप्रेमी सहायता के रूप में ग़ज़्ज़ा के लिए अधिक से अधिक सामग्री भेजी जाए। तेहरान के हिसाब से संयुक्त राष्ट्रसंघ और विश्व की शक्तियों को ग़ज़्ज़ा युद्ध रुकवाने के लिए अवैध ज़ायोनी शासन पर अधिक से अधिक दबाव डालना चाहिए। इस बारे में ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने कहा है कि ग़ज़्ज़ा की निर्दोष जनता के विरुद्ध ज़ायोनियों के बढ़ते अत्याचारों और हमलों ने संयुक्त राष्ट्रसंघ की ज़िम्मेदारियों को अधिक बढ़ा दिया है।

ग़ज़्ज़ा युद्ध के संदर्भ में ईरान की ओर एक अन्य विषय की बारंबार आलोचना की जा रही है और वह है इसपर कुछ देशों की ख़ामोशी। किसी भी स्वतंत्र सरकार के अधिकारी कभी भी ग़ज़्ज़ा जैसी स्थिति पर मौन धारण नहीं कर सकते क्योंकि यह एक मानवीय मामला है। हज़ारों निर्दोष फ़िलिस्तिनियों की हत्याओं और उनके घरों पर बमबारी को देखकर ख़ामोश रहना वास्तव में नाइंसाफ़ी है।

पश्चिमी शक्तियों ने जहां इसपर मौन धारण कर रखा है वहीं पर अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के राष्ट्राध्यक्षों ने अवैध ज़ायोनी शासन की यात्राएं करके फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध इस शासन के समर्थन को दोहराया है। इस संदर्भ में ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी कहते हैं कि घरों, अस्पतालों, स्कूलों, मस्जिदों, चर्च और एंबुलेंसों पर बमबारी के बावजूद कोई भी न्याय प्रिय व्यक्ति इसपर मौन धारण नहीं कर सकता जबकि एसा किया जा रहा है।

इस्राईल के लिए बुरी ख़बर, हिज़बुल्ला-हमास और जेहादे इस्लामी ने की ग़ज़्ज़ा की संयुक्त समीक्षा

सैयद हसन नसरुल्ला, ज़ियाद नोख़ाला और सालेह अलआरूरी ने ग़ज़्ज़ा युद्ध के विषय का बहुत गंभीरता से जायज़ा लिया।

ग़ज़्ज़ा के मुद्दे पर हिज़बुल्ला, हमास और जेहादे इस्लामी का मंथन निश्चित रूप में अवैध ज़ायोनी शासन के लिए बुरी ख़बर है।

लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आन्दोलन हिज़बुल्ला और फ़िलिस्तीन के दो प्रतिरोधकर्ता गुटों हमास तथा जेहादे इस्लामी के बीच ग़ज़्ज़ा की वर्तमान परिस्थति पर विचार-विमर्श किया गया। अलमयादीन टीवी चैनेल के अनुसार सैयद हसन नसरुल्ला, ज़ियाद नोख़ाला और सालेह अलआरूरी ने ग़ज़्ज़ा युद्ध के विषय का बहुत गंभीरता जायज़ा लिया।

तीनो नेताओं ने ग़ज़्ज़ा की वर्तमान स्थति की दैनिक समीक्षा पर बल दिया। हिज़बुल्ला, हमास और जेहादे इस्लामी ने ग़ज़्ज़ा में प्रतिरोधकर्ताओं की निश्चित विजय के मार्गों के साथ ही ज़ायोनियों के आक्रमण को रुकवाने के बारे में काफी देर तक बातचीत की।

हिज़बुल्ला के महासचिव सैयद हसन नसरुल्ला ने इस संगठन के मीडिया विभाग को पत्र भेजकर कहा है कि अलअक़सा तूफान में 7 अक्टूबर से अबतक शहीद होने वालों को अबसे क़ुद्स के शहीदों के नाम से पुकारा जाएगा।

याद रहे कि फ़िलिस्तीनियों के अलअक़सा तूफ़ान आपरेशन के बाद जब ज़ायोनियों ने ग़ज़्ज़ा पर हवाई हमले आरंभ किये उसी समय से लेबनान के हिज़बुल्ला संगठन के जियाले, ज़ायोनी शासन के हमलों का जवाब देते हुए इस अवैध शासन के सैन्य ठिकानों को निशाना बना रहे हैं। इन कार्यवाहियों में शहीद होने वाले हिज़बुल्ला के जियालों की संख्या अब 13 हो चुकी है।

Globe Eye News
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Queen Rania of Jordan :

War didn’t start on October 7; it began 76 years ago.

Killing civilians goes against the principles of Islam.

Muslim soldiers never harmed women, children, or even trees a thousand years ago.

Update: The Death toll in #Gaza so far is 5926 including 2420 children, 1323 women, and 16124 injured، according to
@EuroMedHR
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