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Supreme Court : कोर्ट ने कहा- बेटियां बोझ नहीं, टिप्पणी?

सुनवाई के दौरान पिता के वकील ने कहा, “बेटी एक दायित्व है।” इस पर जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ ने संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए कहा कि, “बेटियां दायित्व नहीं हैं। वकील को संविधान के अनुच्छेद 14 को ठीक से देखना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महिला की याचिका पर सुनवाई करने के दौरान कहा कि ‘बेटियां दायित्व नहीं हैं’। दरअसल एक बेटी की ओर से अपनी मां के निधन के बाद पिता से भरण-पोषण की मांग संबंधी याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट में बेटी के वकील ने दलील दी कि महिलाओं के अधिकारों के अधिकारों को दोहराते हुए कई कानून और फैसले पारित किए गए हैं, लेकिन यह कितना अचरज भरा है कि ये सभी (फैसले) 2022 में भी कई लोगों की मानसिकता नहीं बदल सकते।

सुनवाई के दौरान पिता के वकील ने कहा, “बेटी एक दायित्व है।” इस पर जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ ने संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए कहा कि, “बेटियां दायित्व नहीं हैं। वकील को संविधान के अनुच्छेद 14 को ठीक से देखना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट ने 5 अक्टूबर 2020 को पिता को बेटी और उसकी मां, दोनों को दो सप्ताह के भीतर ढाई लाख रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था। लेकिन 6 सितंबर को 2021 को उसकी मां की मौत हो गई थी।

याचिकाकर्ता की शिकायत यह थी कि भरपोषण के बकाया के लिए किसी राशि का भुगतान नहीं किया गया, यानि बेटी के लिए 8 हजार रुपये प्रतिमाह और उसकी मां के लिए 400 रुपये प्रतिमाह का भुगतान नहीं किया गया था।

पिता ने अदालत को बताया था कि उन्होंने भरण पोषण के बकाया का भुगतान कर दिया है और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के स्टेटमेंट पर भरोसा किया है।

अदालत ने इस विसंगति को देखते हुए रजिस्ट्रार (न्यायिक) याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी की ओर से पेस वकील से स्थिति का पता लगाने के बाद एक तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करने को कहा था।

कोर्ट ने पिछले आदेश में कहा था कि प्रतिवादी, रजिस्ट्रार (न्यायिक) के समक्ष सहायक दस्तावेज और सबूत प्रदान करेगा। इसी तरह याचिकाकर्ता के वकील को दूसरे याचिकाकर्ता के बैंक स्टेटमेंट पेश करने के लिए स्वतंत्र होगा जो यह प्रमाणित करेगा कि भुगतान प्राप्त हुआ है या नहीं। रजिस्ट्रार (न्यायिक) की रिपोर्ट आठ सप्ताह की अवधिके भीतर तैयार की जाए।

यह मामला जब शुक्रवार को सुनवाई के लिए आया तो बेंच को बताया गया कि महिला एक वकील है और उसने न्यायिक सेवा परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली है। इस पर बेंच ने कहा कि महिला (लड़की) को अपनी परीक्षा पर ध्यान देना चाहिए ताकि वह अपने पिता पर निर्भर न रहे।

कोर्ट को यह सूचित करने के बाद कि बेटी और उसके पिता ने लंबे समय से एक-दूसरे से बात नहीं किया है, अदालत ने उन्हें बात करने का सुझाव दिया। कोर्ट ने पिता को 8 अगस्त तक अपनी बेटी को 50 हजार रुपये का भुगतान करने को कहा।