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#Supreme Court ने केंद्र सरकार और आरबीआई को #नोटबंदी के फ़ैसले से संबंधित रिकॉर्ड पेश करने का दिया निर्देश : रिपोर्ट

नयी दिल्ली, सात दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को बुधवार को निर्देश दिया कि वे सरकार के 2016 में 1000 रुपये और 500 रुपये के नोट को बंद करने के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड पेश करें।.

न्यायमूर्ति एस ए नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, आरबीआई के वकील और याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनीं और अपना फैसला सुरक्षित रखा।.

Archana Singh
@BPPDELNP

उर्जित पटेल के RBI गवर्नर बनने से 17 महीने पहले उनके हस्ताक्षर वाले 500 के नोट छप गए थे !
उन्होंने किस अधिकार से हस्ताक्षर किए ? किसने करवाए ?
जिस दिन जांच हो गई, मुहर लग जायेगी कि नोटबंदी इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है और यह सरकार इतिहास की सबसे भ्रष्ट सरकार थी !

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केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी के फैसले का बचाव किया. सरकार का कहना है कि नकली करेंसी को रोकने, काले धन पर लगाम लगाने और टैक्स चोरी को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया था.

साल 2016 में नोटबंदी के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया. 8 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार ने 500 और 1000 के पुराने नोट वापस लिए थे. कोर्ट में दाखिल 58 याचिकाओं में इस फैसले को गलत बताया गया है.

जस्टिस अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने सभी पक्षों से 10 दिसंबर तक लिखित दलीलें जमा कराने को कहा. इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र और आरबीआई से कहा है कि वो इस फैसले की प्रकिया से जुड़े दस्तावेजों को सीलबंद कवर में जमा कर सकते है.

केंद्र सरकार ने नोटबंदी को सही ठहराया
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी के फैसले का बचाव किया. सरकार का कहना है कि नकली करेंसी को रोकने, काले धन पर लगाम लगाने और टैक्स चोरी को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया था. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉनी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि सरकार की ओर से 500 और 1000 के पुराने नोट को बंद करने का फैसला नकली नोटों, आतंकी फंडिंग, कालाधन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए लिया गया था. यह सरकार का एक वित्तीय फैसला था और RBI अधिनियम 1934 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अनुसार सरकार ने यह फैसला किया था.

न्यायिक समीक्षा पर सवाल उठाया
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि इस तरह के आर्थिक नीतियों से जुड़े फैसलों की न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है. अगर यह मान भी लिया जाए कि नोटबंदी अपने मक़सद में कामयाब नहीं हो पाई, तब भी सरकार के इस फैसले को कोर्ट द्वारा ग़लत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि नोटबंदी का फैसला पूरी प्रकिया का पालन करते हुए, अच्छे मकसद के लिए ही किया गया था.

हालांकि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि आर्थिक नीति की सीमित न्यायिक समीक्षा का मतलब ये नहीं है कि कोर्ट के हाथ बंधे हुए है और वो सरकार की ओर से फैसला लेने की प्रकिया की न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकता.

याचिकाकर्ताओं का पक्ष
याचिकाकर्ता की ओर से पी चिदंबरम, श्याम दीवान और प्रशांत भूषण ने दलील दी. चिदंबरम ने दलील दी कि नोटबंदी का सरकार का फैसला पूरी तरीके से ग़लत और कानून के शासन का मज़ाक था. इसमें कानूनी प्रकिया का पालन नहीं किया गया.

चिदंबरम ने दलील दी कि करेंसी नोट को रेगुलेट करने का अधिकार सिर्फ आरबीआई के पास है. केंद्र सरकार अपनी ओर से इस बारे में कोई प्रस्ताव नहीं ला सकती. केवल आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड की सिफारिश पर ऐसा फैसला लिया जा सकता है. ऐसे में फैसला लेने की इस प्रकिया को खारिज किया जाना चाहिए.

‘फैसले के ग़लत प्रभाव के बारे में नहीं सोचा गया’
चिदंबरम ने इस फैसले को लेने में सरकार की ओर से आरबीआई एक्ट के सेक्शन 26 का हवाला दिए जाने पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि इस एक्ट के सेक्शन 26 (2) के तहत केंद्र सरकार सिर्फ करेंसी नोट की कुछ सीरीज को ही रद्द कर सकती है, इस एक्ट का हवाला देकर 500 और 1000 के सारे नोट को वापस नहीं किया जा सकता. सरकार के इस फैसले के चलते 2300 करोड़ से ज़्यादा नोट बेकार हो गए, जबकि सरकार की प्रिंटिंग प्रेस हर महीने केवल 300 करोड़ नोट ही छाप सकती थी. जाहिर है, ऐसा फैसला लेने से पहले इसके आम नागरिकों पर पड़ने वाले असर के बारे में नहीं सोचा गया.