दुनिया

Video:इस्लाम की बढ़ती मक़्बूलियत से घबराकर बौद्ध मुसलमानों पर कर रहे हैं हमले

नई दिल्ली: बौद्ध बहुल म्यांमार से रोहिंग्या मुस्लिमों के निष्कासन का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है कि एक अन्य बौद्ध बहुल देश श्रीलंका में बौद्ध-मुस्लिम दंगों की वजह से न केवल आपातकाल लगाना पड़ा, बल्कि तमाम कोशिशों के बावजूद वहां कई दिनों तक हिंसा चलती रही।

जानकारों का कहना है कि यह दक्षिण एशिया में चल रहे बौद्ध-मुस्लिम संघर्ष का नतीजा है। अमेरिकी लेखक सेमुअल हटींगटन ने एक बार कहा था भविष्य में राजनीतिक विचारधाराओं के बीच नहीं, बल्कि सभ्यताओं या धर्मो के बीच संघर्ष होगा।

इन दिनों दक्षिण एशिया के कुछ देशों में यही हो रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या म्यांमार के बौद्ध और मुस्लिमों के संघर्ष से उपजी है। मगर यह संघर्ष केवल म्यांमार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हाल के वर्षो में श्रीलंका और थाईलैंड में भी बौद्ध अपने धर्म के लिए इस्लाम को खतरा मानने लगे हैं।

दरअसल बीते दिनों मस्जिदों और मुसलमानों के कारोबार पर सिलसिलेवार हमलों के बाद श्रीलंका में आपातकाल लागू कर दिया गया था। इसके साथ-साथ वहां के कैंडी शहर के कुछ इलाकों में कफ्र्यू भी लगा दिया गया था।

वहां इस तरह की बौद्ध-मुस्लिम तनाव कोई नई परिघटना नहीं है। देखा जाए तो श्रीलंका में साल 2012 से ही सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई है। माना जाता है कि वहां का एक कट्टरपंथी बौद्ध संगठन बोदु बल सेना इस तनाव को हवा देने का काम करता है।

दरअसल बौद्ध धर्मगुरु दिलांथा विथानागे ने दक्षिण एशिया में इस्लाम को हराने और बौद्धधर्म के उत्थान के लिए बोदु बल सेना (बीबीएस) का गठन किया था जिसे सिंहली बौद्ध राष्ट्रवादी संगठन माना जाता है।

टाइम पत्रिका ने इस संस्था को श्रीलंका का सबसे शक्तिशाली बौद्ध संगठन कहा है। इस संगठन के अनुसार श्रीलंका दुनिया का सबसे पुराना बौद्ध राष्ट्र है। हमें उसकी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करना चाहिए।

पिछले वर्षो में श्रीलंका में मुसलमानों पर हुए सभी हमलों के लिए इसे ही जिम्मेदार माना गया है। विथानागे मानते हैं कि ‘श्रीलंका में भी बौद्धों पर धर्मातरण का खतरा मंडरा रहा है। उनका आरोप है कि सिंहली परिवारों में एक या दो बच्चे हैं, जबकि अल्पसंख्यक ज्यादा बच्चे पैदाकर आबादी का संतुलन बिगाड़ रहे हैं।

इनके पीछे विदेशी पैसा है। और सरकार इस मामले में कुछ नहीं कर रही है।’ यह संगठन अल्पसंख्यक वोट बैंक की सियासत और श्रीलंका में पशुओं को हलाल करने का मुद्दा भी जोरशोर से उठाया है। उसे गोताबाया राजपक्षे का समर्थन हासिल है। वे महिंदा राजपक्षे के भाई हैं।