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Video:गद्दारों की गवाही से भगत सिंह को हुई थी फाँसी मोहम्मद अली जिन्ना ने तो बचाव में हिला दी थी सरकार

नई दिल्ली: भारत का प्रत्यक नागरिक भगत सिंह को अपना हीरो मानता है,देश को उनके बलिदान पर घमण्ड है,युवाओं के गुरुर भगत सिंह ने कम उमरी में ही जो बहादुरी का कारनामा अंजाम दिया था वो भारत के इतिहास में स्वर्ण के अक्षरों से लिखा गया है,लेकिन कुछ ऐसे ऐतिहासिक पहलू भी हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ नही किया जासकता है।

मुहम्मद अली जिन्ना उस सेंट्रल असेंबली में मौजूद थे, जिसमें भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त ने ‘बहरों को सुनाने के लिए’ बम फेंका था। बहरों के कानों पर बम बेकार साबित हुआ। जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने अपने साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख-हड़ताल कर दी। क्रांतिकारियों की सेहत इतनी गिर गई कि वे अदालत में पेश करनेे लायक नहीं रहे। नियमों के अनुसार उनकी पेशी के बगैर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था।

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 14 जून, 1929 को भूख हड़ताल शुरू की थी.उन दोनों को दिल्ली बम धमाके में दिल्ली की अदालत ने दोषी ठहराया था. इसके बाद उन्हें पंजाब के मियांवली और लाहौर जेल में भेज दिया गया था.

ट्रिब्यून के संवाददाता ने शिमला से रिपोर्ट की कि जिन्ना ने सदन में अच्छा प्रभाव डाला और इसके बाद उन्हें प्रशंसा भी मिली. जिन्ना ने पंजाब को ‘एक डरावनी जगह कहा’!

जिन्ना ने विधानसभा के कानून के जानकारों को भूखा रखने को कहा ताकि उन्हें पता चले कि भूख हड़ताल के बाद मनुष्य के शरीर पर क्या असर पड़ता है.उन्होंने कहा, ‘भूख हड़ताल पर हर कोई नहीं रह सकता. कभी रहने की कोशिश करें और देखें कि क्या होता है’.

जिन्ना ने 12 सितंबर को अपना भाषण शुरू किया, तब जतिन दास जीवित थे. और 14 सितंबर को भाषण की समाप्ति हुई।

सरकार ने सेंट्रल असेंबली में एक संशोधन प्रस्ताव पेश किया, जिससे उसे कैदियों की गैर-हाजिरी में भी मुकदमा चलाने का अख्तियार मिल जाए। जिन्ना ने अपने धारदार भाषण से इस प्रस्ताव की धज्जियां उड़ा दीं। उनका भाषण तर्कों, प्रमाणों के अलावा बारीक व्यंग्यों से चुना हुआ था। उन्होंने सदन व सत्ता को मजबूर कर दिया कि वे देखें कि भगत सिंह साधारण अपराधी नहीं, बल्कि कुचले जा रहे करोड़ों हिन्दुस्तानियों की बगावत की आवाज हैं।

सरकारी प्रस्ताव नामंजूर हो गया। सरकार ने अध्यादेश के जरिये एक ट्रिब्यूनल बनाया। इस ट्रिब्यूनल की उम्र केवल चार महीने थी। खत्म होने के महज छह दिन पहले इस ट्रिब्यूनल ने सुनवाई शुरू की- जाहिर है, उसने फांसी की जो सजा सुनाई, वह नैतिक व विधिक, दोनों आधार पर खोखली थी। पिछले साल इम्तियाज रशीद कुरैशी नाम के एक पाकिस्तानी ने लाहौर हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया कि भगत सिंह व उनके साथियों को सुनाई गई वह अवैध सजा निरस्त की जाए और उन्हें निर्दोष घोषित किया जाए