नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजधान के इतिहासिक किले लाल किले की प्राचीर से पांचवी बार देश को सम्बोधित किया जिसमें उन्होंने अपने चार सालों के कारनामोँ का लेखा -जोखा पेशा किया।
नरेंद्र मोदी का अपने कार्यकाल का आखरी भाषण था 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इसको बड़ा अहम माना जारहा है,मोदी का लाल किले पर ये आखिरी भाषण था. फिर भी उन्होंने कुछ फैक्चुअल मिस्टेक्स मतलब तथ्यात्मक गलतियां कर ही दीं।
तथ्यात्मक गलती माफी दी जा सकती है. लेकिन तब नहीं, जब वो दावे की तरह पेश की गई हो. प्रधानमंत्री की भंगिमा भाषण देते हुए जानकारी बांटने वाली नहीं थी. दावे वाली थी. हिंदी में गलत दावे को झूठ कहा जाता है. सो प्रधानमंत्री की ‘गलतियां’ झूठ ही कहलाएंगी. प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले से कहे कुछ झूठ हमने पकड़े. ये रही लिस्ट-
There will be no stopping in the movement to eliminate corruption and black money.
We work for the poor of India, not for power brokers and middlemen. #IndependenceDayIndia pic.twitter.com/Zg9LrHZi14
— Narendra Modi (@narendramodi) August 15, 2018
दावा नंबर 1 – स्वच्छ भारत अभियान से तीन लाख बच्चों की जान बच गई।
सच्चाई – विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक अगर स्वच्छ भारत अभियान को 100% लागू कर दिया जाए तो 2019 तक डायरिया और प्रोटीन एनर्जी की कमी से होने वाली करीब 3 लाख बच्चों की मौतों को टाला जा सकता है. तो WHO ने किसी लक्ष्य के तय होने की बात नहीं की थी. उन्होंने महज़ एक अनुमान लगाया भविष्य (अक्टूबर 2019) के लिए. तो मोदी जी पूरे एक साल एडवांस चल रहे थे. फिर WHO की बात में शर्त थी कि स्वच्छ भारत अभियान के 100% टार्गेट पूरे हों. भारत कितना स्वच्छ हुआ है, मोदी जी ही जानते हैं. लेकिन हम इतना जानते हैं कि 100% नहीं हुआ है. तो बच्चों की जान बचने का दावा झूठा है।
India is the land of reform, perform and transform.
The eyes of the world are on us. #IndependenceDayIndia pic.twitter.com/k2trGZdf5w
— Narendra Modi (@narendramodi) August 15, 2018
दावा नंबर 2 – भारत का पासपोर्ट अब दुनिया के सबसे ज्यादा ‘इज्जतदार’ पासपोर्ट्स में से एक है. अब सब जगह इसका स्वागत होता है।
सच्चाई- पासपोर्ट की ‘इज्जत’ के माप के लिए दुनियाभर में एक रैंकिंग होती है. ‘ग्लोबल पासपोर्ट पावर इंडेक्स’ में किसी देश का पासपोर्ट जहां जगह पाता है, उसे ‘ग्लोबल पासपोर्ट पावर रैंक’ कहते हैं. यदि आपके पास अच्छे रैंक का पासपोर्ट हो तो आपको दुनिया के ज़्यादातर देशों (खासतौर पर यूरोप और अमरीकी महाद्वीप में) में जाने के लिए वीज़ा की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. आप फ्लाइट पकड़कर सीधा उस देश पहुंचें और आपको ‘वीज़ा ऑन अराइवल’ मिल जाएगा. पासपोर्ट का ‘स्वागत’ इसी संदर्भ में होता है. जैसे-जैसे नीचे की रैंकिंग वाले पासपोर्ट पर जाते हैं, वीज़ा ऑन अराइवल देने वाले देश कम होते जाते हैं. ज़्यादा नीचे की रैंकिंग हुई तो विकसित देश जाने के लिए वीज़ा मिलना ही मुश्किल हो जाता है.
फिलहाल ग्लोबल पासपोर्ट पावर इंडेक्स में भारत 65वें नंबर पर है. ये एक औसत रैंकिंग है. माने सबसे ‘इज्जतदार में से एक’ तो कतई नहीं. चीन इस रैंकिंग में 55वें नंबर पर है।
दावा नंबर 3 – भारत का शहद निर्यात दोगुना हो गया है.
सच्चाई – गांधी जी वाला सच (माने तथ्य) ये है कि वित्त वर्ष 2016-17 में भारत ने 55,73.903 करोड़ टन था. 2017-18 में यह बढ़कर 65,35.758 करोड़ टन हो गया. यह बढ़ोत्तरी करीब 17% है. भारत भूमि पर हुए महान गणितज्ञ आर्यभट के अनुसार दोगुना तभी कहा जा सकता है जब 100% की बढ़ोत्तरी हो जाए. हमने अभी कैलकुलेटर में हिसाब किया तो 17, 100 से 83 कम निकला. सो मोदी जी का शहद वाला दावा भी झूठा निकला. जीके के लिए बता दें कि भारत शहद निर्यात के मामले में 11वें नंबर पर है.
दावा नंबर 4 – मुद्रा योजना में बंटे 13 करोड़ लोन से देश में नौकरियां और अपना बिज़नेस (आंत्रप्रन्योरशिप) बढ़ी है.
सच्चाई – इंडिया टुडे द्वारा लगाई गई एक RTI के जवाब में सरकार ने खुद बताया है कि मुद्रा योजना में बांटे गए सभी लोन में से सिर्फ और सिर्फ 1.45% लोन ही 5 लाख से ज्यादा के हैं. 90% से ज्यादा लोन 50,000 से कम के हैं. अर्थशास्त्री अजीत रानाडे के मुताबिक इतने पैसों में लोन लेने वाला कोई बहुत छोटा धंधा (जैसे पकौड़े या चाय का ठेला) तो शुरू किर सकता है लेकिन व्यापक पैमाने पर रोज़गार पैदा नहीं हो सकता।
दावा नंबर 5 – 2013 में जिस रफ्तार से इलेक्ट्रिफिकेशन यानी विद्युतीकरण हो रहा था, उसी रफ्तार से काम पूरा करने में (सभी गावों तक बिजली पहुंचाने में) एक दशक लग जाता.
सच्चाई – एनडीए सरकार के चार सालों में 18,374 गांवों में बिजली पहुंचाई गई. इंडिया स्पेंड के मुताबिक साल 2005-06 से 2013-14 के बीच राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत 1,08,280 गांवों में बिजली पहुंचाई गई. इसका मतलब कि यूपीए राज में हर साल 14,528 गांवों का औसत रहा. वहीं मोदी सरकार के चार साल में 18,374 मतलब 4,594 गांव हर साल का औसत है.
मोदी सरकार इस बात पर ज़ोर कसती रही है कि साल 2016-17 में उसने यूपीए के आखिरी साल के बनिस्बत पांच गुना गावों में बिजली पहुंचाई. ये बात सरकार ने अपनी प्रेस रिलीज़ में कही भी है. लेकिन जैसा कि हमने ऊपर बताया, अगर मनमोहन सिंह के पूरे कार्यकाल की तुलना मोदी जी के पूरे कार्यकाल से की जाए तो विद्युतीकरण के मामले में यूपीए ने मोदी सरकार से तीन गुना तेज़ी से काम किया.
तो सारा खेल 2013-14 को बेस इयर लेने का है. सिर्फ एक साल के आंकड़े के आधार पर अगर प्रधानमंत्री ये दावा करते हैं कि यूपीए की बनिस्बत उनकी सरकार ने तेज़ काम किया (‘एक दशक’ से उनका संदर्भ यही था) तो वो कतई पचेगा नहीं. बेस ईयर 2004 कर दीजिए (जिस साल भाजपा चुनाव हारी थी) तो मोदी जी की बात सिर के बल पलट जाए।
साभार: लल्लन टॉप डॉट कॉम