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Video:ये 56 वर्षीय बुज़ुर्ग 18 सालों से रमज़ान में पैदल सात किलोमीटर गली गली घूमकर सेहरी में उठाता है

नई दिल्ली: भारत की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई की रातें बड़ी निराली होती हैं जहां रमज़ान उल मुबारक के महीने में सड़कों पर नोजवान बाइकों पर बैठकर सेहरी के लिये पूरी रात खुलने वाले होटलों और रेस्टुरेंट पर लज़ीज़ ज़ायकेदार खाना खाने के लिये जाते हैं,तो कुछ लोग रातभर मेहनत करते हैं और आखरी रात तल वो निढ़ाल होजाते हैं।

रमज़ान उल मुबारक के इस पवित्र महीने में एक 56 साल के मोहम्मद फ़ारूक़ क़ुरैशी नाम के बुज़ुर्ग सेहरी में रोज़ेदारों को सेहरी के लिये जगाने के लिये आवाज़ लगाते हैं,जो मुंबईवासियों को याद होगई है “नींद से जागो,सेहरी का वक़्त होगया,ज़िन्दगी का क्या भरोसा? अगली बार रमज़ान नसीब हो या न हो,कौन जानता है कि उसकी जिंदगी में अगली बार रमज़ान आएगा या नही ,और क्या पता हम रोज़ा रखने के काबिल रहे या न रहें।

56 वर्षीय फ़ारूक़ क़ुरैशी पिछले 18 सालों से हर रमज़ान में रोज़ाना सेहरी में उठाने के लिये पैदल सात किलो मीटर घूमते हैं,शाफाई मस्जिद डोंगरी से लेकर दाऊद भाई फजलू भाई हाई स्कूल तक वो रोज़ाना लोगों को गली गली घूमकर मुसलमानों को सेहरी के लिये जगाते हैं।

सेहरी में उठाने की परंपरा धीरेधीरे खत्म होती जारही है क्योंकि अब जगाने के लिये अलार्म घड़ी और मोबाइल फोन ने लेली है लेकिन इस मुबारक काम को मिस्र में मुसाहरत और कश्मीर में सहरनखां का नाम दिया जाता है,लेकिन मुंबई में मुसलमानों को सेहरी के लिये जगाने वाले फ़ारूक़ क़ुरैशी खुदको सेहरी वाला कहते हैं।

फ़ारूक़ क़ुरैशी रमज़ान की चाँदरात से आखरी रमज़ान तक लोगों को सेहरी के लिये जगाते हैं घरों की महिलाएँ इस बुज़ुर्ग की आवाज़ को सुनकर अपनी सेहरी तय्यार करती हैं,इस बुढ़ापे की उम्र में भी फ़ारूक़ क़ुरैशी नैकी में पीछे नही हैं तो आजके नोजवानों को अपने बारे में सोचना चाहिए।