तुर्की में राष्ट्रपति तय्यब एर्दोगान ने सारे आंकड़े फैल करते हुए शानदार जीत दर्ज करी है,जिससे विरोधियों की कमर टूट गई है,एर्दोगान लगातार 15 सालों से तुर्की की जनता का नेतृत्व करते हुए आरहे हैं,इन 15 सालों में तुर्की रिकॉर्डतोड़ कामयाबी हासिल करी है।
एर्दोगान को इस चुनाव में 53 प्रतिशत मत मिले और उन्हें निर्वाचित घोषित कर दिया गया.इस चुनाव में एर्दोगान के लिए राहत की बात ये रही विपक्ष ने इस चुनाव की निष्पक्षता पर किसी प्रकार का संदेह हार के बाद भी नही व्यक्त किया है।
तुर्की में एर्दोगान युग की शुरुआत होते ही यूरोपियन देशो से तुर्की के संबंध पहले जैसे मधुर नही है.अपनी सामरिक महत्वा के वज़ह से तुर्की में यूरोप हमेशा से अपनी मनपसंद सरकार बनवाने की चाहत रखती रही है.यूरोपियन देशो को इस बात का भी डर है अगर तुर्की परमाणु शक्ति बन गया तब एक और शक्ति उनके बगल में होगी.चुनाव पूर्व पश्चिम मीडिया ने एर्दोगान के खिलाफ एंटी-इन्कम्बंसी होने का दावा किया.अधिकतर मीडिया ने एर्दोगान के हारने की बात कही थी।
एर्दोगान के लिए चुनौती कम नही है.उनके दुबारा निर्वाचन से यूरोपियन देशो में ख़ुशी नही होगी लेकिन उनके पड़ोस में मौजूद सीरिया और इराक से उनके संबंध अच्छे नही है.कुर्दों को लेकर तुर्क सेना इन दोनों देशो में हमला कर चुकी है.मुस्लिम जगत में एर्दोगान सबसे अधिक शोहरत वाले नेता बन गये है लेकिन मुस्लिम समाज इजरायल और फिलिस्तीन मामले का हल चाहता है।
एर्दोगान के लिए फिलिस्तीन मामले में अमेरिका और इजरायल को समझौता करने को मजबूर कर देने वाले हालात पैदा करने का मुस्लिम जगत इंतज़ार कर रहा है.अब एर्दोगान कैसे तुर्की को पॉवर देकर इस मामले को हल करते है ये देखने वाली बात होगी.एडोगान ने कई बार मुस्लिम जगत को 2023 का इंतज़ार करने की बात कही है.वो तो चोर्री छुपे पाकिस्तान द्वारा परमाणु बम बनाने की भी तारीफ कर चुके है.इसलिए उनके इरादों से यूरोप अनजान नही है।