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बड़ी-बड़ी बातें करने वाला इसराइल ज़मीनी हमला करने से क्यों बच रहा है?

इसराइली सेना ने बीती रात एक बार फिर ग़ज़ा पट्टी पर हमला बोला है.

हम ग़ज़ा से 10 किलोमीट

र दूर दक्षिणी इसराइल में मौजूद हैं, लेकिन हमें लगातार युद्ध से जुड़ी भारी आवाज़ें सुनाई दे रही हैं.

टैंकों से लेकर इसराइली युद्धक विमानों की आवाज़ों के साथ ग़ज़ा से उठते धुएं का गुबार बता रहा है कि वहां आज सुबह क्या हुआ है.

ऐतिहासिक रूप से इसराइली सेना की फिलॉसफी रही है कि किसी भी समस्या के पैदा होते ही तेजी के साथ आक्रामकता भरे अंदाज़ में उसका निदान किया जाए.

लेकिन इस बार इसराइली रुख में एक तरह की हिचकिचाहट नज़र आ रही है.

इसकी एक वजह प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू की विशेष राजनीति भी है.

उन्होंने कड़ी बयानबाज़ी के बाद भी इसराइल को कभी भी युद्ध में नहीं धकेला है.

उन्होंने इस मामले में काफ़ी सावधानी बरती है. वह इस बात को लेकर भी चिंतित रहे हैं कि अगर किसी कदम के नतीजे, विशेष रूप से सैन्य कार्रवाई के नतीजे नकारात्मक रहे तो उनका राजनीतिक करियर ख़त्म हो सकता है.

नेतन्याहू के ख़िलाफ़ पहले ही भ्रष्टाचार से जुड़े कई गंभीर मामले चल रहे हैं जो उन्हें जेल पहुंचा सकते हैं.

ऐसे में उनके मन में अपना बचाव करने का ख्याल भी होगा और ये ख्याल उनकी अपना बचाव करते हुए राजनीति करने के अंदाज़ को मजबूती भी दे रहा होगी.

इसके साथ ही इस समय हमास के पास 229 इसराइली बंधक हैं जिस वजह से स्थितियां जटिल हो रही हैं.

इसराइली नागरिकों को इस बारे में सोचने का वक़्त मिला है और पीड़ित परिवारों की ओर से जोरदार ढंग से कहा गया है कि सैन्य टुकड़ियां ग़ज़ा के अंदर जाकर बंधकों के जीवन को ख़तरे में न डालें.

ऐसे में ये बात बेशक ज़मीनी हमले के टलने की वजह बनी है.

जेरेमी बोवेन

अंतरराष्ट्रीय संपादक, इसराइल-ग़ज़ा सीमा से