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इस्राईल ने ईरान को कहा आक्टोपस का सिर…..मगर क्यों…..क्या होगा अंजाम ; रिपोर्ट

इस्राईली सरकार ने हालिया दिनों एक नई शब्दावली का इस्तेमाल बहुत ज़्यादा किया है, आक्टोपस का सिर। उसका तात्पर्य है ईरान पर हमला और ईरान के ख़िलाफ़ अंदरूनी और बाहरी दोनों मोर्चों पर हमले तेज़ करना।

इस्राईल यह कहना चाहता है कि वो हिज़्बुल्लाह, हमास और जेहादे इस्लामी जैसे संगठनों पर ध्यान देने के बजाए जो ईरान के मज़बूत घटक हैं ख़ुद ईरान को निशाना बनाना चाहता है।

हालात बार बार साबित कर चुके हैं कि बयानबाज़ी अलग चीज़ है और ज़मीनी सच्चाई अलग चीज़ है। इस्राईल धमकियां चाहे जितनी दे लेकिन वो न तो ईरान पर हमला करने की हिम्मत कर पाया है और न ही ईरान के घटकों से लड़ने की ताक़त उसके पास बची है। जैसे जैस ईरान की ताक़त बढ़ती जा रही है उसके घटक भी बहुत तेज़ गति से ज़्यादा ताक़तवर बनते जा रहे हैं। यह संगठन जो ईरान के घटक कहे जाते हैं आज बहुत से देशों की सेना से ज़्यादा ताक़तवर बन चुके हैं। उनके पास सटीक निशाना लगाने वाले मिसाइल और ड्रोन हैं और जान पर खेल जाने वाले लड़ाके हैं।

इस्राईल की यह हालत है कि 1967 की जंग के बाद वो एक भी जंग जीत नहीं सका है। उसने 1982 लेबनान पर हमला किया था मगर उसके बाद से आज तक वो किसी भी अरब देश पर हमला करने और उसकी सीमा में दाख़िल होने की हिम्मत नहीं कर सका। लेबनान की सीमा में दाख़िल होने का भी बहुत भारी ख़मियाज़ा इस्राईल को चुकाना पड़ा और यही उसके लिए सबक़ हो गया।

हो सकता है कि इस्राईल को टारगेट किलिंग करने में कुछ कामयाबियां मिल गई हों और उसने ईरान के कुछ वैज्ञानिकों और कमांडरों को निशाना बनाया हो मगर टैंकरों और युद्धपोतों की जंग वो हार चुका है। इस्राईल की यह हालत है कि उसने डरकर अपने सारे नागरिकों को तुर्की से बाहर निकाल लिया कि कहीं ईरान उन पर हमला न करे।

इस्राईली नागरिक अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि फ़िलिस्तीनी युवाओं का इंतेफ़ाज़ा आंदोलन पूरी गति से शुरू हो चुका है। यह आंदोलन इस्राईल के बिल्कुल भीतरी इलाक़ों को निशाना बना रहे हैं और इस्राईल का कोई भी इलाक़ा सुरक्षित नहीं रह गया है। तेल अबीब और बेर सबा जैसे इलाक़ों पर हालिया समय में होने वाले हमले यही साबित करते हैं।

इस्राईल ने इससे पहले भी कई शब्दावलियां इस्तेमाल की हैं जैसे आक्रोश का गुच्छा, हिफ़ाज़त की दीवार, मज़बूत ढाल, मूसलाधार गोलियां और न जाने क्या क्या। यह सारी योजनाएं ग़ज़्ज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में बुरी तरह नाकाम होती रही हैं इसलिए हमें यक़ीन है कि इस्राईल द्वारा छोड़ा गया यह नया शिगोफ़ा और नई शब्दावली भी इसी अंजाम को पहुंचेगी। हमें इसके लिए ज़्यादा इंतेज़ार भी नहीं करना पड़ेगा।

स्रोतः रायुल यौम

दुश्मनों से डटकर मुक़ाबला करने में ही जीत है, वरिष्ठ नेता

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने न्यायपालिका प्रमुख और अधिकारियों के साथ मुलाक़ात में कहा है कि दुश्मनों के मुक़ाबले में डट जाने का नतीजा, सफलता और प्रगति है।

इस मुलाक़ात में उन्होंने आगे कहाः 1360 शम्सी में बड़े और कड़वे घटनाक्रमों में इस्लामी गणतंत्र ईरान के प्रतिरोध के नतीजे में आश्चर्यजनक गौरव और सफलता की प्राप्ति का कारण दुश्मनों से नहीं डरना और डट जाना था और यही ईश्वरीय परंपरा हर ज़माने में लागू हो सकती है, क्योंकि 1401 का ख़ुदा वही 1360 का ख़ुदा है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने क़ुरान का हवाला देते हुए कहाः क़ुराने मजीद ईश्वरीय परंपराओं से संबंधित विषयों से भरा हुआ है, जिसका ख़ुलासा यह है कि अगर समाज दुश्मन के मुक़ाबले में डट जाए, ईश्वर पर भरोसा करे और अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करे, तो नतीजे में कामयाबी और सफलता हासिल होती है, लेकिन अगर उसमें मतभेद उत्पन्न हो जाएं, लोग आरामपंद बन जाएं, तो नतीजे में पराजय हासिल होती है।

आयतुल्लाह ख़ामेनई का कहना था कि दुश्मन कभी-कभी आंतरिक कमज़ोरियों के कारण कुछ ज़्यादा ही ख़ुश हो जाता है। 1360 से लेकर पिछले चार दशकों के दौरान, दुश्मन कुछ जगहों पर काफ़ी ख़ुश और उम्मीदवार हो गया था और उसे लगता था कि अब क्रांति की बिसात सिमटने वाली है। लेकिन यह उम्मीद हमेशा ही नाउम्मीदी में बदी, लेकिन उनकी समस्या यह है कि वे इस निराशा का कारण नहीं समझते हैं।