साहित्य

“तुम कितने रुपये लोगे मुझे घर तक छोड़ने का?

लक्ष्मी कान्त पाण्डेय
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एक व्यक्ति अपने स्कूटर से घर जा रहा था। कुछ दूर जाने के बाद उसे सड़क पर एक बूढ़ी औरत दिखाई दी। जो कि बहुत ही थकी हुई सी लग रही थी और उसके चेहरे से मानों ऐसा लग रहा था कि वह उस सड़क पर बहुत समय से किसी यातायात साधन का इंतज़ार कर रही थी।

उस व्यक्ति ने अपना स्कूटर उस औरत के पास लाकर रोका और बूढ़ी औरत से पूछा ”माताजी आपको कहाँ जाना है? आपको जहाँ भी जाना है, मैं आपको छोड़ दूंगा।”

अंजान आदमी को अचानक अपने सामने देखकर वह वृद्ध महिला थोड़ा घबरा गई। वृद्धा की घबराहट को वह व्यक्ति समझ गया और उसने मुस्कुराते हुए कहा “माता जी मेरा नाम सुनील है, आप चिंता ना करे मैं आपको सकुशल आपके घर तक छोड़ दूंगा। आप निश्चिन्त होकर मेरे साथ मेरे स्कूटर पर चलिये।”

सुनील की बातें सुनकर वृद्ध महिला को तसल्ली हुई और साथ आने की सहमति देते हुए पूछा “तुम कितने रुपये लोगे मुझे घर तक छोड़ने का?”

सुनील ने हँसते हुए कहा “माताजी मुझे कुछ नही चाहिए किंतु फिर भी आप कुछ देना ही चाहती है तो बस आप भविष्य में अपनी तरफ़ से किसी ज़रूरतमंद कि किसी भी तरह से मदद कर देना।” अपनी बात को पूरी करके सुनील ने उस वृद्धा को अपने स्कूटर पर बिठाया और उनके घर पर छोड़ने के पश्चात वहाँ से चला गया।
कुछ दिनों बाद वह वृद्ध औरत कुछ सामान खरीदने एक दुकान पर गई। दुकान से बाहर आकर वृद्धा ने देखा कि उसी दुकान के बाहर एक गर्भवती महिला कुछ खाने-पीने का सामान बेच रही है।

उस वृद्ध महिला को यह समझते देर नही लगी कि जरूर इस लड़की की कोई बड़ी मज़बूरी होगी जो इसे इस अवस्था में भी काम करना पड़ रहा है। वृद्धा के मन में उस महिला के लिए मदद की इच्छा जागृत हुई और उस गर्भवती महिला से कुछ खाने का सामान खरीद लिया। साथ ही वृद्धा ने चुपके से कुछ पैसे उसकी दुकान के पास इस भावना से रख दिए कि उसकी कुछ मदद हो जाएगी। ऐसा करके वह वृद्ध महिला वहां से तुरंत चली गई।

शाम को दुकान बंद करते वक्त उस गर्भवती महिला ने देखा कि उसकी दुकान पर हज़ार का नोट रखा हुआ था। हज़ार रूपये देखकर वह बहुत खुश हुई और अपने घर जाकर उसने अपने पति से कहा ”सुनील मैं जानती हूँ मेरे गर्भवती होने की वजह से घर का बहुत खर्चा बढ़ गया है परन्तु आज तुम्हे चिंता करने की कोई जरूरत नही क्योंकि मेरी दवाई के पैसों का इंतज़ाम हो गया है। मैंने आज ज्यादा पैसे कमाए है।” ऐसा कहकर उसने भगवान का शुक्रिया किया और अपने पति के गले लग गयी।

(यह सच है की हम जब भी किसी की निस्वार्थ भाव से सहायता करते हैं, तो हमारे द्वारा किया हुआ अच्छा काम ज़िन्दगी में कभी ना कभी किसी ना किसी रूप में वापस आता जरूर है वो भी कई गुणा होकर। इसलिए जब भी किसी की मदद या सेवा करो तो दिल से करो।कभी भी मन में फल की आशा ना रखो। बिना फल की चाह से किया हुआ कर्म हमें मोक्ष देता है। )