धर्म

तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-15

طسم (1) تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْمُبِينِ (2) نَتْلُو عَلَيْكَ مِن نَّبَإِ مُوسَىٰ وَفِرْعَوْنَ بِالْحَقِّ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ (3)

ता सीन मीम (28:1) ये स्पष्ट करने वाली किताब की आयतें हैं। (28:2) (हे पैग़म्बर!) हम ईमान लाने वालों (की सूचना के लिए) मूसा और फ़िरऔन के जीवन के कुछ भाग की सटीक तिलावत आपके समक्ष करते हैं। (28:3)

إِنَّ فِرْعَوْنَ عَلَا فِي الْأَرْضِ وَجَعَلَ أَهْلَهَا شِيَعًا يَسْتَضْعِفُ طَائِفَةً مِّنْهُمْ يُذَبِّحُ أَبْنَاءَهُمْ وَيَسْتَحْيِي نِسَاءَهُمْ إِنَّهُ كَانَ مِنَ الْمُفْسِدِينَ (4)

निश्चतय ही फ़िरऔन ने (मिस्र की) धरती में उद्दंडता की और वहां के लोगों को विभिन्न गुटों में बांट दिया। उनमें से एक गुट को कमज़ोर कर रखा था। वह उस (गुट के लोगों) के बेटों की हत्या करता और उनकी महिलाओं को जीवित रहने देता। निश्चय ही वह बुराई फैलाने वालों में से था। (28:4)

وَنُرِيدُ أَنْ نَمُنَّ عَلَى الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا فِي الْأَرْضِ وَنَجْعَلَهُمْ أَئِمَّةً وَنَجْعَلَهُمُ الْوَارِثِينَ (5) وَنُمَكِّنَ لَهُمْ فِي الْأَرْضِ وَنُرِيَ فِرْعَوْنَ وَهَامَانَ وَجُنُودَهُمَا مِنْهُمْ مَا كَانُوا يَحْذَرُونَ (6)

और हमारा यही इरादा है कि उन लोगों पर उपकार करें, जिन्हें धरती में कमज़ोर बना दिया गया था और उन्हें (लोगों का) अगुवा बनाएँ और उन्हीं को (धरती का) उत्तराधिकारी बनाएँ। (28:5) और उन्हें धरती में सत्ता प्रदान करें और फ़िरऔन व हामान और उनकी सेनाओं को उनकी ओर से वह दिखाएँ जिसकी उन्हें आशंका थी। (28:6)

وَأَوْحَيْنَا إِلَى أُمِّ مُوسَى أَنْ أَرْضِعِيهِ فَإِذَا خِفْتِ عَلَيْهِ فَأَلْقِيهِ فِي الْيَمِّ وَلَا تَخَافِي وَلَا تَحْزَنِي إِنَّا رَادُّوهُ إِلَيْكِ وَجَاعِلُوهُ مِنَ الْمُرْسَلِينَ (7) فَالْتَقَطَهُ آَلُ فِرْعَوْنَ لِيَكُونَ لَهُمْ عَدُوًّا وَحَزَنًا إِنَّ فِرْعَوْنَ وَهَامَانَ وَجُنُودَهُمَا كَانُوا خَاطِئِينَ (8)

और हमने मूसा की माँ की और अपना विशेष संदेश भेजा कि उसे दूध पिलाओ, फिर जब तुम्हें (फ़िरऔन की ओर से) उसके बारे में भय हो तो उसे (एक संदूक़ में रख कर) समुद्र में डाल दो और (इस आदेश से) न तो डरो और न (उसके बिछड़ने से) शोकाकुल हो कि हम उसे तुम्हारे पास लौटा देंगे और उसे पैग़म्बरों में शामिल करेंगे। (28:7) अन्ततः फ़िरऔन के लोगों ने उसे (पानी से) उठा लिया ताकि (मूसा) उनके शत्रु और उनके लिए दुख (का कारण) बनें। निश्चय ही फ़िरऔन व हामान और उनकी सेनाएं सब ग़लती करने वाले थे। (28:8)

وَقَالَتِ امْرَأَةُ فِرْعَوْنَ قُرَّةُ عَيْنٍ لِي وَلَكَ لَا تَقْتُلُوهُ عَسَى أَنْ يَنْفَعَنَا أَوْ نَتَّخِذَهُ وَلَدًا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ (9)

फ़िरऔन की पत्नी ने कहा, यह (शिशु) मेरी और तुम्हारी आँखों की ठंडक बनेगा। इसकी हत्या न करो, शायद यह हमें लाभ पहुँचाए या हम इसे अपना बेटा ही बना लें। और वे अनभिज्ञ थे (कि किसे अपनी गोद में पाल रहे हैं)। (28:9)

وَأَصْبَحَ فُؤَادُ أُمِّ مُوسَى فَارِغًا إِنْ كَادَتْ لَتُبْدِي بِهِ لَوْلَا أَنْ رَبَطْنَا عَلَى قَلْبِهَا لِتَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ (10) وَقَالَتْ لِأُخْتِهِ قُصِّيهِ فَبَصُرَتْ بِهِ عَنْ جُنُبٍ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ (11)

और मूसा की माँ का हृदय (अपने पुत्र की चिंता में) विचलित हो गया। निकट था कि वह उस (रहस्य) को प्रकट कर देती अगर हम उसके दिल को न सँभालते ताकि वह (ईश्वरीय वादों पर) विश्वास रखने वालों में से हो। (28:10) और उसने उसकी बहन से कहा कि तुम उसके पीछे-पीछे जाओ। तो वह उसे दूर ही दूर से देखती रही और फ़िरऔन के लोग इससे बेख़बर रहे। (28:11)

وَحَرَّمْنَا عَلَيْهِ الْمَرَاضِعَ مِنْ قَبْلُ فَقَالَتْ هَلْ أَدُلُّكُمْ عَلَى أَهْلِ بَيْتٍ يَكْفُلُونَهُ لَكُمْ وَهُمْ لَهُ نَاصِحُونَ (12) فَرَدَدْنَاهُ إِلَى أُمِّهِ كَيْ تَقَرَّ عَيْنُهَا وَلَا تَحْزَنَ وَلِتَعْلَمَ أَنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ (13)

और हमने पहले ही से दूध पिलाने वाली महिलाओं (के दूध) को उस पर हराम कर दिया। तो उसने (मूसा की बहन ने) कहा कि क्या मैं तुम्हें ऐसे घर वालों का पता बताऊँ जो तुम्हारे लिए इसके पालन-पोषण का ज़िम्मा लें और इसके शुभ-चिंतक हों? (28:12) तो इस प्रकार हम उन्हें उनकी माँ के पास लौटा लाए ताकि (अपने पुत्र को देख कर) उनकी आँख ठंडी हो और वे शोकाकुल न हों और ताकि वे जान लें कि अल्लाह का वादा सच्चा है किन्तु उनमें से अधिकतर लोग जानते नहीं। (28:13)

وَلَمَّا بَلَغَ أَشُدَّهُ وَاسْتَوَى آَتَيْنَاهُ حُكْمًا وَعِلْمًا وَكَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ (14)

और जब मूसा अपनी (मानसिक व शारीरिक) परिपूर्णता को पहुँचे तो हमने उन्हें तत्वदर्शिता व ज्ञान प्रदान किया और अच्छे कर्म करने वालों को हम इसी प्रकार प्रतिफल देते है (28:14)

وَدَخَلَ الْمَدِينَةَ عَلَى حِينِ غَفْلَةٍ مِنْ أَهْلِهَا فَوَجَدَ فِيهَا رَجُلَيْنِ يَقْتَتِلَانِ هَذَا مِنْ شِيعَتِهِ وَهَذَا مِنْ عَدُوِّهِ فَاسْتَغَاثَهُ الَّذِي مِنْ شِيعَتِهِ عَلَى الَّذِي مِنْ عَدُوِّهِ فَوَكَزَهُ مُوسَى فَقَضَى عَلَيْهِ قَالَ هَذَا مِنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ إِنَّهُ عَدُوٌّ مُضِلٌّ مُبِينٌ (15)

और उसने नगर में ऐसे समय प्रवेश किया जबकि वहाँ के लोग (उनके प्रवेश और नगर की घटनाओं से) अनभिज्ञ थे। तो उन्होंने वहाँ दो लोगों को लड़ते देखा। एक उनका अनुसरणकर्ता था और दूसरा उनके शत्रुओं में से था। तो जो उनके अनुसरणकर्ताओं में से था उसने उसके मुक़ाबले में जो उनके शत्रुओं में से था, सहायता के लिए उन्हें पुकारा तो मूसा ने उसे घूँसा मारा और उसका काम तमाम कर दिया। मूसा ने (अपने आपसे) कहा यह (लड़ाई-झगड़ा) शैतान का काम है, निश्चय ही वह खुला पथभ्रष्ट करने वाला शत्रु है। (28:15)

قَالَ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي فَاغْفِرْ لِي فَغَفَرَ لَهُ إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ (16) قَالَ رَبِّ بِمَا أَنْعَمْتَ عَلَيَّ فَلَنْ أَكُونَ ظَهِيرًا لِلْمُجْرِمِينَ (17)

मूसा ने कहा हे मेरे पालनहार! मैंने अपने आप पर अत्याचार किया। अतः तू मुझे क्षमा कर दे। तो ईश्वर ने उन्हें क्षमा कर दिया। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील व अत्यन्त दयावान है। (28:16) उन्होंने कहा हे मेरे पालनहार! तूने मुझे जो अनुकम्पा प्रदान की है, उसके लिए मैं कभी अपराधियों का सहायक नहीं बनूँगा। (28:17)

فَأَصْبَحَ فِي الْمَدِينَةِ خَائِفًا يَتَرَقَّبُ فَإِذَا الَّذِي اسْتَنْصَرَهُ بِالْأَمْسِ يَسْتَصْرِخُهُ قَالَ لَهُ مُوسَى إِنَّكَ لَغَوِيٌّ مُبِينٌ (18) فَلَمَّا أَنْ أَرَادَ أَنْ يَبْطِشَ بِالَّذِي هُوَ عَدُوٌّ لَهُمَا قَالَ يَا مُوسَى أَتُرِيدُ أَنْ تَقْتُلَنِي كَمَا قَتَلْتَ نَفْسًا بِالْأَمْسِ إِنْ تُرِيدُ إِلَّا أَنْ تَكُونَ جَبَّارًا فِي الْأَرْضِ وَمَا تُرِيدُ أَنْ تَكُونَ مِنَ الْمُصْلِحِينَ (19)

फिर उसके बाद मूसा नगर में डरते हुए और चिंतित प्रविष्ट हुए तो अचानक (देखा कि) वही व्यक्ति जिसने कल उनसे मदद मांगी थी, फिर उन्हें मदद के लिए पुकार रहा है। मूसा ने उससे कहा निश्चय ही तू स्पष्ट रूप से बहका हुआ व्यक्ति है। (28:18) फिर जब उन्होंने उस व्यक्ति को पकड़ने का इरादा किया जो उन दोनों का शत्रु था, तो वह बोल उठा, हे मूसा! क्या तुम मुझे (भी) मार डालना चाहते हो जिस प्रकार तुमने कल एक व्यक्ति को मार डाला था? तुम इस देश में बस निर्दयी व अत्याचारी बनकर रहना चाहते हो और सुधार करने वालों में शामिल नहीं होना चाहते। (28:19)

وَجَاءَ رَجُلٌ مِنْ أَقْصَى الْمَدِينَةِ يَسْعَى قَالَ يَا مُوسَى إِنَّ الْمَلَأَ يَأْتَمِرُونَ بِكَ لِيَقْتُلُوكَ فَاخْرُجْ إِنِّي لَكَ مِنَ النَّاصِحِينَ (20) فَخَرَجَ مِنْهَا خَائِفًا يَتَرَقَّبُ قَالَ رَبِّ نَجِّنِي مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ (21)

और (उसी समय) एक आदमी नगर के अंतिम छोर से दौड़ता हुआ आया और कहने लगाः हे मूसा! (फ़िरऔन के) सरदार आपके बारे में परामर्श कर रहे हैं कि आपको मार डालें। अतः (तुरंत नगर से) निकल जाइए। मैं आपके हितैषियों में से हूँ। (28:20) तो मूसा वहाँ से डरते और (ईश्वरीय सहायता की) प्रतीक्षा करते हुए निकल खड़े हुए। उन्होंने कहा, हे मेरे पालनहार! मुझे इस अत्याचारी जाति (के लोगों) से मुक्ति दे। (28:21)

وَلَمَّا تَوَجَّهَ تِلْقَاءَ مَدْيَنَ قَالَ عَسَى رَبِّي أَنْ يَهْدِيَنِي سَوَاءَ السَّبِيلِ (22) وَلَمَّا وَرَدَ مَاءَ مَدْيَنَ وَجَدَ عَلَيْهِ أُمَّةً مِنَ النَّاسِ يَسْقُونَ وَوَجَدَ مِنْ دُونِهِمُ امْرَأتَيْنِ تَذُودَانِ قَالَ مَا خَطْبُكُمَا قَالَتَا لَا نَسْقِي حَتَّى يُصْدِرَ الرِّعَاءُ وَأَبُونَا شَيْخٌ كَبِيرٌ (23)

और जब मूसा ने मदयन का रुख़ किया तो कहा आशा है कि मेरा पालनहार सीधे रास्ते की ओर मेरा मार्गदर्शन करेगा। (28:22) और जब मूसा मदयन के पानी (के कुएं) पर पहुँचे तो उन्होंने वहां (अपने चौपायों को) पानी पिलाते लोगों के एक गुट को देखा और उन (लोगों) से हटकर एक ओर दो स्त्रियों को पाया, जो अपने जानवरों को रोक रही थीं। उन्होंने पूछाः तुम्हारा (अलग खड़े होने से) क्या तात्पर्य है? उन्होंने उत्तर दियाः हम उस समय तक (अपने जानवरों को) पानी नहीं पिला सकते जब तक ये चरवाहे अपने जानवर निकाल न ले जाएँ और (हम इस लिए यहां आए हैं कि) हमारे बाप बहुत ही बूढ़े हैं। (28:23)

فَسَقَى لَهُمَا ثُمَّ تَوَلَّى إِلَى الظِّلِّ فَقَالَ رَبِّ إِنِّي لِمَا أَنْزَلْتَ إِلَيَّ مِنْ خَيْرٍ فَقِيرٌ (24) فَجَاءَتْهُ إِحْدَاهُمَا تَمْشِي عَلَى اسْتِحْيَاءٍ قَالَتْ إِنَّ أَبِي يَدْعُوكَ لِيَجْزِيَكَ أَجْرَ مَا سَقَيْتَ لَنَا فَلَمَّا جَاءَهُ وَقَصَّ عَلَيْهِ الْقَصَصَ قَالَ لَا تَخَفْ نَجَوْتَ مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ (25)

तो मूसा ने उन दोनों (के रेवड़) को पानी पिला दिया। फिर छाया की ओर पलट गए और कहा हे मेरे पालनहार! मैं उस भलाई का, जो तू मेरी ओर भेज दे, ज़रूरतमंद हूँ। (28:24) फिर (थोड़ी देर बाद) उन दोनों में से एक, जो शर्माते हुए चल रही थी, उनके पास आई। उसने कहाः मेरे पिता आपको बुला रहे है, ताकि आपने हमारे लिए (भेड़ों को) जो पानी पिलाया है, उसका बदला आपको दें। तो जब वे उनके (अर्थात शुऐब के) पास पहुँचे और उन्हें अपनी सारी बातें कह सुनाईं तो उन्होंने कहा कि बिल्कुल न डरो कि तुम अत्याचारी जाति (के लोगों) से छुटकारा पा गए हो। (28:25)

قَالَتْ إِحْدَاهُمَا يَا أَبَتِ اسْتَأْجِرْهُ إِنَّ خَيْرَ مَنِ اسْتَأْجَرْتَ الْقَوِيُّ الْأَمِينُ (26)

उन दोनों लड़कियों में से एक ने (शुऐब से) कहा, हे पिता! इन्हें मज़दूरी पर रख लीजिए कि निश्चित रूप से सबसे अच्छा व्यक्ति जिसे आप नौकरी पर रखें, वही है जो सशक्त और अमानतदार हो। (28:26)

قَالَ إِنِّي أُرِيدُ أَنْ أُنْكِحَكَ إِحْدَى ابْنَتَيَّ هَاتَيْنِ عَلَى أَنْ تَأْجُرَنِي ثَمَانِيَ حِجَجٍ فَإِنْ أَتْمَمْتَ عَشْرًا فَمِنْ عِنْدِكَ وَمَا أُرِيدُ أَنْ أَشُقَّ عَلَيْكَ سَتَجِدُنِي إِنْ شَاءَ اللَّهُ مِنَ الصَّالِحِينَ (27) قَالَ ذَلِكَ بَيْنِي وَبَيْنَكَ أَيَّمَا الْأَجَلَيْنِ قَضَيْتُ فَلَا عُدْوَانَ عَلَيَّ وَاللَّهُ عَلَى مَا نَقُولُ وَكِيلٌ (28)

शुऐब ने (मूसा से) कहा, “मैं चाहता हूँ कि अपनी इन दोनों बेटियों में से एक का विवाह तुम्हारे साथ इस शर्त पर कर दूँ कि तुम आठ वर्ष तक मेरे यहाँ नौकरी करो। और यदि तुम दस वर्ष पूरे कर दो तो यह तुम्हारी ओर से होगा और मैं तुम्हें कठिनाई में डालना नहीं चाहता। यदि ईश्वर ने चाहा तो तुम मुझे भले लोगों में से पाओगे। (28:27) मूसा ने कहा, यह मेरे और आपके बीच तै हो गया। इन दोनों अवधियों में से जो भी मैं पूरी कर दूँ तो मुझ पर कोई अत्याचार नहीं होगा। और जो कुछ हम कह रहे है, उस पर ईश्वर (गवाह और) रक्षक है। (28:28)

فَلَمَّا قَضَى مُوسَى الْأَجَلَ وَسَارَ بِأَهْلِهِ آَنَسَ مِنْ جَانِبِ الطُّورِ نَارًا قَالَ لِأَهْلِهِ امْكُثُوا إِنِّي آَنَسْتُ نَارًا لَعَلِّي آَتِيكُمْ مِنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ جَذْوَةٍ مِنَ النَّارِ لَعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ (29)

फिर जब मूसा ने (शुऐब के साथ अपने समझौते की) अवधि पूरी कर दी और अपने परिजनों को लेकर (मिस्र की ओर) चले तो (उन्होंने) तूर पर्वत की ओर एक आग देखी। उन्होंने अपने परिजनों से कहा, यहीं रुक जाओ कि मैंने एक आग देखी है। शायद मैं वहाँ से तुम्हारे लिए कोई ख़बर ले आऊँ या उस आग से कोई अंगारा (ले आऊं) ताकि तुम (उससे आग) ताप सको। (28:29)

فَلَمَّا أَتَاهَا نُودِيَ مِنْ شَاطِئِ الْوَادِ الْأَيْمَنِ فِي الْبُقْعَةِ الْمُبَارَكَةِ مِنَ الشَّجَرَةِ أَنْ يَا مُوسَى إِنِّي أَنَا اللَّهُ رَبُّ الْعَالَمِينَ (30)

फिर जब वे वहाँ पहुँचे तो उस घाटी के दाहिने किनारे से उस शुभ क्षेत्र में एक वृक्ष (में) से आवाज़ आई, हे मूसा! निश्चय ही मैं ही अल्लाह और सारे संसार का पालनहार हूँ।(28:30)

وَأَنْ أَلْقِ عَصَاكَ فَلَمَّا رَآَهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ وَلَّى مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ يَا مُوسَى أَقْبِلْ وَلَا تَخَفْ إِنَّكَ مِنَ الْآَمِنِينَ (31) اسْلُكْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاءَ مِنْ غَيْرِ سُوءٍ وَاضْمُمْ إِلَيْكَ جَنَاحَكَ مِنَ الرَّهْبِ فَذَانِكَ بُرْهَانَانِ مِنْ رَبِّكَ إِلَى فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ (32)

और (हे मूसा!) अपनी लाठी (ज़मीन पर) फेंक दो। फिर जब उन्होंने देखा कि वह बड़ी तेज़ी से बल खा रही है जैसे कोई साँप हो तो वह पीठ फेरकर वहां से चले गए और पीछे मुड़कर भी न देखा। (आवाज़ आई) हे मूसा! आगे बढ़ो और भय न करो। कि निश्चय ही तुम सुरक्षित लोगों में से हो (28:31) अपना हाथ अपने गरेबान में डालो तो वह बिना किसी ख़राबी के चमकता हुआ निकलेगा। और भय से बचने के लिए अपने बाज़ुओं को जोड़े रखो। तो ये दो निशानियाँ आपके पालनहार की ओर से हैं फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास लेकर जाने के लिए। निश्चय ही वे बड़े अवज्ञाकारी लोग हैं। (28:32)

قَالَ رَبِّ إِنِّي قَتَلْتُ مِنْهُمْ نَفْسًا فَأَخَافُ أَنْ يَقْتُلُونِ (33) وَأَخِي هَارُونُ هُوَ أَفْصَحُ مِنِّي لِسَانًا فَأَرْسِلْهُ مَعِيَ رِدْءًا يُصَدِّقُنِي إِنِّي أَخَافُ أَنْ يُكَذِّبُونِ (34)

मूसा ने कहा, हे मेरे पालनहार! मेरे हाथों उनके एक आदमी की हत्या हो गई है। तो मुझे डर है कि वे मेरी हत्या कर देंगे। (28:33) और मेरे भाई हारून की ज़बान मुझसे अधिक धाराप्रवाह है। तो उन्हें मेरे साथ भेज ताकि वे मेरे सहायक रहें और मेरी पुष्टि करें क्योंकि मुझे भय है कि वे मुझे झुठला देंगे। (28:34)

قَالَ سَنَشُدُّ عَضُدَكَ بِأَخِيكَ وَنَجْعَلُ لَكُمَا سُلْطَانًا فَلَا يَصِلُونَ إِلَيْكُمَا بِآَيَاتِنَا أَنْتُمَا وَمَنِ اتَّبَعَكُمَا الْغَالِبُونَ (35)

ईश्वर ने कहा, (हे मूसा! चिंतित न हो कि) हम तुम्हारे भाई के माध्यम से तुम्हारी बाज़ू मज़बूत करे देंगे और तुम दोनों को एक शक्ति प्रदान करेंगे। तो फिर हमारी आयतों और निशानियों की विभूति से वे तुम तक न पहुँच सकेंगे। तुम दोनों और जो तुम्हारे अनुयायी होंगे वही विजयी होंगे। (28:35)

فَلَمَّا جَاءَهُمْ مُوسَى بِآَيَاتِنَا بَيِّنَاتٍ قَالُوا مَا هَذَا إِلَّا سِحْرٌ مُفْتَرًى وَمَا سَمِعْنَا بِهَذَا فِي آَبَائِنَا الْأَوَّلِينَ (36) وَقَالَ مُوسَى رَبِّي أَعْلَمُ بِمَنْ جَاءَ بِالْهُدَى مِنْ عِنْدِهِ وَمَنْ تَكُونُ لَهُ عَاقِبَةُ الدَّارِ إِنَّهُ لَا يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ (37)

तो जब मूसा फ़िरऔन के लोगों के पास हमारी स्पष्ट निशानियाँ लेकर आए तो उन्होंने कहा यह (चमत्कार) तो गढ़े हुए जादू के अतिरिक्त कुछ नहीं है और हमने अपने बाप-दादाओं में तो यह बात कभी सुनी ही नहीं। (28:36) और मूसा ने (उनके उत्तर में) कहा, मेरा पालनहार उस व्यक्ति को भली-भाँति जानता है जो उसके यहाँ से मार्गदर्शन लेकर आया है और उसे भी जिसके लिए (अच्छा) अंत है। निश्चय ही अत्याचारी कभी सफल नहीं होंगे। (28:37)

وَقَالَ فِرْعَوْنُ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ مَا عَلِمْتُ لَكُمْ مِنْ إِلَهٍ غَيْرِي فَأَوْقِدْ لِي يَا هَامَانُ عَلَى الطِّينِ فَاجْعَلْ لِي صَرْحًا لَعَلِّي أَطَّلِعُ إِلَى إِلَهِ مُوسَى وَإِنِّي لَأَظُنُّهُ مِنَ الْكَاذِبِينَ (38)

और फ़िरऔन ने कहा, “हे दरबारियो!, मैं तो अपने अतिरिक्त किसी को तुम्हारा प्रभु नहीं जानता। (लेकिन अधिक जांच के लिए) हे हामान! तू मेरे लिए मिट्टी को आग लगा (और ईटें बना) दे। फिर मेरे लिए एक ऊँचा मीनार बना कि मैं मूसा के ईश्वर के बारे में कोई ख़बर ले आऊँ। और मैं तो निश्चय ही उसे झूठों में समझता हूँ। (28:38)

وَاسْتَكْبَرَ هُوَ وَجُنُودُهُ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَظَنُّوا أَنَّهُمْ إِلَيْنَا لَا يُرْجَعُونَ (39) فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الظَّالِمِينَ (40)

और फ़िरऔन और उसके सिपाहियों ने धरती में अकारण घमंड किया और समझ लिया कि उन्हें हमारी ओर लौटाया नहीं जाएगा। (28:39) तो हमने उसे और उसकी सेना को पकड़ लिया और उन्हें समुद्र में फेंक दिया। तो देखो कि अत्याचारियों का कैसा अंजाम हुआ? (28:40)

وَجَعَلْنَاهُمْ أَئِمَّةً يَدْعُونَ إِلَى النَّارِ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ لَا يُنْصَرُونَ (41) وَأَتْبَعْنَاهُمْ فِي هَذِهِ الدُّنْيَا لَعْنَةً وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ هُمْ مِنَ الْمَقْبُوحِينَ (42)

और हमने उन्हें ऐसे अगुवा बनाया है जो आग की ओर बुलाने वाले हैं और प्रलय के दिन उन्हें कोई सहायता नहीं की जाएगी। (28:41) और हमने इस संसार में उनके पीछे धिक्कार लगा दी और प्रलय के दिन भी वही कुरूप होंगे। (28:42)