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“मद्य-शास्त्र”, मदिरापान को हमेशा एक अनुष्ठान या यज्ञ की भावना में ही लेना चाहिए : महाराज हरिश्चंद्र का लेख

महाराज हरिश्चंद्र
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“मद्य-शास्त्र”
मदिरापान को हमेशा एक अनुष्ठान या यज्ञ की भावना में ही लेना चाहिए॥

जैसे गृहस्थ पुरुष यज्ञ रोज ना कर के, केवल कभी कभी ही करते है, वैसे ही मदिरापान भी केवल कुछ शुभ अवसरों पर ही करना उचित है॥

मदिरापान केवल प्रसन्नता की स्थिति में ही करने का विधान है॥
अवसाद की स्थिति में ऐसा यज्ञ करना सर्वथा वर्जित है, और जो इस नियम का उलंघन करता है,पाप का भागी होकर कष्ट भोगता है ।।

यज्ञ के लिए सवर्प्रथम शुभ दिन का चयन करे ॥

शुक्रवार, शनिवार और रविवार इसके उपयुक्त दिन है ऐसा शास्त्र में लिखा है किन्तु इसके अतिरिक्त कोई भी अवकाश का दिन भी शुभ होता है ॥

यद्यपि सप्ताह के अन्य दिनों में यज्ञ करना उचित नहीं है किन्तु अत्यंत प्रसन्नता के अवसरों में किसी भी दिन इस यज्ञ का आयोजन किया जा सकता है , ऐसा भी विधान है ॥

यज्ञ करने का निश्चय करने के बाद समय का निर्धारण करें ॥


सामान्यतः यह यज्ञ सांयकाल या रात्रि में और अधिक से अधिक मध्य रात्रि तक ही करने का विधान है , रात्रि बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए ॥

अपवाद स्वरुप दिन में छोटा सा *’बियर रूपी’* अनुष्ठान किया जा सकता है, किन्तु प्रातःकाल में इस यज्ञ का करना पूर्णतः वर्जित है ॥

यज्ञ में स्थान का बहुत महत्त्व है, यद्यपि वर्जित तो नहीं है, लेकिन इस यज्ञ को गृह में न करना ही उचित है ॥
इस को करने का सर्वोत्तम स्थल क्लब अथवा *’बार’* या *’माडल शाॅप’* नामक पवित्र स्थान होता है ॥
कभी कभी अंडे , चाट के ठेले या कोई अंधेरी सी दुकान भी होती है।

स्थान का चयन करते समय ध्यान दे की वहां दुष्ट आत्माएं ( जनसेवक कर्मी) यज्ञ में बाधा ना डाल सकें ॥
ये भी ध्यान रहे की यज्ञ स्थल विधि सम्मत हो ॥

यज्ञ अकेले ना कर,अन्य साधू जनों (मित्र मंडली) की संगत में ही करना ही उचित होता है ॥

अकेले में किये गए यज्ञ से कभी पुण्य नहीं मिलता, बल्कि यज्ञ करने वाला मद्य- दोष को प्राप्त होकर, *’शराबी’* या *’बेवड़ा ‘* कहलाता है ॥

प्रसन्न मन से, शुभ क्षेत्र में बैठ कर, साधू जनों की संगत में, मधुर संगीत रुपी मंत्रो के साथ, शास्त्रोचित रूप से किये गए मदिरा पान के यज्ञ को करने वाला साधक, ‘टुन्नता’ के असीम पुण्य को प्राप्त होता है ॥

मदिरापान के समय, यज्ञ अग्नि से भी अधिक महत्पूर्ण जठरागनी को भी शांत करना अत्यंत आवश्यक है ॥
इसके लिए पर्याप्त मात्रा में भोज्य पदार्थ जिसे

डिस्क्लेमर : लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है