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मुगल दरबार में तुर्क, ईरानी और पठान के बराबर की हैसियत हिन्दू मंत्री और मनसबदारों की थी!

Kranti Kumar
@KraantiKumar
बादशाह के तख्त के दाएं बाएं दोनों ओर हिन्दू सेनापतियों, मंत्री और मनसबदारों से दरबार ख़िला ख़िला सा रहता था.

मुग़ल दरबार जहां दिन को मिस्र का दिन और रात को ईरान की रात बताया गया है वहां मुग़ल बादशाह ज़िंदाबाद के नारे लगते थे. हिन्दू मंत्री और मनसबदार मुग़ल बादशाह की शान में कसीदे पढा करते थे.

मुग़लों से भाईचारा था, रिश्तेदारियां थी. एक ही थाली में खाना पीना था. मुगल दरबार में आपसी प्रेम का गज़ब का माहौल था.

दरबार में तुर्क, ईरानी और पठान के बराबर की हैसियत हिन्दू मंत्री और मनसबदारों की थी.

इस गठजोड़ को इतिहासकारों ने गंगा-जमुना तहज़ीब का नाम दिया है.

इस गंगा जमुना तहज़ीब में तब के शूद्र, अस्पृश्य, आदिवासी यानी आज के OBC SC ST को कोई स्थान नही था.

मुग़लों के बाद ब्रिटिश ने गंगा-जमुना तहज़ीब को बरकरार रखा. लोकतांत्रिक युग नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी ने भी गंगा जमुना तहज़ीब का सम्मान किया.

नरेंद्र मोदी ने गंगा-जमुना तहज़ीब में विशेष रुचि नही दिखाई.

Kranti Kumar
@KraantiKumar
मध्यकाल का भक्तिकाल जाति वर्ण अव्यवस्था और सामंतवाद पर प्रहार करने वाला दौर था.

सवर्ण इतिहासकारों ने भक्तिकाल का केवल एक पक्ष रखा. दूसरे पक्ष को नजरअंदाज कर दिया.

मीरा बाई भक्ति संगीत के बहाने उस दौर में लिंगभेद, जातिवाद और सामंतवाद के खिलाफ संघर्ष कर रही थीं.

नामदेव, चोखामेला, शूद्रमुनी, कबीर, तुकाराम, दयनेश्वर और बसवण्णा इन सबका संघर्ष मनुवादी अव्यवस्था और सामंतवाद के खिलाफ था.

मीरा बाई का व्यक्तित्व भक्ति संगीत या पूजा अर्चना तक सीमित नही है.

मीरा बाई एक विद्रोह हैं जाति और वर्ण अव्यवस्था के खिलाफ.

समय बीतने के साथ वर्तमान में मीरा बाई को भगवान कृष्ण के जोड़कर उनकी गलत व्याख्या की गई है. मीरा बाई के संघर्ष का संस्कृतिकरण कर दिया गया.