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मेरा पैग़ाम मोहब्बत है….बंटवारे के दर्द को पंजाब और पंजाबियों ने जितना बर्दाश्त किया है उतना किसी और ने नही!

Tajinder Singh
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मेरा पैगाम मोहब्बत है….
अगस्त 1947 को एक मुल्क धर्म की बुनियाद पर दो हिस्सों में तकसीम हो गया। बंटवारे के इस दर्द को पंजाब और पंजाबियों ने जितना बर्दाश्त किया है उतना किसी और ने नही। सरहद के दोनों तरफ बैठे लोग आज भी अपने गांव की मिट्टी की खुशबू भूले नही। लेकिन सियासत ने नफरत और कफ्फर की खाई को पाटने की जगह थोड़ा और गहरा कर दिया। क्योंकि एक दूसरे के खिलाफ लोगों को भड़का कर सियासदान अपनी रोटियां सेंकते है।

इस आपसी लड़ाई का सबसे बड़ा खामियाजा सरहद से सटे लोगों को चुकाना पड़ता है। अपने ही खेतों में नही जा सकते। खेत बंजर पड़े रहते है। इसलिए जंग के लिए जैसा उन्माद सरहद से दूर रहने वालों में नजर आता है वैसा सरहद से करीब रहने वालों में नही। क्योंकि ये युद्ध की विभीषका से परिचित होते हैं। इन्होंने जख्म खाये होते हैं।

मेरा पिछोकड इसी भारत का है। हम यहीं के रहने वाले हैं। लेकिन मेरे ससुर को बंटवारे के समय पाकिस्तान से यहां खाली हाथ आना पड़ा था। उनके और हमारे अहसासों में जमीन आसमान का अंतर है। मैंने अक्सर उन्हें अपने गांव को याद करते पाया है। लेकिन सरहद पर खींची दीवारों के कारण महज कुछ मील का फासला तय करना अब सम्भव नही। ससुर से सुने उनके गांव देहात के किस्सों ने मेरी रुचि बढ़ा दी।

अब मैं तो पाकिस्तान जा नही सकता। इसके लिए पचास तरह के सियासी बंधन हैं। लेकिन आज के वैज्ञानिक युग मे पाकिस्तान को तो अपने घर ला सकता हूँ। आजकल मैं यही कर रहा हूँ। बजरिये यु ट्यूब मेरे पूरे घर मे पाकिस्तान बिखरा पड़ा है। आपको बैठने के लिए भी मेरे घर मे बिखरे पड़े पाकिस्तान को थोड़ा सरकाना होगा।

पिछले कुछ अरसे से मैं और पत्नी मिल कर पाकिस्तानी टीवी सीरियल देख रहे हैं। कुछ दिनों पहले एक सीरियल “मेरे पास तुम हो” देखा था। इसने मुझे दूसरे सीरियल देखने के लिए मजबूर कर दिया। अभी “परीजाद” सीरियल खत्म किया है। इस बीच कुछ और भी बड़े प्यारे सीरियल देखे। वैसे कुछ भारतीय सीरियल भी बहुत अच्छे हैं जैसे जुबिली, पंचायत, aspirants, ट्रिप्ल्लिंग।

इन पाकिस्तानी सीरियलों को देखने के बाद जो बात सबसे पहली मेरे जेहन मे आयी कि उर्दू कितनी प्यारी जुबान है। ये कौन अहमक हैं जो इसे मुसलमानों के साथ और संस्कृत को हिंदुओं के साथ जोड़ भाषा को एक दायरे में बांधना चाहते हैं।

हम एक सांझी विरासत के मालिक है। हमारी बोली एक, पहनावा एक, रहन सहन एक, खान पान एक, साज श्रृंगार भी एक। तो आखिर अंतर कहाँ है।
अंतर है…सियासत और धर्म के कारण।

अगर इन दोनों मसलों को किनारे रख बात की जाए तो उधर भी वही हाड़ मांस के लोग हैं जो इधर हैं। वहां भी वही इंसानी भावनाएं, मोहब्बत और खुलूस है जो इधर है।

खैर बात मैं उर्दू की कर रहा था। मेरे पिता ने अपनी पढ़ाई उर्दू में की थी। इसलिए मुझे उर्दू के मुश्किल लफ्जों का थोड़ा ज्ञान है। लेकिन मेरी पत्नी के माता पिता खांटी पंजाबी पढ़े लोग हैं। तो पत्नी का उर्दू शब्दों से परिचय सिफर है।

इन पाकिस्तानी सीरियलों में कई ऐसे संवाद भी हैं जिनमें भारी भरकम उर्दू के लफ्ज हैं। अब जब मैं इन सवादों का अर्थ पत्नी से पूछता था तो पत्नी सीरियल में दृश्य के हिसाब से अपना ही एक डायलॉग बना लेती थी। जो अक्सर संवाद के मतलब से अलग ही होता था।

मैं पत्नी का जवाब सुन हँसते हँसते दोहरा हो जाता था। लेकिन संवाद थोड़ा कम समझ आने के बावजूद कंटेंट के कारण पत्नी की रुचि में कोई कमी नही आई। मैंने सोचा कि जब पत्नी इतने शौक से पाकिस्तानी सीरियल देख ही रही है तो क्यों न उसका उर्दू ज्ञान भी थोड़ा बढ़ा दिया जाए। ताकि उसका मजा दोबाला हो जाये। वैसे कुछ लफ्ज तो मेरी समझ मे भी नही आये। इसके लिए मुझे गूगल का सहारा लेना पड़ा।

इन पाकिस्तानी सीरियलों से समृद्ध हुए मेरे उर्दू ज्ञान पर आप भी एक नजर डालिए और देखिए कि आपको इनमें कितनो के अर्थ पता हैं।

इंतेखाब, एजाज़, माजरत, अक्स, गर्दिश, जर्फवाला, कमजर्फ, मुनासिब, अदब, मगरूर, जाविया, यकसा, मसरूफियत, इस्तकबाल, मख्तलिफ़, रुक्का, हिमाकत, मुकाम, मुराद, बेसाख्ता, तन्हा, इन्तेकाल, बिनाई, वालिद, मौजु, मुहाफ़िज़, तफसील, जेहन, कैफियत, माज़ी, मुमताज़, अलबत्ता, संजीदा, रफ्ता रफ्ता, कमसिन, शिकवा, एहतराम, राब्ता, बायस, पशेमाँ, जूद, जफ़ा, मरहूम, शदीद, मयस्सर, मजीद, काबिज, नासाज़, खुलूस, आपि, हैरत, मसरूफ, मद्दाम, बसारत, मुकाम, म्यार, शफ्फाक, मुस्सलत, तकमील, सितमज़रिफी, मर्तबा, जुमरे, जुनू, शाहिस्ता, सदीक, आलाजरफ़ी, फ़राहम, सिला, खिदमत, वाजे, नाहली, बाबस्ता, पोशीदा, गाफ़िल, मशकूर, तौफीक, तबील, अहतेमाद, खलिश
बहरहाल मैं दोनों मुल्कों के आपसी झगड़ों में न पड़ अपने पड़ोसियों को आज़ादी की दिली मुबारकबाद देता हूँ।

“उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें,
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे”