देश

मोदी सरकार ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अल्पसंख्यक दर्ज को खत्म करने के लिये दिया हलफ़नामा

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में जामिया मिलिया इस्लामिया को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने को गलत ठहराते हुए एक हलफनामा दिया है. केंद्र ने यूनिवर्सिटी को धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिए जाने का विरोध कर रही है।

हलफनामे में कहा गया है कि ऐसा जरुरी नहीं है कि जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के बोर्ड का निर्वाचन हो और जरुरी नहीं है कि इसमें मुस्लिम धर्म को मानने वालों की ही अधिकता हो. ऐसे में जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने का सवाल ही नहीं उठता।

फिलहाल 5 मार्च को यह हलफनामा हाईकोर्ट में दाखिल किया गया है, जिसे 13 मार्च को हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर लिया. हलफनामे में कहा गया है कि जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के बोर्ड का निर्वाचन होता है और ये बिल्कुल जरुरी नहीं है कि इसमें मुस्लिम धर्म से जुड़े लोंगो की ही अधिकता हो।

ऐसे में जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने का सवाल ही नहीं उठता. इसके साथ ही हलफनामे में कहा गया है कि जामिया अल्पसंख्यक संस्था इसलिए भी नहीं है क्योंकि इसे संसद एक्ट के तहत बनाया गया है और केंद्र सरकार जामिया मिलिया इस्लामिया को फंड देती है।

कांग्रेस सरकार में साल 2011 में मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने एनसीएमईआई के फैसले का समर्थन करते हुए कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने की बात मानी थी।

लेकिन अब केंद्र सरकार ने कोर्ट में दाखिल किए अपने हलफनामे में अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य केस (साल 1968) का हवाला देते हुए बताया है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो यूनिवर्सिटी संसद एक्ट के तहत शामिल है, और सरकार से फंड लेती है उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं माना जा सकता।

साँसद बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी ने मोदी सरकार के इस फैसले को मुसलमानों की शिक्षा के खिलाफ बताते हुए ट्वीट किया है “मोदी सरकार मुस्लिम अल्पसंख्यक शिक्षा सशक्तीकरण के खिलाफ है, यह कदम संविधान की अनुछेद 30 के खिलाफ है, मुस्लिमों में 3.5 करोड़ छात्रों में से केवल 4.5% है, केवल प्रधानमंत्री कुरान और कम्प्यूटर के जुमला, सूफी सम्मेलन को याद रखना”