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विश्व के महानतम बादशाह जलालुद्दीन मुहम्मद अक़बर के समय देश में 10 हज़ार से ज़यादा चीते थे, अकेले अक़बर के पास ही हज़ार से ज़यादा चीते थे : रिपोर्ट

नामीबिया से लाए जा रहे आठ चीतों को शनिवार को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा जाएगा। कभी चीतों का घर रहे हिन्दुस्तान में आजादी के वक्त ही चीते पूरी तरह विलुप्त हो गए थे। 1947 में देश के आखिरी तीन चीतों का शिकार मध्य प्रदेश के कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने किया था। इसकी फोटो भी बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी में है। उस दिन के बाद से भारत में कभी भी चीते नहीं दिखे। अब 75 साल बाद आठ चीतों को नामीबिया से लाया जा रहा है।

ऐसे में आज हम आपको भारत में चीतों की जिंदगी की पूरी कहानी बताएंगे। कैसे एक-एक करके देश से सारे चीते विलुप्त हो गए? चीतों की क्षमता क्या है? भारत आ रहे आठों चीतों की क्या खासियत है? आइए जानते हैं….

कहानी की शुरुआत पौराणिक काल से करते हैं
12वीं सदी के संस्कृत दस्तावेज मनसोलासा में सबसे पहले चीतों का जिक्र है। इसे सन 1127 से 1138 के बीच शासन करने वाले कल्याणी चालुक्य शासक सोमेश्वरा तृतीय ने तैयार करवाया था।

अब आइए बताते हैं कि राजा-महाराजा के समय क्या-क्या हुआ?
कहा जाता है कि चीता शब्द संस्कृत के चित्रक शब्द से आया है, जिसका अर्थ चित्तीदार होता है। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के पूर्व उपाध्यक्ष दिव्य भानु सिंह ने चितों को लेकर एक किताब लिखी है। इसका नाम ‘द एंड ऑफ ए ट्रेल-द चीता इन इंडिया’ है। इसमें उन्होंने बताया है कि अलग-अलग राजाओं के शासनकाल में चीतों की मौजूदगी देखी गई है। कहा जाता है कि 1556 से 1605 तक शासन करने वाले महान मुगल बादशाह अकबर के समय देश में 10 हजार से ज्यादा चीते थे। अकबर के पास भी कई चीते रहते थे। जिनका इस्तेमाल वह शिकार के लिए करता था। कई रिपोर्ट्स में तो यहां तक दावा किया जाता है कि अकेले अकबर के पास ही हजार से ज्यादा चीते थे।

अकबर के बेटे जहांगीर ने पाला के परगना में चीतों की मदद से 400 से अधिक हिरणों का शिकार किया था। अकबर ही नहीं, मुगलकाल और बाद के भी तमाम राजाओं ने शिकार के लिए चीतों का सहारा लेना शुरू कर दिया। चूंकि शिकार के लिए राजा चीतों को कैद करने लगे। एक तरह से कुत्ते-बिल्ली, गाय और अन्य पालतू जानवरों की तरह चीतों को राजा पालते थे। इसके चलते इनके प्रजनन दर में गिरावट आई और आबादी घटती चली गई।

बीसवीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय चीतों की आबादी गिरकर सैंकड़ों में रह गई और राजकुमारों ने अफ्रीकी जानवरों को आयात करना शुरू कर दिया। 1918 से 1945 के बीच लगभग 200 चीते आयात किए गए थे। ब्रिटिश शासन के दौरान चीतों का ही शिकार होने लगा।

इस राजा के पास था सफेद चीता, शाही शिकार के दौरान होता था इस्तेमाल
1608 में ओरछा के महाराजा राजा वीर सिंह देव के पास सफेद चीते थे। इन चीतों के शरीर पर काले की बजाय नीले धब्बे हुआ करते थे। इसका जिक्र भी जहांगीर ने अपनी किताब तुजुक-ए-जहांगीरी में किया है। इस तरह का ये इकलौता चीता बताया जाता था। इसके बाद धीरे-धीरे चीतों का भी शिकार शुरू हो गया। जो बचे थे, उन्हें भी राजाओं और अंग्रेजों के शौक ने मार डाला। अंग्रेजों के समय चीतों का शिकार करने पर इनाम मिलता था। चीतों के शावकों को मारने पर छह रुपये और वयस्क चीतों को मारने पर 12 रुपये का इनाम दिया जाता था।

आजादी के वक्त आखिरी तीन चीतों का भी शिकार हो गया
ये बात 1947-1948 की है। बताया जाता है कि तब देश के आखिरी तीन चीतों का शिकार हुआ था। मध्य प्रदेश के कोरिया रियासत (अब छत्तसीगढ़ में) के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने ये शिकार किया था। कहा जाता है कि उस दौरान गांव के लोगों ने राजा से शिकायत की कि कोई जंगली जानवर उनके मवेशियों का शिकार कर रहा है। तब राजा जंगल में गए और उन्होंने तीन चीतों को मार गिराया। यही तीनों चीजे देश के आखिरी बताए जाते हैं। उस दिन के बाद से भारत में कभी भी चीते नहीं दिखे। कोरिया के पास ही एक और रियासत थी। इसका नाम था अंबिकारपुर। कहा जाता है कि इसके राजा रामानुज शरण सिंह देव ने भी करीब 1200 से ज्यादा शेरों का शिकार किया था। साल 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से देश से चीतों के विलुप्त होने की घोषणा की थी।

अब बात चीते की खासियत की कर लेते हैं।
120 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ सकता है चीता
चीता हर सेकेंड में चार छलांग लगाता है। चीते की अधिकतम रफ्तार 120 किमी प्रति घंटे की हो सकती है। सबसे तेज रफ्तार के दौरान चीता 23 फीट यानी करीब सात मीटर लंबी छलांग लगा सकता है।
चीते की रिकॉर्ड रफ्तार अधिकतम एक मिनट के लिए रह सकती है। यह अपनी फुल स्पीड से सिर्फ 450 मीटर दूर तक ही दौड़ सकता है।
चीते का सिर बाघ, शेर, तेंदुए और जगुआर की तुलना में काफी छोटा होता है। इससे तेज रफ्तार के दौरान उसके सिर से टकराने वाली हवा का प्रतिरोध काफी कम हो जाता है।
चीते की खोपड़ी पतली हड्डियों से बनी होता है। इससे उसके सिर का वजन भी कम हो जाता है। हवा के रेजिस्टेंस को कम करने के लिए चीते के कान बहुत छोटे होते हैं।

शारीरिक बनावट भी होती है खास
1973 में हावर्ड में हुई एक रिसर्च के मुताबिक आमतौर पर चीते के शरीर का तामपमान 38 डिग्री सेल्सियस होता है, लेकिन रफ्तार पकड़ते ही उसके शरीर का तापमान 40.5 डिग्री सेल्सियस हो जाता है। चीते का दिमाग इस गर्मी को नहीं झेल पाता और वो अचानक से दौड़ना बंद कर देता है।
तेज रफ्तार से दौड़ने के लिए चीते की मांसपेशियों को बहुत ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत होती है। इस ऑक्सीजन की सप्लाई को बरकरार रखने के लिए चीते के नथुनों के साथ श्वास नली भी मोटी होती है, ताकि वह कम बार सांस लेकर भी ज्यादा ऑक्सीजन शरीर में पहुंचा सके।
चीते की आंख सीधी दिशा में होती है। इसकी वजह से वह कई मील दूर तक आसानी से देख सकता है। इससे चीते को अंदाजा हो जाता है कि उसका शिकार कितनी दूरी पर है। इसकी आंखों में इमेज स्टेबिलाइजेशन सिस्टम होता है। इसकी वजह से वह तेज रफ्तार में दौड़ते वक्त भी अपने शिकार पर फोकस बनाए रखता है।
चीते के पंजे घुमावदार और ग्रिप वाले होते हैं। दौड़ते वक्त चीता पंजे की मदद से जमीन पर ग्रिप बनाता है और आगे की ओर आसानी से जंप कर पाता है। इतना ही नहीं अपने पंजे की वजह से ही वो शिकार को कसकर जकड़े रख पाता है। चीते की पूंछ 31 इंच यानी 80 सेंटीमीटर तक लंबी होती है। यह चीते के लिए रडार का काम करती है। अचानक मुड़ने पर बैलेंस बनाने के काम आती है।
चीते का दिल शेर के मुकाबले साढ़े तीन गुना बड़ा होता है। यही वजह है कि दौड़ते वक्त इसे भरपूर ऑक्सीजन मिलती है। यह तेजी से पूरे शरीर में ब्लड को पंप करता है और इसकी मांसपेशियों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है।
चीता अपने शिकार का पीछा अक्सर 200-230 फीट यानी 60-70 मीटर के दायरे में ही करता है। एक मिनट तक ही वह अपने शिकार का पीछा करता है। अगर इस दौरान वो उसे नहीं मार पाता तो उसका पीछा करना छोड़ देता है। वो अपने पंजे का इस्तेमाल कर शिकार की पूंछ पकड़कर लटक जाता है। या तो पंजे के जरिए शिकार की हडि्डया तोड़ देता है।

अपने शिकार को पकड़ने के बाद चीता तकरीबन पांच मिनट तक उसकी गर्दन को काटता है ताकि वो मर जाए। हालांकि छोटे शिकार पहली बार में ही मर जाते हैं।

नामीबिया से आ रहे ये आठ चीते
दक्षिण अफ्रीका के नामीबिया से आ रहे चीतों में पांच मादा और तीन नर हैं। इनकी तस्वीर भी सामने आ चुकी है। चीतों की उम्र ढाई से साढ़े पांच साल के बीच है। वहीं, ये जानकारी भी सामने आई है कि आठ चीतों में दो सगे भाई भी शामिल हैं। चीता प्रोजेक्ट में शामिल एक एजेंसी चीता संरक्षण कोष से मिली जानकारी के अनुसार इन चीतों में तीन पुरुष हैं जबकि पांच मादा हैं। इनकी उम्र साढ़े चार साल, एक की उम्र दो साल, एक की ढाई साल और एक की उम्र तीन से चार साल के बीच बतायी गई है। वहीं, एक चीते की उम्र 12 साल भी बताई गई है।\

Congress
@INCIndia
‘प्रोजेक्ट चीता’ का प्रस्ताव 2008-09 में तैयार हुआ।

मनमोहन सिंह जी की सरकार ने इसे स्वीकृति दी।

अप्रैल 2010 में तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री
@Jairam_Ramesh
जी अफ्रीका के चीता आउट रीच सेंटर गए।

2013 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट पर रोक लगाई, 2020 में रोक हटी।

अब चीते आएंगे

Ashok Kumar Pandey अशोक اشوک
@Ashok_Kashmir
#ProjectCheetah

2009 अफ्रीकन चीता लाने का प्रस्ताव

2010 में मनमोहन सरकार से प्रस्ताव स्वीकृत

25 अप्रैल 2010 को जयराम रमेश अफ्रीका गए, चीता देखा

2011 में 50 करोड़ रु. दिए गए

2012 SC से प्रोजेक्ट चीता पर रोक, 2019 में हटी।

अब चीते आने वाले हैं।

*देवेंद्र सुरजन

Anurag Dwary
@Anurag_Dwary
देश के सबसे कुपोषित ज़िले में से एक श्योपुर में ” चीते” वाली बधाई

Wg Cdr Anuma Acharya (Retd)
@AnumaVidisha

और हाँ कल से वे मुद्दे, जो देश में गोदी मीडिया के हर न्यूज़ चैनल पर रहने वाले हैं, उनकी भविष्यवाणी हम आज ही कर देते हैं.कल से बात होगी तेंदुए और चीते पर. चीते कहाँ से, कितने आये हैं, कितनी उम्र होती है आदि आदि. मुद्दा कम से कम 18 सितम्बर तक चलेगा! #चीता_चरित्र #PentharPoetry